उत्तर से लेकर दक्षिण तक राजनीति में ये निकले अपने बाप से आगे

राजनीति एक ऐसा क्षेत्र हैं जहां कई दिग्गज जनता में लोकप्रिय होते हुए भी वह उंचाईयां नहीं छू सके जिसकी उन्हे दरकार थी पर उनके बेटों ने अपनी करिश्मा कर दिखाया।

Update:2019-12-13 13:14 IST

श्रीधर अग्निहोत्री

लखनऊ: राजनीति एक ऐसा क्षेत्र हैं जहां कई दिग्गज जनता में लोकप्रिय होते हुए भी वह उंचाईयां नहीं छू सके जिसकी उन्हे दरकार थी पर उनके बेटों ने अपनी करिश्मा कर दिखाया। ऐसे राजनीतिक परिवारों में दक्षिण भारत से लेकर उत्तर भारत तक की राजनीति में कई सियासी घराने शामिल रहे हैं। जिनमें आन्ध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री जगनमोहन रेड्डी, और झारखंड के मुख्यमंत्री रहे हेमंत सोरेन तो उद्वव ठाकरे से लेकर तक का नाम शामिल है।

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हेमंत सोरेनः-

झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और झारखंड मुक्ति मोर्चा के संस्थापक शिबू सोरेन के पुत्र हेमंत सोरेन का शुमार देश के युवा नेताओं में है। वे झारखंड में सबसे कम उम्र में बनने वाले मुख्यमंत्री रहे है। वे मात्र 37 साल में झारखंड के मुख्यंत्री बन गए थे। बढ़ती उम्र के चलते संगठन का सारा काम इन दिनों उन्हीं के जिम्मे है। उनकी पार्टी को झारखंड में नेतृत्व संभालने का मौका मिला है। यूपी,जम्मू कश्मीर,कर्नाटक,महाराष्ट्र के बाद झारखंड ऐसा पहला राज्य है जहां मुख्यमंत्री के बेटे को मुख्यमंत्री बनने का मौका मिला।

हेमंत सोरेन इस समय झारखंड मे ंनेता प्रतिपक्ष का दायित्व निभा रहे है। झारखंड के हो रहे विधानसभा चुनाव में हेमंत सेरेन को बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद है। देखने वाली बात यह होगी कि हेमंत सोरेन पार्टी को कहां औरे किस मुकाम तक ले जाते है। इसबार के चुनाव में उनकी प्रतिष्ठा दांव पर है। हालांकि भाजपा गठबंधन यहां पूरी मजबूती से चुनाव लड़ रहा है।

जगनमोहन रेड्डी-

दक्षिण के राज्यों में आन्ध्रप्रदेश के सबसे युवा मुख्यमंत्री जगनमोहन रेड्डी ने अपने पिता के राजशेखर रेड्डड्ढी की विरासत संभाल रखी है। जगनमोहन रेड्डी ने पिता की परंपरागत पार्टी कांग्रेस के बजाए अपनी पार्टी वाईएसआर कांग्रेस का गठन किया। राजशेखर रेड्डी के निधन के बाद कांग्रेस ने वाईएसआर के काफी दुश्वारियां खड़ी की। जिसके बाद उन्होंने कांग्रेस का झंडा उठाने के बजाए अपनी नई पार्टी गठित की।

आन्ध्र प्रदेश में उन्हे कांग्रेस के साथ ही टीडीपी से भी दोचार होना पड़ा। बावजूद इसके उन्होंने न सिर्फ अपने दम पर पार्टी खड़ी की और पूर्णबहुमत की सरकार बनाई। मुख्यमंत्रियों के पुत्रों में अकेले जगनमोहन रेडडी ही ऐसे राजनेता हुए जिन्होने न सिर्फ अपने पिता की विरासत संभाली बल्कि अपने प्रदेश में विरोधियों के दांत भी खडे किए। उन्होंने आन्ध्र प्रदेश में कांग्रेस और तेदेपा दोनों को हाशिए पर डाल रखा है।

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चिराग पासवान-

केन्द्र की कांग्रेस और गैरकांग्रेसी सरकारों में कैबिनेट मंत्री रहे लोकजनशक्ति पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामबिलास पासवान ने हाल ही में अपने दल की कमान अपने पुत्र चिराग पासवान को सौंपी है। चिराग पासवान दूसरी बार सांसद है और फिल्मों में भी हांथ आजमा चुके है। फिल्मों में कोई खास सफलता नहीं मिली तो राजनीति को ही अपना ध्येय बना लिया। इस समय वे सांसद होने के साथ ही लोकजनशक्ति के अध्यक्ष भी है। इससे पहले चिराग पासवान लोकजनशक्ति संसदीय दल के नेता भी रहे है।

जनता दल,जेडीयू में रहे रामविलास पासवान पर उनके पुत्र चिराग पासवान ने ही राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन में शामिल होने का दबाव बनाया था। पार्टी की कमान हांथ आने के बाद इस समय झारखंड में हो रहे विधानसभा चुनाव में राजग के बजाए अकेले दम पर चुनाव लडऩे का निर्णय लिया है। इसी के साथ उन्होंने अगले साल बिहार में होने वाले विधानसभा चुनाव में राजग के साथ चुनाव लडऩे के बजाए अकेले ही अपना दमखम दिखाने की बात कही है। देखना यह होगा कि बाकी नेतापुत्रों की तरह राजनीति में उनका प्रदर्शन कैसा रहेगा।

आकाश आनंदः-

परिवार के मुद्दे पर हमेशा समाजवादी पार्टी और कांग्रेस को घेरने वाली बसपा प्रमुख मायावती स्वयं भी इससे अछूती नहीं रही। बसपा के संस्थापक और अध्यक्ष रहे कांशीराम ने भले उन्हे अपने उत्तराधिकारी के रूप में मायावती को चुना हो लेकिन मायावती के सामने जब यह प्रश्न आया तो संगठन के किसी दूसरे नेता के बजाए अपने सगे भतीजे आकाश आनंद को ही चुना है। आकाश मायावती के भाई आनंद के पुत्र है।

आकाश आनंद के पिता आनंद की कोई राजनीतिक पृष्ठड्ढभूमि नहीं है,उनके पुत्र आकाश ने बुआ की पार्टी से ही अपनी राजनीतिक पारी शुरू की है। जिन्हे मायावती इस साल हुए लोकसभा चुनाव में अपने साथ-साथ लिए चुनावी सभाओं और रैलियों में लेकर पहुंची। बाद मे ंउसे संगठन में राष्ट्रीय उपाध्यक्ष का पद भी दे दिया। आकाश मायावती की होने वाली प्रेसकांफ्रेसो में मंच साझा करते है लेकिन अभी वे चुनाव मैंदान में नहीं उतरे है।

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आदित्य ठाकरेंः-

शिवसेना के संस्थापक बालठाकरें परिवार के पौत्र आदित्य ठाकरें ने इस साल हुए चुनाव से राजनीति में इंट्री मारी है। आदित्य ठाकरें के पिता उद्वव ठाकरे इस समय महाराष्टड्ढ्र के मुख्यमंत्री है। मुख्यमंत्री के अलावा वे संगठन की बागडोर संभाले हुए है। इस साल हुए चुनाव में आदित्य ठाकरें की जीत के बाद शिवसेना उन्हे ही मुख्यमंत्री बनाने की जिद पर अड़े रहे। लेकिन भाजपा इस पर तैयार नहीं हुई तो शिवसेना ने कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस से मिलकर सरकार बनाई है।

आदित्य ठाकरें परिवार के पहले ऐसे सदस्य है जिन्होंने चुनावी राजनीति के साथ इंट्री मारी है। इससे पहले इस परिवार कि किसी सदस्य ने चुनाव नहीं लड़ा। शिवसेना के दो-दो मुख्यमंत्री हुए लेकिन ठाकरें परिवार से कोई सदस्य कभी मंत्री या सरकारी पद पर नहीं रहा। यह पहला मौका है जब ठाकरें परिवार के किसी सदस्य ने महाराष्ट्र की कमान संभाली है और परिवार का सदस्य होकर वहां की विधानसभा में पहुंचा।

हाल ही में बिहार के दिग्गज नेता और केन्द्र में मौजूदा तथा पूर्ववर्ती केन्द्र सरकारों में कैबिनेट मंत्री रहे रामविलास पासवान ने अपने पुत्र सांसद चिराग पासवान को लोकजनशक्ति की कमान सौंपी है जबकि यूपी में लोकसभा चुनाव के दौरान पूर्व मुख्यमंत्री तथा बसपा की प्रमुख मायावती ने अपने भतीजे आकाश को लांच किया है जबकि महाराष्ट्र में शिवसेना के संस्थापक बालठाकरे के पौत्र और मुख्यमत्री उद्वव ठाकरे के पुत्र आदित्य ठाकरें ने विधायक बनने के साथ ही राजनीति में इंट्री मारी है।

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