India China Face off: भारत के लिए बेहद अहम है तवांग, लंबे समय से लगी हुई हैं चीन की नजरें, हर बार मिला मुंहतोड़ जवाब

India China Face off: चीन हमेशा से एक अविश्वसनीय देश रहा है जो अपनी विस्तारवादी नीति के चलते सीमाई इलाकों में हमेशा हरकत करता रहा है।

Written By :  Anshuman Tiwari
Update:2022-12-13 12:13 IST

India China Faceoff (photo: social media )

India China Face off: भारत और चीन की सेना के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर तवांग में एक बार फिर झड़प हुई है जिसमें दोनों पक्षों के कई सैनिक घायल हुए हैं। चीन ने लंबे समय से इस इलाके पर अपनी नजरें गड़ा रखी हैं। हालांकि हर बार उसे भारतीय सेना के पराक्रम के आगे मुंह की खानी पड़ी है। चीन हमेशा से एक अविश्वसनीय देश रहा है जो अपनी विस्तारवादी नीति के चलते सीमाई इलाकों में हमेशा हरकत करता रहा है।

तवांग पोस्ट को भारत के लिए भी काफी यह माना जाता है। 17 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित यह पोस्ट भारतीय सेना के लिए भी रणनीतिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है। यही कारण है कि पूर्व के हमलों की तरह इस बार भी भारतीय सेना ने चीनी सेना के हरकत को पूरी तरह नाकाम कर दिया। अब आने वाले दिनों में तवांग में भारतीय सेना की निगरानी और बढ़ाने की तैयारी है।

गलवान के बाद फिर हुई दोनों पक्षों में झड़प

भारत और चीन की सेना के बीच करीब ढाई साल बाद इस तरह की झड़प देखने को मिली है। इससे पूर्व 15 जून 2020 को पूर्वी लद्दाख की ही गलवान घाटी में दोनों देशों के सैनिकों के बीच खूनी झड़प हुई थी। इस झड़प के दौरान भी भारतीय सेना के जवानों ने साहस का परिचय देते हुए चीन के करीब 40 सैनिकों को मार गिराया था। चीनी सेना को जवाब देने में भारत के भी 20 सैनिकों की शहादत हुई थी।

अब चीनी सेना ने एक बार फिर अरुणाचल प्रदेश के तवांग में हरकत दिखाई है जिसमें भारतीय सेना से ज्यादा नुकसान चीनी सेना को उठाना पड़ा है। सेना के सूत्रों के मुताबिक भारतीय सेना के करीब छह जवान इस झड़प में घायल हुए हैं जबकि चीन के भी कई सैनिकों के घायल होने की खबर है।

1962 में भी हुआ था टकराव

अरुणाचल प्रदेश में करीब 17 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित तवांग को रणनीतिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। 1962 में भारत और चीन के बीच हुए युद्ध के दौरान भी चीनी सैनिकों ने तवांग पर कब्जा कर लिया था। हालांकि बाद में भारतीय सेना ने इस इलाके पर से चीन का कब्जा खाली करा लिया था। यह इलाका मैकमोहन लाइन के अंदर पड़ता है।

वैसे बाद में चीन की नीयत एक बार फिर बदल गई और उसने मैकमोहन रेखा को मानने से इनकार कर दिया। उसके बाद से ही चीन की नजर तवांग पर लगी हुई है। हालांकि उसे कभी कामयाबी नहीं मिल सकी। चीनी सैनिकों की ओर से 9 दिसंबर को एक बार फिर इस पोस्ट पर कब्जा करने की कोशिश की गई। हालांकि भारतीय जवानों के मुस्तैद रहने के कारण चीनी सेना का यह मंसूबा कामयाब नहीं हो सका।

तवांग पर इस कारण चीन की नजरें

तवांग पर चीन की नजरें कुछ विशेष कारणों से लगी हुई हैं। इस पोस्ट पर कब्जा करने से चीनी सेना को बड़ा फायदा हो सकता है। इस पोस्ट के जरिए चीनी सेना तिब्बत के साथ ही एलएसी की निगरानी करने में भी कामयाब हो सकती है। यही कारण है कि चीन बार-बार इस पोस्ट पर कब्जा करने की कोशिश करता है। हालांकि उसे आज तक इस काम में कामयाबी नहीं मिल सकी।

तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा का भी तवांग से खास रिश्ता रहा है 1959 में तिब्बत से निकलने के बाद दलाई लामा ने तवांग में भी काफी समय बिताया था। दलाई लामा चीन की नजरों में हमेशा खटकते रहे हैं और इस कारण भी चीन ने तवांग पर अपनी नजरें गड़ा रखी हैं।

भारत के लिए भी तवांग काफी अहम

भारत के लिए भी तवांग पोस्ट पर कब्जा बनाए रखना काफी अहम माना जाता है। इस पोस्ट पर चीन का कब्जा भारत के लिए बड़े खतरे का कारण बन सकता है। भारत के लिए तवांग के साथ ही चंबा घाटी भी काफी महत्वपूर्ण मानी जाती है। तवांग चीन-भूटान जंक्शन पर स्थित है जबकि चंबा घाटी से नेपाल-तिब्बत सीमा की निगरानी की जा सकती है। तवांग पर कब्जे के बाद चीन की ओर से अरुणाचल प्रदेश के अंदर भी घुसपैठ की कोशिश शुरू हो जाएगी। यही कारण है कि भारत तवांग पोस्ट को लेकर हमेशा काफी सतर्क रहा है।

चीन के साथ 1962 की लड़ाई के दौरान भी भारत को यहां पर काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा था। इस कारण भारतीय सेना की ओर से तवांग में लगातार निगरानी रखी जाती है। चीनी सैनिकों की ओर से की गई झड़प को भारतीय सेना के साथ ही केंद्र सरकार ने भी काफी गंभीरता से लिया है। माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में इस इलाके में सेना की तैनाती बढ़ाने के साथ ही कुछ और बड़े फैसले भी लिए जा सकते हैं।

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