खपत से कई गुना ज्यादा बिजली उत्पादन, कहीं संसाधनों से खिलवाड़ तो नहीं...

भारत अपनी मौजूदा जरूरत से ज्यादा बिजली तैयार करने के साथ ही अपने सभी संसाधनों का जमकर दोहन कर रहा है। यही वजह है कि पर्यावरण और प्रकृति संरक्षण की दुहाई देने वाले भारत सरकार के रवैए की आलोचना कर रहे हैं।

Update: 2021-02-07 18:16 GMT

अखिलेश तिवारी

लखनऊ. भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा बिजली उत्पादक और उपभोक्ता देश है लेकिन इससे भी ज्यादा हैरानी की बात है कि भारत में जितनी बिजली का उत्पादन किया जा रहा है वह उसकी जरूरत से कई गुना ज्यादा है। एक रिपोर्ट के अनुसार भारत को 2030 तक जितनी बिजली की आवश्यकता होगी उसकी आधे से ज्यादा बिजली वह आज ही तैयार कर रहा है।

भारत को आवश्यकता से ज्यादा बिजली कर रहा तैयार

भारत अपनी मौजूदा जरूरत से ज्यादा बिजली तैयार करने के साथ ही अपने सभी संसाधनों का जमकर दोहन कर रहा है। यही वजह है कि पर्यावरण और प्रकृति संरक्षण की दुहाई देने वाले भारत सरकार के रवैए की आलोचना कर रहे हैं। हाइड्रो पावर परियोजनाओं के जरिए भारत में कुल उत्पादन का लगभग साढे 13% बिजली उत्पादन किया जा रहा है जबकि सोलर एनर्जी क्षेत्र में केवल 9.7% उत्पादन क्षमता ही विकसित की जा सकी है।

पहला हाइड्रो इलेक्ट्रिक पावर प्रोजेक्ट दार्जिलिंग के सिद्रापोंग में

दार्जिलिंग के सिद्रापोंग में 1897 को पहला हाइड्रो इलेक्ट्रिक पावर प्रोजेक्ट लगाया गया था। बेंगलुरु में पहली बार 5 अगस्त 1905 को स्ट्रीट लाइट की शुरुआत हुई और देश में पहली इलेक्ट्रिक ट्रेन मुंबई विक्टोरिया टर्मिनस से कुर्ला के लिए 3 फरवरी 1925 को चलाई गई. लेकिन सौर ऊर्जा के इस्तेमाल करने में हमें पूरे 90 साल का वक्त लगा।

2015 में कोचीन इंटरनेशनल एयरपोर्ट को बनाया गया पहला सौर ऊर्जा संचालित एयरपोर्ट

जब हमने 2015 में कोचीन इंटरनेशनल एयरपोर्ट को पहला सौर ऊर्जा संचालित एयरपोर्ट में तब्दील किया। आज भारत में 205135 मेगावाट बिजली का उत्पादन कोयले से किया जाता है जबकि परमाणु ऊर्जा से केवल 6780 मेगावाट बिजली का उत्पादन किया जा रहा है। थर्मल पावर से खुल 230600 मेगा वाट बिजली उत्पादन हो रहा है।

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पिछले साल 45690 मेगावाट विद्युत उत्पादन

हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट से पिछले साल 45690 मेगावाट विद्युत उत्पादन किया गया गैर परंपरागत विद्युत उत्पादन भी 370106 मेगावाट तक पहुंच चुका है। भारत में हर साल बिजली उत्पादन की दर औसतन 4% तक बनी हुई है. लगभग 5 साल पहले उत्पादन वृद्धि दर और भी ज्यादा थी और यह 10% तक पहुंच चुकी थी।

भारत को 2857 टेरावाट बिजली की आवश्यकता

द एनर्जी एंड रिसोर्सेस इंस्टीट्यूट टेरी और एनर्जी ट्रांजिशन कमीशन की रिपोर्ट में बताया गया है कि 2030 तक भारत को 2040 से लेकर 2857 टेरावाट बिजली की आवश्यकता होगी। यह अनुमान जीडीपी 6 .8 से लेकर 7.5 और 8 प्रतिशत वृद्धि दर को लेकर किया गया है। जीडीपी के ग्रोथ रेट से इसमें उतार-चढ़ाव हो सकता है और इसका जो मध्य बिंदु है वह 2533 टेरावाट हो सकता है।

2019-20 में भारत ने 1400 टेरावाट बिजली का उत्पादन किया

2015 में कृषि क्षेत्र में 173 TWH की डिमांड रही है जो 2030 में 295 से लेकर 359 twh होने की संभावना है। इंडस्ट्री सेक्टर में 2015 में 424 twh की डिमांड थी जो 2030 तक 1154 से लेकर 1471 तक पहुंचने की उम्मीद की जा रही है। जबकि 2019-20 में भारत ने लगभग 1400 टेरावाट बिजली का उत्पादन किया है जो उसकी आवश्यकता से कई गुना ज्यादा है यह सारी बिजली उसने अपने पड़ोसी देशों को बेची है।

विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले 10 साल में औद्योगिक गतिविधियां बढ़ने पर बिजली का उपभोग बढ़ेगा।

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इलेक्ट्रिक ट्रेन में 45947 गीगा वाट की आवश्यकता

इसी तरह मोटर गाड़ियों में इलेक्ट्रिक वाहन का इस्तेमाल बढ़ने से 233848 गीगाबाट और इलेक्ट्रिक ट्रेन में 45947 गीगा वाट की आवश्यकता होगी। इस सब के बावजूद भारत की जो मौजूदा बिजली उत्पादन क्षमता है और जिस गति से हर साल बिजली उत्पादन में वृद्धि हो रही है अगर यही बरकरार रहा तो 2030 से पहले ही भारत अपनी जरूरत से ज्यादा बिजली तैयार करने में कामयाब हो जाएगा।

हिमालय की गोद में सैकड़ों हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट

आज भी वह अपनी जरूरत से ज्यादा भी से तैयार कर रहा है। हिमालय की गोद में सैकड़ों हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट आकार ले रहे हैं जिनसे और ज्यादा बिजली उत्पादन बढ़ेगा लेकिन इसके साथ ही प्राकृतिक आपदाओं का खतरा भी बढ़ता रहेगा। यही वजह है कि हिमालय की पारिस्थितिकी और पर्यावरण को लेकर सतर्क व चिंतित दिखाई दे रहे पर्यावरणविद हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट का खुलकर विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि विनाश की कीमत पर विकास नहीं किया जाना चाहिए लेकिन सवाल यह है कि क्या यह बात देश की सरकारों को भी समझ में आ रही है।

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