बीजिंग : चीन में मीडिया में कहा गया है कि किसी अर्थपूर्ण वार्ता के लिए भारत को अपनी 'घुसपैठिया सेना' को तुरंत डोकलम इलाके से वापस बुला लेना चाहिए। चीन की सरकारी समाचार एजेंसी सिन्हुआ ने अपनी टिप्पणी में यह बात कही है। एजेंसी ने कहा है कि तीन हफ्ते से जारी गतिरोध का कारण भारतीय सीमा प्रहरियों द्वारा सिक्किम क्षेत्र में चीन के इलाके में घुस आना और चीन के स्वायत्त क्षेत्र डोकलम में सड़क निर्माण के सामान्य काम में बाधा डालना है।
एजेंसी ने अपनी टिप्पणी में कहा है कि भारत ने अपनी 'घुसपैठ' को यह कहकर जायज बताया है कि डोकलम भूटान का हिस्सा है और वह भूटान की रक्षा कर रहा है।
लेकिन, एजेंसी ने कहा है कि चीन और ग्रेट ब्रिटेन के बीच 1890 में सिक्किम और तिब्बत के मुद्दे पर हुए समझौते के मुताबिक डोकलम चीन का हिस्सा है।
टिप्पणी में दस्तावेजों के हवाले से कहा गया है कि तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने एक से अधिक बार भारत सरकार की तरफ से कहा था कि सिक्किम-तिब्बत सीमा का आधार 1890 का समझौता है।
इसमें कहा गया है कि अंतर्राष्ट्रीय कानून का यह मूलभूत सिद्धांत है कि संधियों को नेकनीयती से लागू किया जाना चाहिए।
टिप्पणी में कहा गया है कि भारत द्वारा 1890 के समझौते का 'अचानक तिरस्कार' संयुक्त राष्ट्र चार्टर एवं अंतर्राष्ट्रीय कानून के बुनियादी सिद्धांतों का उल्लंघन है और द्विपक्षीय संबंधों के लिए खतरा है।
एजेंसी ने कहा है, "डोकलम में विवाद पैदा कर भारत, चीन और भूटान के बीच की सीमा वार्ताओं में बाधा डालना चाहता है और क्षेत्र में अपने गुप्त एजेंडे को लागू करना चाहता है।"
टिप्पणी में कहा गया है, "डोकलम लंबे समय से चीन के प्रभावी अधिकार क्षेत्र में रहा है। भूटान और चीन के बीच अपने सीमावर्ती क्षेत्रों को लेकर बुनियादी सहमति रही है। भारत को कोई हक नहीं पहुंचता कि वह चीन और भूटान के सीमा मुद्दे में दखल दे, न ही वह भूटान की तरफ से इलाके पर दावा जता सकता है।"
एजेंसी ने कहा है कि दोनों देशों के बीच किसी अर्थपूर्ण वार्ता के लिए जरूरी है कि भारतीय सेना तुरंत अपने इलाके में वापस जाए। उसने यह भी कहा है कि दोनों देशों के बीच की यह तकरार दोनों ही के विकास पर नकारात्मक असर डालने वाली साबित होगी।