Indo-China Border Tension: 1962 के बाद अब तक 6 बार सरहद पर आमने-सामने आ चुकी है भारत-चीन की फौज
Indo-China Border Tension: साल 2017 में डोकलाम विवाद, 2020 में गलवान संघर्ष के बाद इस साल तवांग में हुई हिंसक झड़प की घटना इसका उदाहरण है।
Indo-China Border Tension: भारत और चीन दुनिया के दो विशाल देश होने के साथ – साथ परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्र हैं। दोनों देशों में दुनिया की सर्वाधिक आबादी बसती है। ऐसे में भारत और चीन के बीच सीमा पर किसी तरह का गतिरोध अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बन जाता है। पिछले पांच सालों में चीन के साथ भारत का टकराव काफी बढ़ा है। साल 2017 में डोकलाम विवाद, 2020 में गलवान संघर्ष के बाद इस साल तवांग में हुई हिंसक झड़प की घटना इसका उदाहरण है।
हालांकि, भारत और चीन के बीच सीमा विवाद की जड़ें 1950 के दशक से ही जुड़ी हुई हैं। तब से लेकर आज तक करीब सात दशक बीच चुके हैं लेकिन दोनों के बीच सीमा विवाद का मुद्दा जस के तस बना हुआ है। सात दशकों के इस लंबी अवधि दोनों मुल्क जंग के मैदान में आमने – सामने आ चुके हैं। साल 1962 के युद्ध के बाद भी सीमा पर अशांति कायम है। ड्रैगन पूर्व में अरूणाचल से लेकर पश्चिम में लद्दाख तक निरंतर सीमा को अपने हिसाब से बदलने में जुटा रहता है। तो आइए एक नजर दोनों देशों के बीच सरहद पर अब तक हुए टकराव पर डालते हैं –
1962 का जिक्र जरूरी
साल 1962 आजाद भारत के इतिहास का वो जख्म है, जिसके घाव अभी तक भरे नहीं हैं। चीन ने उस साल अपनी हरकत से पूरी दुनिया को बता दिया कि उसकी डिक्शनरी में दोस्ती, मित्रता और सहयोगी जैसे शब्दों की जगह नहीं है। एक तरफ भारत के नीति निर्माता जहां पंचशील के स्वर्णिम स्वप्न में खोकर हिंदी-चीनी भाई-भाई के नारों में खोए थे, वहीं चीन अंदर ही अंदर भारत को जंग की आग में झोंकने की तैयारी में जुटा था। चीन के अचानक हमले ने भारत के सत्ता प्रतिष्ठानों के होश उड़ा दिए। जब तक वे कुछ समझ कर संभल पाते तब तक चीन हजारों एकड़ भूमि पर कब्जा कर चुका था। चीन के विश्वासघात ने भारत को एक शर्मनाक पराजय को मजबूर करने के लिए विवश कर दिया।
1967 में भारत ने कराया ताकत का एहसास
1962 में चीन और 1965 में पाकिस्तान से युद्ध लड़कर भारतीय सेना जंग के मैदान में तप चुकी थी। लेकिन चीन को लग रहा था कि दो बड़ी जंग लड़कर भारतीय सेना का मनोबल गिर गया होगा। पीएलए के जवान लगातार पूर्वी सीमा पर नाथु ला दर्रे पर तैनात भारतीय जवानों के साथ हाथापाई और धक्कामुक्की किया करते थे। भारत ने इससे बचने के लिए जब नाथु ला से सेबु ला के बीच बाड़बंदी का कार्य शुरू किया तो चीनियों ने इसका पुरजोर विरोध किया। चीनी सैनिकों ने भारतीय जवानों पर मशीन गन से फायरिंग कर दी। भारत को शुरूआत में काफी नुकसान उठाना पड़ा, 70 सैनिकों की जान चली गई।
इसके बाद भारत ने अपनी पोजिशन संभालते हुए जोरदार पलटवार किया। अपनी मजबूत रणनीतिक स्थिति का फायदा उठाते हुए भारत ने जमकर आर्टिलरी पॉवर का प्रदर्शन करते हुए कई चीनी बंकरों को ध्वस्त कर दिया। भारत की ओर से आए इस तगड़े रिस्पांस से चीनी हक्के – बक्के रह गए। भारत की ओर से तीन दिनों तक दिन – रात फायरिंग जारी रही। भारत की कार्रवाई में 300 से 400 के करीब चीनी सैनिक मारे गए थे। भारत के भी 10 जवान शहीद हुए थे। 15 सितंबर को दोनों सेनाओं के वरीय अधिकारियों की बैठक में शवों की अदला बदली हुई थी।
1975 में भारतीय सैनिकों पर हमला
साल 1967 की करारी शिकस्त ने ड्रैगन को परेशान कर दिया था। उस साल चीन ने दोबार भारत से उलझने की कोशिश की और दोनों बार उसे मुंह की खानी पड़ी। चीन को समझ नहीं आ रहा था कि जिस सेना को उसने पांच साल पहले धूल चटाई थी, वो इतना ताकतवर कैसे हो गई। 1967 की लड़ाई के 8 साल बाद फिर चीन ने भारत के साथ उलझने की कोशिश की। चीनियों ने अरूणाचल प्रदेश के तुलुंग ला में असम रायफल्स की पेट्रोलिंग टीम पर हमला कर दिया। इस हमले में चार भारतीय जवान वीरगति को प्राप्त हुए थे। भारत सरकार ने इस पर बयान जारी कर कहा था कि 20 अक्टूबर 1975 को चीनी सेना ने एलएसी क्रॉस कर भारतीय सेना पर हमला कर दिया। वहीं, चीन ने भारत के दावे को खारिज करते हुए उल्टे भारतीय सैनिकों पर एलएसी क्रॉस कर चीनी पोस्ट पर हमला करना का आरोप लगाया। चीन के मुताबिक, जवाबी कार्रवाई में भारतीय सैनिक मारे गए।
1987 में फिर आमने-सामने खड़ी थी दोनों देशों की सेना
साल 1987 में अरूणाचल प्रदेश के तवांग सेक्टर के उत्तर में स्थित समदोरांग चू में फिर से दोनों देशों के जवान आमने-सामने आ गए। दरअसल, सर्दियों के आते ही इस इलाके को भारतीय जवान खाली कर देते थे। 1987 की गर्मियों में जब भारतीय सेना यहां पहुंची तो पाया कि चीनी उनके इलाके पर तंबू गाड़ कर बैठे हुए हैं। कई दिनों तक बातचीत चलने के बावजूद चीनी जब टस से मस नहीं हुए तो भारतीय सेना ने ऑपरेशन फाल्कन चलाया।
इस ऑपरेशन के तहत भारतीय जवानों को विवादित जगह पर तैनात किया गया। यहां से समदोरांग चू के साथ अन्य पहाड़ियों पर भी नजर रखी जा सकती है। इस तैनाती ने भारतीय सेना को रणनीतिक रूप से चीन के मुकाबले मजबूत स्थिति में खड़ा दिया। नतीजा ये हुआ कि चीन को अपने पैर खींचने पड़े। लंबी बातचीत के बाद दोनों देशों की सेनाएं अपने-अपने पोजिशन से पीछे हटीं। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस ऑपरेशन में भारत ने 7 लाख सैनिकों की तैनाती की थी और टी-72 जैसे टैंक उतार दिए थे। इस विवाद के बाद ही भारत ने फौरन अरूणाचल प्रदेश को पूर्ण राज्य का दर्जा दे दिया।
डोकलाम विवाद
साल 2014 में भारत की कमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों में आने के बाद चीन के साथ रिश्तों को नए सिरे से परिभाषित करने का काम शुरू हुआ। शी जिनपिंग और मोदी एक-दूसरे के यहां गए भी। लेकिन साल 2017 में चीन ने लंबे समय बाद पूर्वी सेक्टर स्थित सिक्किम की सीमा पर विवाद खड़ा कर दिया। चीनी सैनिक डोकलाम पठार पर सड़क बना रहे थे, जिसका भूटान और भारत ने तीखा विरोध किया था। अगर चीन यहां तक सड़क बना लेता तो संपूर्ण नॉर्थ ईस्ट के सामने बड़ा खतरा उत्पन्न हो जाता है। डोकलाम पठारी पर चीन और भूटान दावा करते रहे हैं। भारत भूटान के दावे का समर्थन करता है। यह गतिरोध 73 दिनों तक चलता रहा। दोनों देशों के बीच बातचीत के बाद ये मामला शांत हुआ।
2020 का गलवान संघर्ष
1975 के बाद 2020 पहला साल था जब चीनी सीमा पर भारतीय जवान शहीद हुए थे। जब पूरी दुनिया चीन से निकले कोरोना महामारी से जूझ रही थी, तब ड्रैगन ने दबे पांव लद्दाख स्थित भारतीय सीमा में घुसपैठ की कोशिश करनी शुरू कर दी। भारतीय सैनिकों को जब इसकी भनक लगी तो वे चीनियों को रोकने पहुंच गए। 15 जून को गलवान में दोनों देशों की सेनाएं आमने-सामने हो गईं। चीनी सैनिक लोहे के रॉड और कंटीले तार लेकर आए थे। इस संघर्ष में भारत के 20 जवान शहीद हुए थे। मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो चीन के ज्यादा सैनिक मारे गए थे। हालांकि, चीन ने केवल चार सैनिकों के मारे जाने की ही पुष्टि की है।
9 दिसंबर 2022 की घटना
गलवान संघर्ष के बाद चीन और भारत के रिश्ते एकदम से ठंडे पड़ गए हैं। लद्दाख सीमा पर जारी गतिरोध के बीच चीन ने एकबार फिर अरूणाचल प्रदेश के तमांग सेक्टर में घुसपैठ करने की कोशिश शुरू कर दी। लेकिन इसबार पहले से मुस्तैद भारतीय जवानों ने गलवान दोहराने नहीं दिया और चीनियों को पीट-पीट कर खदेड़ दिया।