Ground Report : हार-जीत और सरकार पर लग रहे दांव

Update:2019-05-14 17:04 IST
Ground Report : हार-जीत और सरकार पर लग रहे दांव

जबलपुर। लोकसभा चुनाव परिणाम के लिए अब कुछ ही दिन बाकी रह गए हैं। मध्य प्रदेश में महाकौशल की बालाघाट सीट को छोड़कर शेष सीटों पर मुख्य मुकाबला कांग्रेस और भाजपा के बीच ही है। कड़ी धूप के बावजूद मतदाताओं ने प्राय: सभी सीटों पर बंपर वोटिंग कर अपना खामोश निर्णय दे दिया है। इस चुनाव में वह माहौल नजर नहीं आया जो एक दशक पहले नजर आता था। इस बार न कोई लहर दिखी और न ही 2014 जैसा मोदी करंट। इसके बावजूद दोनों प्रमुख दल - कांग्रेस, भाजपा अपनी-अपनी जीत के दावे कर रहे हैं। भाजपाई खेमे से दावे किए जा रहे हैं कि इस बार भी मोदी करंट के कारण बंपर वोटिंग हुई, वहीं कांग्रेसियों का मानना है कि मोदी के खिलाफ मतदाताओं ने बढ़-चढ़कर वोट किया।

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मतदाताओं के खामोशी भरे फैसले पर भले राजनीतिक दल और विश्लेषक भले ही असमंजस में फंसे हैं लेकिन एक वर्ग ऐसा भी है जिसको जीत-हार का सीधा फायदा या नुकसान होने वाला है। इनके लिए चुनाव महज एक कमाई का जरिया मात्र है और उनको राजनीतिक दल की हार-जीत से कोई सरोकार नहीं है। दूसरी ओर चुनाव परिणाम को लेकर अपने-अपने प्रत्याशियों के लिए ऊंची-ऊंची शर्त भी लगाई जा रही हैं। शर्तबाजी का दायरा दोस्तों से लेकर सट्टाबाजार तक फैला है। सटोरियों की नजर में मोदी लहर अब भी चलने की बात की जा रही है, दबे छुपे स्वर में कांग्रेसी भी कुछ ऐसा ही मान रहे हैं। शर्त इस बात पर भी लगाई जा रही है कि केंद्र में किसकी सरकार बनेगी और कौन प्रधानमंत्री बनेगा। सट्टा बाजार में नरेंद्र मोदी का बोलबाला है, अधिकतर का मानना है कि केंद्र में पुन: मोदी सरकार बनेगी, यद्यपि कुछ ऐसे भी हैं जिनका मानना है कि एनडीए को बहुमत नहीं मिलेगा और इस स्थिति में मोदी का पीएम बन पाना मुश्किल हो सकता है। लोग गैर एनडीए सरकार की बात को थोड़ा स्वीकार भी कर रहे हैं, लेकिन यूपीए सरकार पर दांव लगाने को सिरे से खारिज कर रहे हैं।

भाजपा को समूचे महाकौशल में मजबूती देने वाली जबलपुर संसदीय सीट में पुराने प्रतिद्वंद्वी राकेश सिंह और विवेक कृष्ण तन्खा के बीच मुकाबला है। पूरे चुनाव प्रचार के दौरान राकेश सिंह और उनके रणनीतिकार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम को ज्यादा प्रचारित करते रहे, जबकि कांग्रेस प्रत्याशी विवेक तन्खा स्थानीय विकास के मुद्दों को लेकर अपने अभियान को आक्रामक बनाए रहे। जबलपुर में 23 साल से भाजपा काबिज है, और उसके सिपहसालार मोदी के नाम के सहारे जीत का भरोसा जता रहे हैं, जबकि कांग्रेस कार्यकर्ताओं को अपने प्रत्याशी की योग्यता, न्याय योजना, किसान ऋण माफी योजना के अच्छे नतीजे की अपेक्षा है।

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बात बालाघाट की करें तो यहां मुकाबला चतुष्कोणीय है। क्षेत्र के कद्दावर नेता और पूर्वमंत्री गौरीशंकर बिसेन ने पहले तो अपनी पुत्री मौसम हरिनखेड़े की टिकट के लिए जोर लगाया। जब वह इसमें सफल नहीं हुए तो उन्होंने अपने विरोधी और निवृतमान भाजपा सांसद बोधसिंह भगत का टिकट कटवाकर अपने गोल के ढालसिंह बिसेन को टिकट दिला दिया। इससे नाराज बोधसिंह निर्दलीय ही मैदान में डट गए। इस सीट से कांग्रेस ने मधुभगत को उम्मीदवार बनाया है। गुटीय राजनीति के कारण वह मतदाताओं के बीच कितनी पैठ बना सके, यह कहना मुश्किल है। भाजपा के ढालसिंह, निर्दलीय बोध सिंह तथा कांग्रेस के मधु भगत के बीच सपा-बसपा के संयुक्त उम्मीदवार एवं पूर्व सांसद कंकर मुंजारे भी चुनाव मैदान में किस्मत आजमा रहे हैं। इन चारों नेताओं की जमीनी पकड़ है, लिहाजा मुकाबला चतुष्कोणीय और कांटे का है।

दमोह में प्रहलाद-प्रताप में किस पर मतदाताओं ने विश्वास जताया है, इस पर सबकी निगाह लगी हुई हैं। दमोह में 1989 से लगातार 8 बार भाजपा चुनाव जीत रही है। लगातार दूसरी बार भाजपा प्रत्याशी के रूप में खड़े प्रहलाद पटेल को 2014 के चुनाव में 56.25 फीसदी मत मिले थे, वहीं कांग्रेस के चौधरी महेन्द्र प्रताप को 32.87 प्रतिशत वोट मिले थे। भाजपा उम्मीदवार ने 2,13,299 मतों से जीत हासिल की थी। बसपा 3.46 फीसदी वोट लेकर तीसरे स्थान पर थी। इस चुनाव में नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव के पुत्र अभिषेक भार्गव टिकट मांग रहे थे। गोपाल भार्गव और प्रहलाद पटेल की राजनीतिक कटुता किसी से छिपी नहीं है। टिकट वितरण में हुए विवाद और उसके बाद कार्यकर्ताओं की उदासीनता तथा लोधी वोट बैंक को विभाजित करने की तुरूप रणनीतिक चाल के बीच कांग्रेस ने प्रताप सिंह लोधी को मैदान में उतारा है। इसके अलावा स्थानीय बनाम बाहरी प्रत्याशी की खूब चर्चा रही।

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