Jayaprakash Narayan Jayanti: सम्पूर्ण क्रांति के जननायक
Jayaprakash Narayan Jayanti: 1929 में भारत लौटने पर, नेहरू के निमंत्रण और मौलाना अबुल कलाम आज़ाद के स्वतंत्रता संग्राम में भागीदारी के भाषण से आकर्षित होकर जेपी कांग्रेस में शामिल हो गए। कुछ साल बाद, जेपी कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी (सीएसपी) के संस्थापक सदस्यों में से एक बन गए।
Jayaprakash Narayan Jayanti: देश में सुनी गई सबसे चर्चित राजनीतिक आह्वानों में से एक था - "संपूर्ण क्रांति"। यह आह्वान 1974 में पटना में एक रैली में किया गया था और ये आह्वान किया था एक वृद्ध स्वतंत्रता सेनानी, समाजवादी और जवाहरलाल नेहरू के मित्र, जयप्रकाश नारायण ने, जिन्हें जेपी के नाम से जाना जाता था। आज जेपी की जयंती है। बिहार के सिताबदियारा में जन्मे जेपी आज 122 साल के हो जाते। 1922 से बर्कले, कैलिफोर्निया में काम करने और पढ़ाई करने के दौरान कार्ल मार्क्स के विचारों ने उन्हें प्रभावित किया। 1929 में भारत लौटने पर, नेहरू के निमंत्रण और मौलाना अबुल कलाम आज़ाद के स्वतंत्रता संग्राम में भागीदारी के भाषण से आकर्षित होकर जेपी कांग्रेस में शामिल हो गए। कुछ साल बाद, जेपी कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी (सीएसपी) के संस्थापक सदस्यों में से एक बन गए।
आज़ादी के बाद का सफर
स्वतंत्रता के बाद जेपी ने कांग्रेस से सीएसपी को अलग कर लिया और सोशलिस्ट पार्टी बनाई। बाद में उन्होंने जे बी कृपलानी की किसान मजदूर प्रजा पार्टी के साथ विलय कर प्रजा सोशलिस्ट पार्टी बना ली। इसके तुरंत बाद केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल होने के नेहरू के आह्वान को ठुकराने के बाद, जेपी ने चुनावी राजनीति से पूरी तरह से दूर होने का फैसला किया और खुद को आचार्य विनोबा भावे के भूदान आंदोलन में शामिल कर लिया। इस आंदोलन का उद्देश्य भूमिहीनों को स्वेच्छा से अपनी जमीन का एक हिस्सा देने के लिए राजी करना था।
चुनावी राजनीति
जेपी 1974 में फिर से चुनावी राजनीति में लौट आए और चुनावी लड़ाई में न होने के बावजूद वे एक ऐसा ध्रुव बन गए जिसके इर्द-गिर्द उस समय की राजनीति घूमती रही। 1970 के दशक की बेचैनी जून 1975 में आपातकाल की घोषणा से काफ़ी पहले शुरू हो गई थी। गुजरात में अनाज की कमी और बढ़ती कीमतों की वजह से छात्रों के मेस बिल बहुत बढ़ गए थे। 1973 में जब अहमदाबाद के एल डी इंजीनियरिंग कॉलेज के छात्रों ने विरोध प्रदर्शन शुरू किया तो उनको तनिक एहसास नहीं था कि उन्होंने क्या चिंगारी जलाई है। इस विरोध में मज़दूर, शिक्षक और कई अन्य समूह शामिल हो गए।
जेपी ने नवनिर्माण आंदोलन के बारे में लिखा है कि इस आन्दोलन ने उन्हें आईडिया दिए। जेपी कहते हैं : “मैंने गुजरात में छात्रों को लोगों के समर्थन से राजनीतिक बदलाव लाते देखा और मुझे पता था कि यही रास्ता है।” इसका उपाय यह था कि प्रत्यक्ष चुनावी मार्ग के अलावा अन्य मार्गों की खोज की जाए और उनका अधिकतम लाभ उठाया जाए।
नवनिर्माण आन्दोल
नवनिर्माण आंदोलन ही वह लहर थी जिस पर जेपी सवार थे और जिसे उन्होंने आगे बढ़ाया। यह व्यवस्था से ऊब का एक छोटा सा हिस्सा था। कई समूहों और समुदायों को यह महसूस होने लगा था कि उन्हें उनका हक नहीं मिला है। ये समूह अधिक मुखर होते गए।
नेतृत्व
जिस बदलाव की ज़रूरत थी, उसका नेतृत्व करने के लिए 20 साल के अपने आत्म-निर्वासन से उभरकर, जेपी ने प्रतिस्पर्धी ताकतों के बीच सुलह के पुल से लेकर संपूर्ण क्रांति के समर्थक तक की नाटकीय छलांग लगाई। जेपी के नेतृत्व में सम्पूर्ण क्रांति का बिगुल बजा। बिहार में इस आंदोलन की सबसे व्यापकता देखी गई। आन्दोल की परिणीति इमरजेंसी में हुई। उसके बाद देश ने इंदिरा गांधी की हार देखी। जनता पार्टी का उदय और पतन देखा।
1970 के दशक में जो उथल-पुथल थी, उसमें अधीरता, एंग्री यंग मैन और बदलाव की चाहत को भारतीय विशेषता के रूप में देखा जा रहा था। जेपी ने त्याग की अपनी भावना का इस्तेमाल किया - कुछ ऐसा जिसकी नकल बाद में वी पी सिंह ने करने की कोशिश की और अन्ना हजारे भी ऐसा करते हुए दिखना चाहते थे। लेकिन गहरे सामाजिक और आर्थिक बदलाव के समय, जब आजादी के बाद की नई पीढ़ी बड़ी हो रही थी, जेपी का विजन वह दस्तावेज था जिसके ज़रिए केंद्र में एक गैर-कांग्रेसी सरकार की कल्पना और निर्माण संभव हुआ।