ओडीशा के पिछड़े कंधमाल जिले के एक गरीब सब्जी विक्रेता जालंधर नायक ने अकेले अपने बूते पर एक पहाड़ काट कर आठ किलोमीटर लंबा रास्ता तैयार कर दिया है ताकि उनके तीन बच्चों को स्कूल तक आने-जाने में आसानी हो। इसके लिए उन्होंने बीते दो साल दिन-रात कड़ी मेहनत की। अब स्थानीय अखबारों में उनके इस कारनामे की खबरें छपने के बाद लोग अब उन्हें ओडीशा के दशरथ मांझी और माउंटेनमैन के नाम से जानने लगे हैं।
बिहार के दशरथ मांझी ने भी इसी तरह 22 साल तक कड़ी मेहनत कर पहाड़ काट कर रास्ता बनाया था। अब जिला प्रशासन ने कंधमाल उत्सव के दौरान नायक को सम्मानित करने का फैसला किया है। कंधमाल जिले के एक अति पिछड़े इलाके में रहने वाले नायक ने अपने जीवन में कभी स्कूल का मुंह नहीं देखा। लेकिन वह नहीं चाहते थे कि उनके बच्चे भी उन्हीं की तरह अनपढ़ रहें। उनके गांव से शहर जाने के लिए कोई सडक़ नहीं थी।
कच्चा रास्ता पहाड़ से घूम कर जाता था कि जिससे उनके बच्चों को काफी दिक्कत होती थी। नायक का गुमशाही गांव बेहद पिछड़े व दुर्गम इलाके में है। यही वजह है कि वहां रहने वाले तमाम परिवार रोजगार की तलाश में पड़ोस के फूलबनी या कंधमाल जिला मुख्यालय जा कर बस गए हैं। लेकिन दूसरों की तरह ऐसा करने की बजाय नायक ने हालात को अपने अनुरूप ढालने का फैसला किया।
नायक के बच्चों को स्कूल तक पहुंचने के लिए रोजाना टेढ़ी-मेढ़ी और पथरीली पगडंडियों से होकर फूलबनी जाने वाली सडक़ तक जाना पड़ता था। पहाड़ का चक्कर लगा कर जाने की वजह से उनके तीनों बेटों को रोजाना आने-जाने में तीन-तीन घंटे का समय लगता था। लेकिन आखिर उनके दिमाग में पहाड़ काटने का ख्याल कैसे आया। इस सवाल पर नायक कहते हैं, ‘स्कूल जाते समय बच्चों को पथरीले रास्तों पर काफी दिक्कत होती थी। कई बार गिरने से उनको चोट भी लग जाती थी। इसलिए मैंने पहाड़ काट कर उनके लिए रास्ता बनाने का फैसला किया ताकि उनको आने-जाने में आसानी हो।’
नायक के गांव से फूलबनी शहर को जोडऩे वाली मुख्य सडक़ के बीच की दूरी 15 किलोमीटर थी लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और हथौड़े, फावड़े और छेनी के साथ पहाड़ काटने के काम में जुट गए। दो साल तक उनके इस काम की किसी को भनक तक नहीं लगी। इस बीच उन्होंने लगभग आठ किलोमीटर सडक़ बना ली। उनका लक्ष्य अगले तीन साल में बाकी सात किलोमीटर सडक़ तैयार करना था। हाल में स्थानीय अखबारों में खबरें छपने और लोकल टीवी चैनलों पर इसकी खबर प्रसारित होने के बाद जिला प्रशासन के तमाम अधिकारी हैरत में रह गए।
अब जिला प्रशासन ने जहां नायक को उनके दो साल के काम के लिए मनरेगा के तहत पूरी मजदूरी देने का फैसला किया है, वहीं बाकी सात किलोमीटर सडक़ निर्माण का काम भी अपने हाथों में ले लिया है। इससे नायक बेहद खुश है। वह कहते हैं, ‘मेरा अधूरा सपना अब सरकार पूरा करेगी। इससे काम जल्दी पूरा हो जाएगा।’
कंधमाल की जिलाशासक वृंदा डी. कहती हैं, ‘नायक की मेहनत और लगन देख कर मैं हैरत में हूं। उन्हें उनकी मेहनत के लिए पूरी मजदूरी दी जाएगी।’ वहीं फूलबनी के बीडीओ एसके जेना कहते हैं कि नायक का गांव बेहद दुर्गम इलाके में है और वहां रहने लायक हालात नहीं हैं। वह बताते हैं कि जिला प्रशासन ने काफी पहले उनको गांव से शहर में आ कर बसने का प्रस्ताव दिया था लेकिन नायक ने इससे इनकार कर दिया।
महज अपने बच्चों को स्कूल भेजने के लिए नायक ने जिस तरह बीते दो साल की हाड़-तोड़ मेहनत से पहाड़ काट कर रास्ता बना दिया, उससे उस इलाके में उन्हें माउंटेनमैन कहा जाने लगा है। उनकी तुलना अब बिहार के माउंटेनमैन के नाम से मशहूर दशरथ मांझी से होने लगी है। जालंधर नायक रातोंरात असली जीवन में भी नायक बन गए हैं। लेकिन खुद नायक अपने काम को महान नहीं मानते। वह कहते हैं, मैंने तो यह सब महज इसलिए किया ताकि तीनों बेटे बिना किसी दिक्कत के पढ़-लिख सकें।