Jammu-Kashmir Voting: बाहरी मतदाताओं को लेकर कश्मीर में सियासी माहौल गरमाया, नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी ने खोला मोर्चा
Jammu-Kashmir Voting: नेशनल कांफ्रेंस के मुखिया और पूर्व मुख्यमंत्री डॉक्टर फारूक अब्दुल्ला भी इस फैसले से नाराज बताए जा रहे हैं।
Jammu-Kashmir Voting: जम्मू-कश्मीर में दूसरे राज्य के लोगों को वोट का अधिकार देने के फैसले के बाद सियासी माहौल गरमा गया है। पीडीपी की मुखिया और राज्य की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती के तीखे विरोध के बाद अब नेशनल कान्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला ने भी भाजपा पर बड़ा आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर में जीत हासिल करने के लिए भाजपा दूसरे राज्यों के मतदाताओं को इंपोर्ट कर रही है।
नेशनल कांफ्रेंस के मुखिया और पूर्व मुख्यमंत्री डॉक्टर फारूक अब्दुल्ला भी इस फैसले से नाराज बताए जा रहे हैं। वे इस मुद्दे पर विरोध जताने के लिए सभी दलों को एकजुट करने की मुहिम में जुट गए हैं। इसी सिलसिले में उन्होंने सोमवार को अपने आवास पर सभी दलों के नेताओं की बड़ी बैठक बुलाई है। भाजपा को छोड़कर अन्य सभी दलों को इस बैठक में आमंत्रित किया गया है। माना जा रहा है कि इस बैठक के बाद सभी दल मिलकर इस फैसले के खिलाफ आंदोलन छेड़ेंगे। दूसरी ओर भाजपा ने आयोग के इस फैसले का स्वागत किया है।
क्षेत्रीय दलों को सता रहा इस बात का डर
अभी तक इस मुद्दे पर कांग्रेस की आधिकारिक प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है मगर पीडीपी और नेशनल कांफ्रेंस ने इस फैसले का तीखा विरोध शुरू कर दिया है। दोनों दोनों दलों ने खुला आरोप लगाया है कि भाजपा अपने सियासी फायदे के लिए इस फैसले को लागू कर रही है। दरअसल जम्मू-कश्मीर में काफी संख्या में हिंदी भाषी इलाकों के लोग रहते हैं।
पहले केवल स्थानीय लोगों को भी चुनाव में वोट डालने का अधिकार हासिल था और इस कारण क्षेत्रीय दलों को पूरा फायदा मिलता था। अब बाहरी मतदाताओं को भी मतदान का अधिकार दिए जाने के बाद इन दोनों दलों को बड़े सियासी नुकसान का डर सता रहा है। इसी कारण क्षेत्रीय दलों ने चुनाव आयोग और भाजपा के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है।
आयोग ने क्या लिया है फैसला
जम्मू-कश्मीर के मुख्य चुनाव आयुक्त ह्रदयेश कुमार ने बताया कि राज्य मंक आमतौर पर रहने वाले दूसरे राज्यों के लोग भी मतदाता सूची में अपना नाम जुड़वा सकते हैं। ऐसे लोगों को जम्मू-कश्मीर में होने वाले चुनावों में मतदान का अधिकार हासिल होगा। उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर में किराये पर रहने वाले लोग भी मतदाता सूची में अपना नाम दर्ज करा सकते हैं। दूसरे राज्यों के छात्र, मजदूर, कर्मचारी या दूसरे लोग लोगों को यह मौका मुहैया कराया जाएगा। इसके साथ ही जम्मू-कश्मीर में तैनात दूसरे राज्यों के सशस्त्र बल के जवानों को भी मतदाता सूची में नाम दर्ज कराने का मौका दिया जाएगा।
चुनाव वालों के इस फैसले के बाद राज्य में करीब 20 से 25 लाख नए मतदाता बनने की उम्मीद है। सियासी जानकारों का मानना है कि आयोग के इस फैसले से राज्य के सियासी समीकरण पर बड़ा असर पड़ेगा और नए मतदाता चुनाव में हार-जीत का फैसला करने में बड़ी भूमिका निभाएंगे। इसी कारण क्षेत्रीय दलों ने विरोध का मोर्चा खोल दिया है।
फारूक अब्दुल्ला ने बुलाई सर्वदलीय बैठक
जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री और पीडीपी की मुखिया महबूबा मुफ्ती ने इस फैसले को चुनावी लोकतंत्र के ताबूत में आखिरी कील बताया है। उन्होंने कहा कि इस फैसले के जरिए भाजपा को सियासी फायदा पहुंचाने की साजिश रची गई है। स्थानीय लोगों को शक्तिहीन बनाकर चुनावी परिणाम को प्रभावित करने के लिए यह कदम उठाया गया है। भाजपा का हर कदम राष्ट्रहित में नहीं बल्कि अपने फायदे के लिए है।
नेशनल कांफ्रेंस के उपाध्यक्ष और जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने आरोप लगाया कि भाजपा की जीत सुनिश्चित करने के लिए बाहरी मतदाताओं को इंपोर्ट करने का प्लान बनाया गया है। उन्होंने सवाल किया कि क्या भाजपा को जम्मू-कश्मीर के वास्तविक मतदाताओं के समर्थन पर भरोसा नहीं है? उन्होंने कहा कि इसीलिए भाजपा सीटें जीतने के लिए अस्थायी मतदाताओं को आयात कर रही है।
आयोग के इस फैसले के बाद नेशनल कांफ्रेंस के मुखिया डॉक्टर फारूक अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती ने सभी सियासी दलों को एकजुट करने का फैसला किया है। इसी सिलसिले में फारूक अब्दुल्ला ने सोमवार को भाजपा को छोड़कर सभी सियासी दलों की अपने आवास पर बैठक बुलाई है।
भाजपा ने किया फैसले का स्वागत
क्षेत्रीय दलों के जोरदार विरोध के बीच भाजपा ने आयोग के इस फैसले का स्वागत किया है। भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता अल्ताफ ठाकुर ने कहा कि लोग जहां रहते हैं, उन्हें वहां वोट डालने का अधिकार हासिल होना चाहिए। उन्होंने कहा कि अगर दिल्ली में मजदूरी करने वाले को वोट देने का अधिकार हासिल है तो जम्मू-कश्मीर में काम करने वालों को वोट देने का अधिकार क्यों नहीं होना चाहिए।
चुनावी राजनीति पर पड़ेगा बड़ा असर
जानकारों का कहना है कि आयोग के इस फैसले से जम्मू-कश्मीर में करीब 30 फ़ीसदी नए वोटर बढ़ेंगे। इनमें सबसे बड़ी संख्या सुरक्षाबलों के जवानों की होगी। जम्मू-कश्मीर में उत्तर प्रदेश और बिहार के काफी संख्या में प्रवासी मजदूर भी हैं। अब इनके नाम भी मतदाता सूची में जोड़े जाएंगे। चुनावी राजनीति के जानकारों का कहना है कि आयोग के फैसले से राज्य का चुनावी समीकरण पूरी तरह बदल जाएगा।
घाटी में अभी तक नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी का ही दबदबा दिखता रहा है। भाजपा राज्य में मजबूती से पैठ नहीं बना पाई है। नए जुड़ने वाले मतदाताओं का स्थानीय पार्टियों से ज्यादा सरोकार नहीं होगा। ऐसे में राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा की मजबूती के कारण उसे ही सबसे बड़ा फायदा मिलने की उम्मीद है।