Judge Property: जजों की संपत्ति सार्वजनिक की जाए, छुट्टियां घटें और कोटा लागू हो

Judge Property Disclose: शीर्ष अदालत के फैसलों का हवाला देते हुए समिति ने कहा, सुप्रीम कोर्ट इस हद तक पहुंच गया है कि जनता को सांसद या विधायक के रूप में चुनाव में खड़े लोगों की संपत्ति जानने का अधिकार है।;

Update:2023-08-09 13:15 IST
Judge Property Disclose (photo: social media)

Judge Property Disclose: कानून और न्याय पर संसद की स्थायी समिति ने संसद में पेश एक रिपोर्ट में सिफारिश की है कि उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों को अनिवार्य रूप से अपनी संपत्ति की घोषणा करनी चाहिए जैसा कि राजनेताओं और नौकरशाहों के मामले में होता है। इसमें कहा गया है कि उच्च न्यायपालिका के न्यायाधीशों द्वारा संपत्ति की घोषणा से सिस्टम में अधिक विश्वास और विश्वसनीयता आएगी।

Also Read

क्या कहा समिति ने

भाजपा सांसद और बिहार के पूर्व डिप्टी सीएम सुशील मोदी की अध्यक्षता वाली समिति ने कहा है कि : चूँकि स्वैच्छिक आधार पर न्यायाधीशों द्वारा संपत्ति की घोषणा पर सुप्रीमकोर्ट के अंतिम प्रस्ताव का अनुपालन नहीं किया गया है, अतः समिति सरकार को उच्च न्यायपालिका (सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट) के न्यायाधीशों के लिए वार्षिक आधार पर अपनी संपत्ति रिटर्न प्रस्तुत करने को अनिवार्य बनाने के लिए उचित कानून लाने की सिफारिश करती है।

जज क्यों अलग रहें?

शीर्ष अदालत के फैसलों का हवाला देते हुए समिति ने कहा, सुप्रीम कोर्ट इस हद तक पहुंच गया है कि जनता को सांसद या विधायक के रूप में चुनाव में खड़े लोगों की संपत्ति जानने का अधिकार है। “जब ऐसा है, तो यह तर्क गलत है कि न्यायाधीशों को अपनी संपत्ति और देनदारियों का खुलासा करने की आवश्यकता नहीं है। कोई भी व्यक्ति जो सार्वजनिक पद पर है और सरकारी खजाने से वेतन लेता है, उसे अनिवार्य रूप से अपनी संपत्ति का वार्षिक रिटर्न प्रस्तुत करना चाहिए।''

छुट्टियां भी घटें

समिति ने सुप्रीमकोर्ट और हाईकोर्ट सहित अदालतों में लंबित ढेरों मामलों पर भी चिंता व्यक्त की और न्यायपालिका की छुट्टियों में कटौती करने की सिफारिश की। पैनल ने सुझाव देते हुए कहा, "यह एक निर्विवाद तथ्य है कि न्यायपालिका में छुट्टियां एक 'औपनिवेशिक विरासत' है और पूरी अदालत के सामूहिक रूप से छुट्टियों पर जाने से वादियों को गहरी असुविधा होती है।" सभी न्यायाधीशों को एक ही समय में, पूरे वर्ष अलग-अलग समय पर अपनी छुट्टी लेनी चाहिए ताकि अदालतें लगातार खुली रहें।

आरक्षण भी हो

समिति ने महिलाओं, अल्पसंख्यकों और समाज के हाशिए पर रहने वाले वर्गों के लिए उच्च न्यायपालिका में आरक्षण की भी सिफारिश की। समिति ने तर्क दिया कि शीर्ष अदालत और उच्च न्यायालय 'विविधता की कमी' से पीड़ित हैं क्योंकि संवैधानिक अदालतों में इन वर्गों (एससी / एसटी, ओबीसी, महिलाओं और अल्पसंख्यकों) का प्रतिनिधित्व नहीं है। देश की सामाजिक विविधता को प्रतिबिंबित नहीं करता। पैनल ने सुझाव दिया कि उच्च न्यायपालिका में आरक्षण से संबंधित प्रावधानों को प्रक्रिया ज्ञापन (एमओपी) में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया जाना चाहिए, जो वर्तमान में अंतिम रूप दिया जा रहा है।

समिति ने सुप्रीम कोर्ट की क्षेत्रीय पीठों की स्थापना का भी समर्थन किया क्योंकि संविधान के तहत 'न्याय तक पहुंच' एक मौलिक अधिकार है और देश के दूर-दराज से यात्रा करने वाले गरीब लोगों को न्याय पाने में कठिनाई होती है।

Tags:    

Similar News