Lok Sabha Election 2024: लोकतंत्र का उत्सव, वोट डालने से पहले एक नजर इधर भी डालें

Lok Sabha Election 2024: क्या आज भी चुनावी माहौल वैसा ही है जैसा आज से कुछ दशक पहले था? राजनीति में भी काफी बदलाव आ गया है तो इस बार आप जब वोट देने जाएं तो कुछ बातों को ज़रूर याद रखें।

Written By :  Yogesh Mishra
Update:2024-04-05 11:29 IST

Lok Sabha Election 2024 (Image Credit-Social Media)

Lok Sabha Election 2024: देश का सबसे बड़ा चुनाव चल रहा है। हर तरफ सरगर्मी है, खासकर राजनीतिक दलों, प्रत्याशियों, नेताओं में। सन 2024 का चुनाव है सो बहुत कुछ नया है। टेक्नोलॉजी, कम्युनिकेशन में हुए डेवलपमेन्ट का असर पड़ना लाज़मी है सो चुनावों पर भी है। आर्टिफीशियल टेक्नोलॉजी, फेस रिकग्निशन, सोशल मीडिया, इंफ्लुएंसर, वगैरह का भरपूर इस्तेमाल है।

लोक सभा चुनाव 2024  (Lok Sabha Election 2024)

नेताओं और राजनीतिक दलों की सहूलियत के लिए ये सब नई नई चीजें तो आ गई हैं । लेकिन बहुत सारी पुरानी चीजें विलुप्त हैं। ऐसी चीजें जिन पर हमें नाज़ हुआ करता था, जो लोकतंत्र के लिए गौरव की बातें थीं, उसका आधार थीं।

राजनीतिक सिद्धांत, विचारधारा, मूल्य, निष्ठा, संस्कार... अब ढूंढे नहीं मिलते। जैसे आउट ऑफ फैशन हो गए हैं। अब तो चुनावों में ये विलुप्त हैं। इनकी बात करना बेमानी हो गया है। कोई टीवी चैनल, विश्लेषक, प्रचारक इनकी चर्चा नहीं करता, कोई सोचता भी नहीं। आज इंफ्लुएंसर हैं, स्टार प्रचारक हैं । लेकिन गंभीर चर्चा गायब है। हुंकार, ललकार है । लेकिन विचारधारा लापता है। संस्कार का तो कहना ही क्या, इतिहास के पन्नों में ही दर्ज हैं। अब तो राजनीति और संस्कार विपरीत अर्थ हैं।

Lok Sabha Election 2024 (Image Credit-Social Media)

पहले नेता किसी एक विचारधारा के अनुयायी होते थे। कोई कोई निर्वाचन क्षेत्र किसी खास विचारधारा के गढ़ कहलाये जाते थे। जहां से उसी ‘वाद’ और ‘विचार’ का नेता या पार्टी जीतती थी। अब ऐसा नहीं रहा। जब नेताओं द्वारा पार्टियां जूतों और कपड़ों की मानिंद बदली जाती हैं तो काहे की विचारधारा।

Lok Sabha Election 2024 (Image Credit-Social Media)

वैसे "आया राम गया राम" कोई आज की बात नहीं है। यह तो 57 साल पहले यानी सन 67 में ही शुरू हो गया था। यही नहीं, हमारी ग्रैंड ओल्ड पार्टी यानी कांग्रेस में पहले विभाजन के संग इस अवधारणा की नींव बहुत पहले ही डाल दी थी, जो अब खूब फल फूल चुकी है और सबको सुहाती है। दलीय निष्ठा, विचारों की प्रतिबद्धता ये सब बातें 70 सालों में खत्म हो गईं।

सुहाता बाहुबल भी खूब है। यह भी एक बहुत बड़ा सवाल है। दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र और राजनीति-अपराध का मिश्रण भी। वह भी खुल्लमखुल्ला और जनता द्वारा पोषित।

Lok Sabha Election 2024 (Image Credit-Social Media)

हमारे संविधान निर्माताओं को लगा होगा कि चुनावी राजनीति में अपराधियों की घुसपैठ नहीं होगी, राजनीति की शुचिता बनी रहेगी । तभी अपराधियों को चुनाव में शिरकत करने से रोकने की कोई व्यवस्था नहीं की गई। लेकिन वहीं 1951 के जनप्रतिनिधित्व कानून में व्यवस्था कर दी गई कि सजायाफ्ता को चुनाव लड़ने नहीं दिया जाएगा। शुरू के चुनावों में तो अपराधियों ने नेता का चोला धारण नहीं किया।लेकिन इमरजेंसी के बाद के चुनावों में इनकी भरमार हो गई। सुप्रीम कोर्ट के कहने पर सन 1983 में राजनीति के अपराधीकरण पर वोहरा समिति का गठन हुआ।लेकिन राजनीतिक-आपराधिक गठजोड़ टूटने की बजाए आज तक कायम ही नहीं बल्कि और भी मजबूत है। कोर्ट के कई आदेश हुए, चुनावी सुधार के निर्देश हुए । लेकिन आज भी कोई पुख्ता व्यवस्था नहीं बन सकी। आज तक किसी चुनाव में किसी भी राजनीतिक दल ने अपने घोषणापत्र में राजनीति के अपराधीकरण के खिलाफ कोई वादा नहीं किया। 2019 में जो संसद सदस्य चुने गए उनमें से 43 फीसदी के खिलाफ आपराधिक मामले पेंडिंग थे। चूंकि कानून कहता है कि जब तक केस पेंडिंग है, जब तक सज़ा दे नहीं दी जाती तब तक कोई भी शख्स चुनाव लड़ने योग्य है। सो बरसों बरस अदालतों में केस चलते रहते हैं। चुनाव लड़े और जीते जाते हैं।

वैसे, सच्चाई यह है कि अगर घोषणापत्र में वादा कर भी देते तो भी होता क्या? वादे तो किसम किसम के होते हैं। पहले चुनाव से सिलसिला चला आ रहा है। हर बार घोषणाओं की लंबी फेहरिस्त होती है जिसके बारे में कोई जवाबदेही नहीं होती। घोषणा और वादा पूरा हो रहा कि नहीं, कोई निगरानी नहीं, कोई जवाबदेही, जिम्मेदारी नहीं। चुनाव आयोग है लेकिन उसे भी इससे कोई मतलब नहीं।

Lok Sabha Election 2024 (Image Credit-Social Media)

राजनीतिक दलों द्वारा किया गया कोई भी वादा कानूनी रूप से जवाबदेह नहीं है। ये अजीब बात है कि सामान्य कॉन्ट्रैक्ट या अनुबंध को तोड़ना अपराध माना जाता है लेकिन पार्टियों और जनता के बीच के चुनाव के समय हुए सामाजिक अनुबंध की कोई वकत ही नहीं है! इस अजीब स्थिति के खिलाफ सुप्रीमकोर्ट में याचिका हुई थी लेकिन जस्टिस एचएल दत्तू और अमिताव रॉय की पीठ ने कहा कि कानून में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, जो राजनीतिक दलों द्वारा वादे पूरे नहीं करने पर लागू होता हो। तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश ने कहा था कि न्यायपालिका राजनीतिक व्यवस्था में पैदा होने वाली हर समस्या के लिए जवाबदेह नहीं है। फिर भी कोर्ट ने घोषणापत्र के मसले पर चुनाव आयोग को कुछ निर्देश दिए थे। आयोग ने भी इसे अचार संहिता में जोड़ दिया। अचार संहिता भी ऐसी जिसके उल्लंघन के खिलाफ आयोग खुद शक्तिविहीन है।

Lok Sabha Election 2024 (Image Credit-Social Media)

इस गंदगी के बीच अब भी गनीमत है कि बीते दस साल में कश्मीर से लेकर तलाक तक के कुछ बड़े गंभीर चुनावी वादे वाकई में पूरे हुए हैं।

सबसे बड़ा सवाल है कि सब खराबियों, बुराइयों, गड़बड़ियों के केंद्र में है कौन, नेता या जनता? कोई नेता अपने आप नहीं बन जाता, हम उसे बनाते हैं। कोई चुनाव अपने आप नहीं जीत जाता, हम उसे जिताते हैं। विचार-संस्कार गायब हो गए तो हमने क्या किया? अपराधी राजनीति में आ गए तो हमने उनको क्यों जिताया? घोषणा पत्र खोखले हैं तो हमने उनको क्यों मान लिया? घड़ी घड़ी बदलती निष्ठा वालों को क्यों सिर आंखों पर बिठाए रखा?

Lok Sabha Election 2024 (Image Credit-Social Media)

चुनाव तो समाज का असली दर्पण हैं। हम वही चुनते हैं जो हम चाहते हैं। अगर हम वोट नहीं डालते तब भी हम एक विकल्प चुनते हैं।

याद रखें, 1811 में फ्रेंच दार्शनिक जोसेफ दे मैसरे का दिया एक मशहूर कथन है : “हम वही सरकार पाते हैं जिसके हम लायक हैं।”

(लेखक पत्रकार हैं । दैनिक पूर्वोदय से साभार । )

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