Chacha Bhatija Politics: सियासत में चाचा को दांव देते भतीजे, जाने किसने चली कौन सी चाल ?

Chacha Bhatija Politics in Elections 2024: एनसीपी के मुखिया शरद पवार और अजित पवार के बीच महाराष्ट्र में हुई सियासी उठापटक तो अभी भी मीडिया में चर्चा का विषय बनी हुई है। ऐसे में चाचा और भतीजे की सियासी तकरार की विभिन्न घटनाओं पर नजर डालना जरूरी है।

Update: 2023-08-19 02:51 GMT

Chacha Bhatija Politics in Elections 2024: छत्तीसगढ़ में इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा उम्मीदवारों की पहली सूची जारी होते ही चाचा और भतीजे की जंग एक बार फिर सियासी हलकों में चर्चा का विषय बन गई है। इसका कारण यह है कि भाजपा ने छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के सियासी गढ़ माने जाने वाले पाटन विधानसभा क्षेत्र में उनके भतीजे विजय बघेल को चुनावी जंग में उतार दिया है। भाजपा की ओर से गुरुवार को मध्य प्रदेश में 39 और छत्तीसगढ़ में 21 उम्मीदवारों की पहली सूची जारी की गई। छत्तीसगढ़ की इस सूची में विजय बघेल का नाम भी शामिल है।

यह पहला मौका है जब भाजपा ने चुनाव कार्यक्रम की घोषणा से पहले ही अपने उम्मीदवारों की पहली सूची जारी की है। विजय बघेल को चुनावी अखाड़े में उतारे जाने से छत्तीसगढ़ की पाटन विधानसभा सीट पर चुनावी मुकाबला काफी दिलचस्प होने की उम्मीद जताई जा रही है। चाचा और भतीजे चौथी बार चुनावी अखाड़े में एक-दूसरे के खिलाफ ताल ठोकेंगे।

वैसे देश की सियासत में चाचा और भतीजे की यह सियासी तकरार पहली बार नहीं दिखेगी। इससे पूर्व भी देश के विभिन्न राज्यों में चाचा और भतीजे के बीच सियासी तकरार की कई चर्चित घटनाएं हुई हैं जिन्होंने मीडिया में सुर्खियां बटोरीं। एनसीपी के मुखिया शरद पवार और अजित पवार के बीच महाराष्ट्र में हुई सियासी उठापटक तो अभी भी मीडिया में चर्चा का विषय बनी हुई है। ऐसे में चाचा और भतीजे की सियासी तकरार की विभिन्न घटनाओं पर नजर डालना जरूरी है।

भूपेश बघेल और विजय बघेल (Bhupesh Baghel Vs Vijay Goyal Politics)

छत्तीसगढ़ में भाजपा ने बड़ा सियासी दांव चलते हुए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को घेरने का बड़ा प्रयास किया है। पार्टी ने पाटन विधानसभा सीट पर सांसद विजय बघेल को चुनावी अखाड़े में उतार दिया है। मौजूदा समय में विजय बघेल सांसद हैं और उन्होंने 2019 के लोकसभा चुनाव में दुर्ग सीट से जीत हासिल की थी। छत्तीसगढ़ की सियासत पर उनकी मजबूत पकड़ मानी जाती है और यही कारण है कि पार्टी ने उनकी उम्मीदवारी के जरिए बड़ा सियासी दांव चला है। वैसे यह पहला मौका नहीं है जब चाचा और भतीजे के बीच मुकाबला होगा बल्कि चौथी बार सियासी अखाड़े में दोनों आमने-सामने होंगे।

ओबीसी बहुल पाटन विधानसभा सीट को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का गढ़ माना जाता रहा है मगर भाजपा की ओर से उनके भतीजे विजय बघेल को चुनाव मैदान में उतारने से यहां का मुकाबला काफी रोमांचक हो गया है। पाटन विधानसभा क्षेत्र हमेशा से जिले की राजनीति का केंद्रबिंदु रहा है। इस सीट के मतदाता अपने विवेक के आधार पर फैसला करते रहे हैं और यही कारण है कि इस सीट के चुनावी नतीजे में उलटफेर दिखाता रहा है।

चाचा और भतीजे के बीच पहली बार मुकाबला 2003 के विधानसभा चुनाव में हुआ था जिसमें चाचा भूपेश बघेल ने बाजी मार ली थी। इस चुनाव में विजय बघेल एनसीपी के टिकट पर चुनाव मैदान में उतरे थे। पांच साल बाद 2008 में हुए विधानसभा चुनाव में भतीजे ने भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ते हुए चाचा को पटखनी दे दी थी। इस चुनाव में विजय बघेल ने अपने चाचा भूपेश बघेल को करीब आठ हजार मतों से हराया था।

2013 के विधानसभा चुनाव में भूपेश बघेल ने भतीजे से मिली हार का बदला ले लिया था। इस चुनाव में उन्होंने भतीजे विजय बघेल को करीब दस हजार मतों से हराने में कामयाबी हासिल की थी। 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने विजय बघेल की जगह मोतीलाल साहू को चुनाव मैदान में उतारा था। इस चुनाव में भूपेश बघेल ने मोतीलाल साहू के खिलाफ करीब 27,000 मतों से जीत हासिल की थी।
अब 2023 के विधानसभा चुनाव के दौरान पाटन विधानसभा क्षेत्र में एक बार फिर दिलचस्प जंग की बिसात बिछ गई है। पाटन में चौथी बार चाचा और भतीजे का मुकाबला होगा और इस मुकाबले पर अब सबकी निगाहें लगी हुई हैं।

शरद पवार और अजित पवार (Sharad Pawar Vs Ajit Pawar Politics)

चाचा और भतीजे की जंग का सबसे ताजा मामला महाराष्ट्र की सियासत में दिखाई पड़ा है। पिछले महीने की दो तारीख को अजित पवार ने आठ अन्य विधायकों के साथ एनसीपी के मुखिया शरद पवार के खिलाफ बगावत का बिगुल फूंक दिया था। अजित पवार लंबे समय से भाजपा से हाथ मिलाने की वकालत कर रहे थे जिसके लिए शरद पवार तैयार नहीं थे। बाद में अजित पवार ने बागी तेवर दिखाते हुए भाजपा से हाथ मिला लिया और वे महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम बनने में कामयाब रहे। उनका साथ देने वाले आठ विधायकों को महाराष्ट्र में कैबिनेट मंत्री पद का तोहफा मिला।

शरद पवार और उनके भतीजे अजित पवार के बीच लंबे समय से खींचतान चल रही थी और शरद पवार की ओर से अपनी बेटी सुप्रिया सुले को पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष बनाए जाने के बाद अजित पवार की नाराजगी और बढ़ गई। उन्होंने बागी तेवर दिखाते हुए अपने चाचा को बड़ा सियासी झटका दे दिया।
हालांकि अजित पवार की बगावत के बाद चाचा और भतीजे में चार राउंड की मुलाकात भी हो चुकी है। चाचा और भतीजे की इन मुलाकातों पर एनसीपी के सहयोगी दलों कांग्रेस और शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट) के कान भी खड़े हो गए हैं। कांग्रेस ने तो शरद पवार को घेरते हुए यहां तक कह डाला है कि उनकी ये मुलाकातें भ्रम पैदा करने वाली हैं। अभी हाल में पुणे में एक बिजनेसमैन के घर अजित पवार के साथ सीक्रेट मीटिंग के बाद शरद पवार की भावी रणनीति को लेकर तमाम सवाल उठाए जा रहे हैं।

हालांकि शरद पवार का कहना है कि उनके भाजपा से हाथ मिलाने का कोई सवाल ही नहीं है। उनका यह अभी कहना है कि उनकी रणनीति को लेकर सहयोगी दलों को भी कोई परेशानी नहीं है। उनका कहना है कि वे आगे भी भाजपा की अगुवाई वाले एनडीए के खिलाफ विपक्षी गठबंधन इंडिया को मजबूत बनाने की मुहिम में जुटे रहेंगे।

पशुपति कुमार पारस और चिराग पासवान (Pashupati Kumar Paras Vs Chirag Paswan Politics)

लोक जनशक्ति पार्टी के अध्यक्ष रामविलास पासवान के निधन के बाद से उनके बेटे चिराग पासवान का अपने चाचा पशुपति कुमार पारस के साथ सियासी विवाद चल रहा है। पारस खुद को रामविलास पासवान का राजनीतिक उत्तराधिकारी साबित करने की कोशिश में जुटे हुए हैं जबकि चिराग पासवान पिता की विरासत पर कब्जा जमाए रखना चाहते हैं। चाचा और भतीजे के इस विवाद के कारण लोक जनशक्ति पार्टी में विभाजन भी हो गया था और पारस ने पांच सांसदों के साथ एनडीए का दामन थाम लिया था। पारस को मोदी सरकार में कैबिनेट मंत्री भी बनाया गया था। पांच सांसदों के अलग होने के बाद चिराग पासवान पार्टी में अकेले सांसद बच गए थे। बाद में चाचा और भतीजे की यह जंग चुनाव आयोग तक पहुंच गई थी और चुनाव आयोग ने 5 अक्टूबर 2021 को पार्टी के दो टुकड़े कर दिए थे। मौजूदा समय में पारस राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी के मुखिया हैं जबकि चिराग पासवान ने लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) की कमान संभाल रखी है।

अब चिराग पासवान ने भी एनडीए का दामन थाम लिया है मगर चाचा और भतीजे में अब हाजीपुर लोकसभा सीट को लेकर संग्राम छिड़ गया है। 2019 के लोकसभा चुनाव में पारस ने हाजीपुर लोकसभा सीट से चुनाव जीता था और अब वे अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में इस सीट को छोड़ने के लिए तैयार नहीं है। दूसरी ओर चिराग पासवान का कहना है कि मेरे पिता रामविलास पासवान ने इस सीट का दशकों तक प्रतिनिधित्व किया और इस कारण इस सीट पर मेरा या मेरी मां का अधिकार बनता है।
पारस का कहना है कि पिछले लोकसभा चुनाव में उनके दिवंगत भाई रामविलास पासवान ने उन्हें हाजीपुर से चुनाव लड़ने का निर्देश दिया था। चिराग पासवान को उन्होंने जमुई सीट से चुनाव मैदान में उतारा था। ऐसे में वे अपने दिवंगत भाई की सीट का प्रतिनिधित्व करना जारी रखेंगे। उनका कहना है कि चिराग पासवान को उस क्षेत्र से ही मैदान में उतरना चाहिए जहां से उनके पिता ने उन्हें चुनाव मैदान में उतारा था।
बिहार में दलित वोटों का समीकरण साधने के लिए भाजपा ने चिराग पासवान को एनडीए में शामिल किया है जबकि उनके चाचा पशुपति पारस पहले से ही एनडीए में शामिल है। चिराग पासवान के एनडीए में शामिल होने के बाद उम्मीद जताई जा रही थी कि भाजपा का शीर्ष नेतृत्व जल्दी ही इस विवाद को सुलझा लेगा और दोनों नेताओं के बीच बयानबाजी बंद हो जाएगी मगर अभी तक भाजपा नेतृत्व को इस काम में कामयाबी नहीं मिल सकी है।

शिवपाल सिंह यादव और अखिलेश यादव (Shivpal Singh Yadav Vs Akhilesh Yadav Politics)

उत्तर प्रदेश के सियासी अखाड़े में शिवपाल सिंह यादव और अखिलेश यादव के बीच हुई सियासी तकरार ने भी सियासी हलकों में खूब सुर्खियां बटोरी थीं। एक जमाने में शिवपाल सिंह यादव को समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव का साया माना जाता था। उत्तर प्रदेश में 2012 के विधानसभा चुनाव के दौरान समाजवादी पार्टी की जीत के बाद मुलायम सिंह यादव के उत्तराधिकारी को लेकर बड़ा पेंच फ॔स गया था। कई दिनों की खींचतान के बाद मुलायम सिंह यादव ने अपने उत्तराधिकारी की इस जंग में बेटे अखिलेश यादव को आशीर्वाद दिया था और अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने में कामयाब हुए थे।

अखिलेश यादव ने 2012 से 2017 तक मुख्यमंत्री के रूप में उत्तर प्रदेश की कमान संभाली मगर बाद के दिनों में उनके अपने चाचा के साथ रिश्ते काफी तल्ख हो गए। इस दौरान अखिलेश ने समाजवादी पार्टी पर भी अपना प्रभुत्व कायम कर लिया। 2016 में मुलायम सिंह यादव ने एक बैठक बुलाई थी और इस बैठक में अखिलेश और शिवपाल दोनों को आमंत्रित किया था। इस बैठक के दौरान अखिलेश और शिवपाल के बीच बात इतनी ज्यादा बढ़ गई कि अखिलेश ने मुलायम सिंह यादव के सामने ही शिवपाल सिंह यादव से माइक छीन लिया था।

2017 के विधानसभा चुनावों से पहले चाचा और भतीजे में तीखी तकरार शुरू हो गई मगर अखिलेश यादव समाजवादी पार्टी और सिंबल पर कब्जा करने में कामयाब रहे। शिवपाल सिंह यादव ने 2018 में प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के नाम से नया दल बनाया। हालांकि नया दल बनाने के बाद वे अपनी ताकत नहीं दिखा सके। बीच-बीच में उनके भाजपा के नजदीक जाने की अटकलें भी लगाई जाती रहीं।
2022 के विधानसभा चुनाव के दौरान चाचा और भतीजा एक बार फिर नजदीक आ गए। शिवपाल सिंह यादव एक बार फिर समाजवादी पार्टी के टिकट पर जसवंतनगर से चुनाव मैदान में उतरे और उन्होंने जीत हासिल की। वैसे इस जीत के बाद चाचा और भतीजे में एक बार फिर दूरियां बढ़ गईं और दोनों ने इशारों में एक-दूसरे पर हमले शुरू कर दिए।

सपा संस्थापक मुलायम सिंह के निधन के बाद चाचा और भतीजे में एक बार फिर नजदीकी का रिश्ता बना। मुलायम सिंह के निधन से रिक्त हुई मैनपुरी लोकसभा सीट पर उपचुनाव के दौरान शिवपाल सिंह यादव ने अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव को चुनाव जिताने के लिए काफी मेहनत की। डिंपल ने इस सीट पर हुए उपचुनाव में बड़ी जीत हासिल की और इस जीत में शिवपाल सिंह यादव के योगदान को काफी महत्वपूर्ण माना गया। अब चाचा और भतीजे दोनों एक बार फिर नजदीक आ चुके हैं और दोनों नेता 2024 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को सबक सिखाने की बात कह रहे हैं।

प्रकाश सिंह बादल और मनप्रीत बादल (Parkash Singh Badal And Manpreet Badal Politics)

चाचा और भतीजे की लड़ाई का नजारा पंजाब की सियासत में भी दिखा था। प्रकाश सिंह बादल को पंजाब की सियासत का भीष्म पितामह कहा जाता रहा है और उन्होंने कई बार पंजाब के मुख्यमंत्री पद की कुर्सी संभाली। पंजाब पर उनकी मजबूत पकड़ मानी जाती थी मगर वे भी अपने परिवार में भतीजे की बगावत को नहीं रोक सके थे। दरअसल शिरोमणि अकाली दल में उत्तराधिकार की जंग शुरू होने के बाद प्रकाश सिंह बादल के भतीजे मनप्रीत बादल ने बगावत कर दी थी।

प्रकाश सिंह बादल अपने बेटे सुखबीर सिंह बादल को आगे बढ़ाने की कोशिश में जुटे हुए थे जो कि उनके भतीजे मनप्रीत बादल को नागवार गुजरा। प्रकाश सिंह बादल की इन कोशिशों से नाराज होकर मनप्रीत बादल ने 2010 में अकाली दल से अपना रास्ता अलग कर लिया था। दो साल बाद लेफ्ट के साथ मिलकर उन्होंने अपनी नई पार्टी बना ली थी। हालांकि उनकी नई पार्टी पीपुल्स पार्टी ऑफ पंजाब को ज्यादा सियासी कामयाबी नहीं मिल सकी। अब प्रकाश सिंह बादल का निधन हो चुका है और शिरोमणि अकाली दल पर उनके बेटे सुखबीर सिंह बादल का प्रभुत्व पूरी तरह कायम हो चुका है।

राज ठाकरे और बाल ठाकरे

महाराष्ट्र की सियासत में शिवसेना के संस्थापक बालासाहेब ठाकरे को बड़ी सियासी ताकत माना जाता था। उन्होंने अपने दम पर शिवसेना को काफी बुलंदियों पर पहुंचने में कामयाबी हासिल की थी। शिवसेना में बाल ठाकरे के बाद राज ठाकरे को काफी ताकतवर माना जाता था और सियासी हल्कों में माना जाता था कि बाल ठाकरे के बाद राज ठाकरे ही पार्टी की कमान संभालेंगे। वैसे बाद के दिनों में राज ठाकरे उत्तराधिकार की इस जंग में पिछड़ गए क्योंकि बाल ठाकरे ने अपने बेटे उद्धव ठाकरे को आगे बढ़ना शुरू कर दिया।

वैसे शिवसेना के लोग राज ठाकरे में ही बाल ठाकरे की छवि देखा करते थे क्योंकि राज ठाकरे बाल ठाकरे की तरह ही ओजस्वी और तीखे भाषण दिया करते थे। सियासी हलकों के साथ ही आम लोग भी राज ठाकरे में ही बाल ठाकरे की छवि देखने लगे थे मगर उत्तराधिकार की जंग में बाल ठाकरे का आशीर्वाद उद्धव ठाकरे को हासिल हुआ और उद्धव ठाकरे ने शिवसेना पर प्रभुत्व कायम कर लिया। बाद में वे एनसीपी और कांग्रेस की मदद से महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बनने में भी कामयाब हुए। हालांकि एकनाथ शिंदे की अगुवाई में शिवसेना के तमाम विधायकों की बगावत के चलते उन्हें मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा।

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