Made in India Gun: जल्द ही सेना को मिलेगी आर्टिलरी गन, जो सबसे लंबी रेंज का वर्ल्ड रिकॉर्ड रखती है

ATAGS: यह आर्टिलरी गन अपनी श्रेणी की तोपों की तुलना में दो टन हल्की है और इसे सटीक निशाना साधने और अधिक रेंज प्राप्त करने के लिए डिज़ाइन किया गया है।

Report :  Jyotsna Singh
Update: 2023-02-12 13:09 GMT

File Photo of artillery gun ATAGS (Pic: Social Media)

Made in India Gun ATAGS: मेक इन इंडिया की मुहिम की दिशा में बंदूकों के मामले में भारत के रक्षा क्षेत्र की आत्मनिर्भरता की कहानी में एडवांस्ड टोड आर्टिलरी गन सिस्टम (ATAGS) एक शानदार उपलब्धि की तरह साबित हुई है। ATAGS तोप आंखों से न दिखने वाले टारगेट पर भी बेहद सटीक निशाना साध सकती है। यह आर्टिलरी गन अपनी श्रेणी की तोपों की तुलना में दो टन हल्की है और इसे सटीक निशाना साधने और अधिक रेंज प्राप्त करने के लिए डिज़ाइन किया गया है।

ऑटोमैटेड असलहे की सहूलियत रखने वाली यह तोपखाने की बंदूक आर्मी में जल्द ही शामिल होने वाली 155 एमएम और 52 कैलिबर की यह बंदूक दुनिया में सबसे लंबी रेंज वाले गन सिस्टम में शुमार है। डिफेंस के रिसर्च और डेवलपमेंट विभाग ने पिछले दिनों कहा है कि सारे टेस्ट कामयाब हो चुके हैं और एक दो ट्रायल के बाद इसे सशस्त्र बलों में शामिल किया जाएगा।

डीआरडीओ ने विकसित किया है तोप

आरएंडडी विभाग ने इस तोपनुमा बंदूक को भारत का गौरव करार देकर कहा कि 155एमएम क्लास में यह दुनिया की सबसे लंबी रेंज वाली बंदूक को ATAGS को डीआरडीओ के आयुध रिसर्च और ​डेवलपमेंट विभाग ने विकसित किया है और इसका उत्पादन का जिम्मा देश की मल्टीनेशनल कंपनी भारत फोर्ज ने उठाया है। इस बंदूक के निर्माण में 95 फीसदी कंटेंट स्वदेशी बताया गया है। बीएफएल के अलावा, महिंद्रा डिफेंस नैवल सिस्टम, टाटा पावर स्ट्रैटजिक और पब्लिक सेक्टर की ऑर्डिनेंस फैक्टरी बोर्ड भी इस बंदूक के डेवलपमेंट व उत्पादन में पार्टनर हैं।

रायफल के डेवलपमेंट में क्यों लगा समय

इस बंदूक को विकसित करने में करीब 4 साल का वक्त लगा और तयशुदा डेडलाइन के तहत इसे मार्च 2017 तक तैयार हो जाना था। 2017 में ही ट्रायलों के बाद उम्मीद थी कि 2019 में ही इसका उत्पादन शुरू हो जाता, अगर सब कुछ प्लान के मुताबिक होता। लेकिन ऑर्डिनेंस और रिकॉइल सिस्टम के साथ ही सब सिस्टम विकसित करने के लिए सप्लाई में देर होने के चलते इस प्रोजेक्ट में देर हुई। 26 जनवरी, 2017 को गणतंत्र दिवस की परेड में इस बंदूक का डिज़ाइन पहली बार प्रदर्शित किया गया था। लेकिन यह अब जाकर तैयार हुई है और अगले कुछ ही दिनों में सेना में शामिल हो सकती है। लद्दाख सीमा पर भारत और चीन के बीच तनाव बना हुआ है, ऐसे समय में ATAGS का आना अहम खबर मानी जा रही है।

क्या हैं इस बंदूक की खासियतें

इसकी सबसे बड़ी खूबी यह भी है चूंकि यह पूरी तरह इलेक्ट्रिक ड्रिवन है । इसलिए लंबे समय तक इसके मेंटेनेंस में काफी कम खर्च होता है। ATAGS में छह राउंड ऑटोमैटेड मैगज़ीन है जो 30 सेकंड में फायर कर सकती है। यह इसलिए दोगुनी क्षमता वाली बंदूक है क्योंकि वर्तमान में 155एमएम और 52 कैलिबर की बंदूकों में तीन राउंड मैगज़ीन की ही क्षमता है।

ATAGS ने 48 किलोमीटर तक की प्रोजेक्टाइल रेंज का वर्ल्ड रिकॉर्ड साबित किया है। यह बंदूक रात के समय किसी भी मौसम में कारगर है और अपनी क्लास की बंदूकों से यह तोपनुमा बंदूक दो टन तक हल्की है। बेहतर एक्यूरेसी के साथ बहुत कम समय में इससे पांच लगातार राउंड फायर किया जा सकता है। सेना के C3I सिस्टमों के साथ भी यह बंदूक अपनेको सहज बनाने में सक्षम है।

क्या होगा इसका प्रोजेक्ट, कीमत और ट्रायल

सेना में 155 एमएम क्लास की पुरानी बंदूकों को रिप्लेस करने के लिए ATAGS प्रोजेक्ट को 2013 में शुरू किया गया था, जिसे 2017 में पूरा हो जाना था। करीब 18 टन वज़नी और 70 डिग्री एलेवेशन वाले इस गन सिस्टम के ट्रायल बालासोर, पोखरण और सिक्किम में किए गए। सितंबर 2020 में सेना में इसके ट्रायल के दौरान बैरल बर्स्ट हो जाने से चार सैनिक घायल हुए थे। इसके बाद इसके बैरल में सुधार किया गया। इससे पहले, अगस्त 2018 में ट्रायलों के बाद डिफेंस अधिग्रहण परिषद ने 150 ATAGS को आर्मी में शामिल करने के लिए मंज़ूरी दी थी और इसके लिए 3,364.78 करोड़ रुपये के खर्च का अनुमान लगाया गया था। अंदाजा लगाया जा रहा है कि एक ATAGS की कीमत 22 करोड़ रुपये से ज़्यादा भी हो सकती है।

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