UP में अखिलेश के PDA समीकरण की कामयाबी का दिखने लगा असर, SC-ST और ओबीसी नियुक्तियों को लेकर NDA में घमासान
Akhilesh Yadav : लोकसभा चुनाव के दौरान उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव के पीडीए (पिछड़ा, दलित,अल्पसंख्यक) समीकरण को मिली कामयाबी का असर दिखने लगा है।
Akhilesh Yadav : लोकसभा चुनाव के दौरान उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव के पीडीए (पिछड़ा, दलित,अल्पसंख्यक) समीकरण को मिली कामयाबी का असर दिखने लगा है। अनुसूचित जाति,अनुसूचित जनजाति और ओबीसी वोट बैंक सपा-कांग्रेस की सेंधमारी के बाद भाजपा के सहयोगी दलों ने भी दबाव बनाना शुरू कर दिया है। अपना दल (एस) की मुखिया और केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल की ओर से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को लिखी गई चिट्ठी को इसी का नतीजा माना जा रहा है।
अनुप्रिया की चिट्ठी को एनडीए में शुरू हुए घमासान का बड़ा संकेत माना जा रहा है। अनुप्रिया ने अपनी चिट्ठी में मुख्यमंत्री से एससी, एसटी और ओबीसी अभ्यर्थियों की नियुक्तियों में किसी भी प्रकार का भेदभाव न करने का अनुरोध किया गया है। 2014 और 2019 में दो-दो सीटों पर जीत हासिल करने वाली अनुप्रिया पटेल की पार्टी को भी इस बार करारा झटका लगा है। अनुप्रिया पटेल अपने दल की ओर से लोकसभा में अकेली सांसद चुनी गई हैं।
अनुप्रिया ने लिखी योगी को कड़ी चिट्ठी
केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया की ओर से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को लिखी गई इस चिट्ठी में साक्षात्कार के आधार पर मिलने वाली नौकरियों में दलितों,पिछड़ों और अनुसूचित जनजाति वर्ग के लोगों की अनदेखी का मुद्दा उठाया गया है। अनुप्रिया पटेल ने कहा कि प्रदेश सरकार की साक्षात्कार वाली नियुक्तियों में ओबीसी, अनुसूचित जाति और जनजाति के अभ्यर्थियों का चयन नहीं किया जाता है। उन्हें not found suitable कहकर छांट दिया जाता है।
कुछ समय बाद आरक्षित पदों को भी अनारक्षित घोषित कर दिया जाता है और पिछड़ों व दलितों की हक की अनदेखी की जाती है। इस व्यवस्था पर तत्काल रोक लगाई जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि इसे लेकर अभ्यर्थियों में लगातार आक्रोश बढ़ता जा रहा है।
उन्होंने कहा कि साक्षात्कार आधारित नियुक्ति प्रक्रिया वाली प्रतियोगी परीक्षाओं में पिछड़े वर्ग और अनुसूचित जाति/जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित पदों को सिर्फ इन्ही वर्गों से आने वाले अभ्यर्थियों से भरा जाना चाहिए। इसके लिए चाहे जितनी भी बार नियुक्ति प्रक्रिया करनी पड़े। आरक्षित पदों को अनारक्षित घोषित करने पर रोक लगाई जानी चाहिए।
लोकसभा चुनाव में एनडीए को बड़ा झटका
अनुप्रिया पटेल की चिट्ठी से साफ हो गया है कि लोकसभा चुनाव में लगे झटके का दबाव अब भाजपा के सहयोगी दलों पर भी दिखने लगा है। इसीलिए अनुप्रिया पटेल ने चिट्ठी लिखकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर दबाव बनाने का प्रयास किया है। दरअसल 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में एनडीए को जबर्दस्त कामयाबी मिली थी।
पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा को 62 और सहयोगी दल के रूप में अपना दल को दो सीटों पर जीत हासिल हुई थी मगर इस बार भाजपा और अपना दल दोनों को झटका लगा है।
इस बार के लोकसभा चुनाव में भाजपा उत्तर प्रदेश में सिर्फ 33 सीटों पर सिमट गई है जबकि अपना दल एस को एक और दूसरे सहयोगी दल राष्ट्रीय लोकदल को दो सीटों पर कामयाबी मिली है। इस तरह एनडीए को उत्तर प्रदेश में 36 सीटें मिली हैं।
अखिलेश के पीडीए समीकरण ने दिखाया बड़ा असर
दूसरी ओर अखिलेश यादव की अगुवाई में समाजवादी पार्टी ने बड़ी कामयाबी हासिल की है। पार्टी ने इस बार अकेले प्रदेश की 37 सीटें जीत ली हैं जबकि सहयोगी दल कांग्रेस को भी 6 सीटों पर जीत हासिल हुई है। इस तरह दोनों दलों ने मिलकर उत्तर प्रदेश की 43 लोकसभा सीटों पर कब्जा कर लिया है। अखिलेश यादव को मिली इस बड़ी कामयाबी के पीछे पीडीए समीकरण को बड़ा कारण माना जा रहा है।
सपा मुखिया अखिलेश यादव ने ऐलान कर दिया है कि अब उत्तर प्रदेश के अगले विधानसभा चुनाव के दौरान भी वे पीडीए समीकरण के दम पर भाजपा की अगुवाई वाले एनडीए को सत्ता से बेदखल कर देंगे। हालांकि यह भी सच्चाई है कि उत्तर प्रदेश में सपा-कांग्रेस को मिली कामयाबी में पीडीए समीकरण के साथ ही अन्य जातियों के समर्थन का भी हाथ है।
सहयोगी दलों ने दबाव बनाना शुरू किया
सपा-कांग्रेस को मिली इस कामयाबी के बाद एनडीए में बेचैनी बढ़ गई है। अनुप्रिया पटेल की ओर से लिखी गई चिट्ठी को इस बेचैनी का बड़ा संकेत है। माना जा रहा है कि अब सहयोगी दलों ने भी भाजपा पर एससी, एसटी और पिछड़ों को साधने के लिए दबाव बनाना शुरू कर दिया है। अखिलेश यादव के पीडीए समीकरण को जवाब देने के लिए भाजपा भी आने वाले दिनों में इस मुद्दे पर आक्रामक रवैया अपना सकती है।
आक्रामक रणनीति अपना सकती है भाजपा
सियासी जानकारों का मानना है कि 2017 और 2022 में उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में मिली कामयाबी के बाद भाजपा अब 2027 के चुनाव के दौरान भी उत्तर प्रदेश को किसी सूरत में अपने हाथ से नहीं निकलने देना चाहती। लोकसभा चुनाव के नतीजे में लगे करारे झटके के बाद भाजपा लगातार हार के कारणों को लेकर मंथन करने में जुटी हुई है।
अभी तक किए गए मंथन में दलित और ओबीसी वोट बैंक में विपक्ष की सेंधमारी को भाजपा के पिछड़ने का बड़ा कारण माना गया है। इसी कारण माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में भाजपा भी अपनी रणनीति में बड़ा बदलाव ला सकती है ताकि सपा-कांग्रेस को जवाब दिया जा सके।