Maharashtra Hot Seat: शिंदे से हिसाब बराबर करना चाहते हैं उद्धव, CM के लिए चुनौती बना सियासी गुरु का भतीजा
Maharashtra Hot Seat: महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में कई सीटें ऐसी है जहाँ काफी कड़ा मुकाबला देखने को मिलने वाला है।
Maharashtra Hot Seat: महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव में विभिन्न दलों के प्रत्याशियों की सूचियां सामने आने के बाद साफ हो गया है कि कई विधानसभा सीटों पर हाई प्रोफाइल मुकाबला होने वाला है। इसके साथ ही इस बार के विधानसभा चुनाव में कई सियासी दिग्गजों ने पुराना हिसाब बराबर करने के लिए बड़ा दांव खेल दिया है। पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने अपने खिलाफ बगावत करने वाले शिवसेना नेता और मौजूदा मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के खिलाफ भी गजब की सियासी चाल चली है।
उन्होंने शिंदे के खिलाफ उनके गुरु आनंद दिघे के भतीजे केदार दिघे को मैदान में उतार कर तगड़ी घेराबंदी करने की कोशिश की है। शिंदे विभिन्न मौकों पर आनंद दिघे को अपना राजनीतिक गुरु बताते रहे हैं। उद्धव ठाकरे की ओर से उठाए गए इस कदम के बाद ठाणे की कोपरी-पचपाखड़ी विधानसभा सीट पर काफी दिलचस्प मुकाबला होने वाला है। ऐसे में यह देखने वाली बात होगी कि उद्धव ठाकरे का गुरु वाला यह दांव कितना असर दिखाता है।
शिंदे ने दी थी उद्धव को बड़ी सियासी चोट
महाराष्ट्र की सियासत में भाजपा से दूरियां बढ़ने के बाद शिवसेना मुखिया उद्धव ठाकरे एनसीपी और कांग्रेस के समर्थन से मुख्यमंत्री बनने में कामयाब हुए थे। उनकी सरकार ठीक-ठाक ढंग से चल रही थी मगर एकनाथ शिंदे की अगुवाई में शिवसेना में हुई बगावत से महाराष्ट्र का सियासी नजारा बदल गया था। उद्धव ठाकरे से बदला लेने के लिए भाजपा इसी मौके की तलाश में थी और कहा तो यहां तक जाता है कि शिवसेना की इस बगावत में भाजपा का बड़ा हाथ था। भाजपा ने इस मौके का फायदा उठाते हुए शिंदे को समर्थन देने में तनिक भी देरी नहीं की।
भाजपा ने ज्यादा विधायक होने के बावजूद शिंदे को मुख्यमंत्री बनाने का बड़ा सियासी खेल कर दिखाया था। शिवसेना में हुई बगावत के बाद उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के लिए मजबूर हो गए थे। भाजपा की इस सियासी खेल में इतनी दिलचस्पी थी कि पार्टी ने अपने वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को डिप्टी सीएम बनाने में भी संकोच नहीं किया। शिंदे की ओर से दी गई इस चोट को उद्धव ठाकरे आज तक नहीं भोले हैं और इसीलिए उन्होंने विधानसभा चुनाव में शिंदे को घेरने का बड़ा प्लान तैयार किया है।
शिंदे के सामने गुरु के भतीजे की चुनौती
ठाणे इलाके में शिवसेना को मजबूत बनाने में आनंद दिघे की महत्वपूर्ण भूमिका मानी जाती रही है। आज भी लोग उन्हें याद करते और सम्मान देते हैं। मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे कई मौकों पर इस बात को सार्वजनिक रूप से कहते रहे हैं कि सियासी रूप से उन्हें मजबूत बनाने में उनके गुरु आनंद दिघे का बड़ा हाथ रहा है।
ऐसे में उद्धव ठाकरे ने आनंद दिघे के ही भतीजे केदार दिघे को उतार कर शिंदे को सबक सिखाने का प्रयास किया है। राजनीति के मैदान में नए होने के बावजूद केदार दिघे भी खुद को अपने चाचा के राजनीतिक वारिस के रूप में पेश करने में जुटे हुए हैं। इसके जरिए वा अपने चाचा के समर्थकों को आकर्षित करने की कोशिश कर रहे हैं।
2009 से लगातार जीत रहे शिंदे
कोपरी-पचपाखड़ी निर्वाचन क्षेत्र को मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे का गढ़ माना जाता रहा है। वे अविभाजित शिवसेना के उम्मीदवार के रूप में इस चुनाव क्षेत्र से 2009 से ही लगातार जीत हासिल करते रहे हैं। 2019 के विधानसभा चुनाव के दौरान शिंदे ने इस विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस के संजय घाडीगांवकर को 89,000 से अधिक मतों के अंतर से हराया था। वैसे इस बार केदार दिघे के चुनाव मैदान में उतरने के कारण राजनीतिक हालात बदले हुए नजर आ रहे हैं। शिवसेना (यूबीटी) की ठाणे जिला इकाई के प्रमुख केदार दिघे की उम्मीदवारी से शिंदे को अपने चुनाव क्षेत्र में वक्त देने के साथ ही मेहनत भी करनी होगी। दूसरी ओर शिवसेना (यूबीटी) के मुखिया उद्धव ठाकरे और पार्टी के अन्य नेता इस क्षेत्र में चुनाव प्रचार में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ेंगे।
आनंद दिघे के विरासत की जंग
सियासी जानकारों का मानना है कि इस बार के विधानसभा चुनाव में शिंदे और केदार दिघे के बीच सिर्फ राजनीतिक वर्चस्व की जंग नहीं होगी बल्कि दोनों सेनाओं के बीच दिग्गज नेता आनंद दिघे की विरासत को हासिल करने की भी जंग होगी। जानकारों के मुताबिक आनंद दिघे के भतीजे को चुनाव मैदान में उतार कर उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री शिंदे को उनके गढ़ में ही कमजोर बनाने का प्रयास किया है।
इसके साथ ही उद्धव ने शिवसेना के पुराने वफादार कार्यकर्ताओं को भी अपनी ओर खींचने की कोशिश की है। शिंदे से राजनीतिक चोट खाने के बाद उद्धव ठाकरे ने आनंद दिघे की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने और शिंदे की विरासत को काउंटर करने के लिए केदार दिघे को चुनाव मैदान में उतारा है।
दिलचस्प मुकाबले पर सबकी निगाहें
आनंद दिघे को बाला साहब ठाकरे के सबसे करीबी नेताओं में गिना जाता था। ऐसे में उद्धव ने बाल ठाकरे के हिंदुत्व और मराठी अस्मिता को बचाने का बड़ा सियासी दांव चल दिया है। लोकसभा चुनाव के दौरान तो शिंदे इस इलाके में अपनी ताकत दिखाने में जरूर कामयाब हुए थे मगर विधानसभा चुनाव में केदार दिघे की उम्मीदवारी से मुकाबला दिलचस्प होने की उम्मीद जताई जा रही है। शिंदे को भाजपा और एनसीपी के अजित पवार गुट का समर्थन जरुर हासिल है मगर यह देखने की बात होगी कि उद्धव ठाकरे की शिंदे को सियासी सबक सिखाने की यह रणनीति कितना असर दिखाती है।