Maharashtra Political Crisis: 2024 के लिए भतीजे ने बिगाड़ा शरद पवार का गेम प्लान, अब विपक्षी एकजुटता से ज्यादा अहम NCP को बचाना

Maharashtra Political Crisis Update: 2024 के लोकसभा चुनाव के मद्देनजर शरद पवार ने तमाम सियासी मंसूबा पाल रखे थे मगर अजित पवार के इस सियासी दांव से शरद पवार की सारी सियासी योजनाएं धरी की धरी रह गईं।

Update:2023-07-03 07:57 IST
Maharashtra Political Crisis (photo: social media )

Maharashtra Political Crisis Update: महाराष्ट्र में अजित पवार के सियासी खेल से चाचा शरद पवार को बड़ा झटका लगा है। अजित पवार ने आनन-फानन डिप्टी सीएम पद की शपथ लेकर महाराष्ट्र के सियासी हलकों में हड़कंप मचा दिया। मुंबई के सियासी घटनाक्रम की खबर जब पुणे में बैठे शरद पवार तक पहुंची, तब तक सारा खेल खेला जा चुका था। 2024 के लोकसभा चुनाव के मद्देनजर शरद पवार ने तमाम सियासी मंसूबा पाल रखे थे मगर अजित पवार के इस सियासी दांव से शरद पवार की सारी सियासी योजनाएं धरी की धरी रह गईं।

मुंबई का सियासी घटनाक्रम शरद पवार को इसलिए भी बड़ा झटका माना जा रहा है क्योंकि प्रफुल्ल पटेल और छगन भुजबल जैसे उनके खास करीबी माने जाने वाले नेता भी उनसे दूर हो गए हैं। हालांकि शरद पवार जनता की अदालत में जाने की बात कर रहे हैं मगर 84 साल की उम्र में अब महाराष्ट्र की सियासत में एनसीपी को मजबूती से खड़ा करना उनके लिए आसान साबित नहीं होगा। बढ़ती उम्र और खराब सेहत के कारण ही उन्होंने अपनी बेटी को सुप्रिया सुले सियासी वारिस बनाने की कोशिश की थी। अब सुले को मजबूती से स्थापित करना भी उनके लिए काफी मुश्किल माना जा रहा है।

विपक्षी एकजुटता में शरद पवार की भूमिका पर सवाल

हाल ही में पटना में हुई विपक्षी दलों की बैठक के दौरान शरद पवार ने प्रमुख भूमिका निभाई थी। बैठक के आयोजक और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के अलावा अन्य सियासी दलों की ओर से भी शरद पवार को खासी तवज्जो दी गई थी। सियासी जानकारों का मानना है कि विपक्षी एकता के सूत्रधार शरद पवार इस कोशिश में जुटे हुए थे कि विपक्षी दलों को एक मंच पर लाकर वे अपने लिए भी किसी बड़ी भूमिका का इंतजाम कर लेंगे।

विपक्षी दलों की अगली बैठक पहले शिमला में प्रस्तावित थी मगर शरद पवार ने ही हाल में इस बात का ऐलान किया था कि विपक्ष की अगली बैठक बंगलुरु में आयोजित की जाएगी। इस घोषणा से विपक्षी एकजुटता की कोशिश में शरद पवार की अहमियत को समझा जा सकता है मगर अब शरद पवार का सियासी भविष्य ही भ॔वर में फंसता हुआ दिख रहा है।

अब पार्टी को बचाना सबसे बड़ी चुनौती

महाराष्ट्र के सियासी घटनाक्रम में शरद पवार के सामने सबसे बड़ी दिक्कत यह पैदा कर दी है कि अब वे अपनी पार्टी को बचाएं या भाजपा के खिलाफ विपक्ष के मोर्चे को मजबूत बनाने का काम करें। जानकारों का मानना है कि अब शरद पवार के लिए विपक्षी एकजुटता का काम छोड़कर अपनी पार्टी का सियासी वजूद बचाना सबसे बड़ी चुनौती बन गई है। डिप्टी सीएम पद की शपथ लेने के बाद अजित पवार ने अपनी पहली प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान ही पार्टी और पार्टी के सिंबल पर भी दावा कर दिया। उनका कहना था कि एनसीपी हमारी पार्टी है और हम एनसीपी के सिंबल पर ही अगला लोकसभा और विधानसभा चुनाव लड़ेंगे।

अभी तक शरद पवार के करीबी माने जाने वाले छगन भुजबल भी पार्टी पर दावेदारी करने में पीछे नहीं रहे। ऐसे में शरद पवार के लिए अब सबसे बड़ा सवाल पार्टी पर कब्जे और ज्यादा से ज्यादा विधायकों को अपने साथ जोड़े रखने का है। यह काम शरद पवार के लिए काफी मुश्किल माना जा रहा है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि पार्टी सिंबल के लिए चाचा-भतीजे की लड़ाई में आखिरकार कौन विजयी साबित होता है।

बागियों के खिलाफ जीत का भरोसा

सियासी हलकों में अभी तक शरद पवार की छवि मजे हुए राजनीतिज्ञ की रही है। पार्टी में हुई बड़ी टूट के बाद उन्होंने कहा कि पार्टी किसकी है, इसका फैसला जनता की अदालत में होगा। उनका कहना है कि वे पार्टी में पहले भी बगावत झेल चुके हैं और हर बार विजेता बनकर उभरे हैं। उन्हें पूरा भरोसा है कि इस बार भी वे अपने खिलाफ बगावत करने वालों को उनकी औकात बताने में कामयाब रहेंगे। उन्होंने कहा कि जिन लोगों ने पार्टी लाइन का उल्लंघन किया है उनके बारे में फैसला पार्टी करेगी।

महाराष्ट्र के दिग्गज नेता ने कहा कि राजनीति में ऐसी चीजें होती रहती हैं और हमें इससे निपटना होगा।

2024 के लिए बनी योजनाओं को झटका

शरद पवार अभी तक महाराष्ट्र में महाविकास अघाड़ी गठबंधन के जरिए एनडीए को मजबूत चुनौती देने की कोशिश में जुटे हुए थे। उद्धव ठाकरे की सरकार के गठन में शरद पवार को ही शिल्पकार माना गया था मगर पहले उद्धव का कुनबा बिखरा और अब शरद पवार अपने कुनबे को भी एकजुट रखने में कामयाब नहीं रह सके। ऐसे में 2024 को लेकर उनकी सारी योजनाएं धरी की धरी रह गई हैं।

माना जा रहा है कि अब शरद पवार के लिए विपक्षी एकजुटता से ज्यादा जरूरी अपनी पार्टी को बचाना है। ऐसे में विपक्षी एकजुटता के प्रयासों में पवार की भूमिका को लेकर भी सवाल खड़े होने लगे हैं। जानकारों के मुताबिक भतीजे ने चाचा को ऐसा सियासी झटका दिया है जिससे उबर पाना उनके लिए आसान साबित नहीं होगा।

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