Sharad Pawar Political Journey: अभी बाकी हैं राजनीति-रणनीति के खेल, हल्के में ना लें शरद पवार को, एक बार देख लें इनका राजनीतिक इतिहास भी

Sharad Pawar Political Journey: शरद पवार भारत के सबसे मजबूत, गहरी पैठ और बेहद लम्बी रेस वाले राजनेताओं में से एक हैं। वह ऐसे नेता हैं जिनके सत्ता में नहीं होने पर भी उनके जन्मदिन की पार्टी में टॉप बिजनेस टायकून और प्रमुख राजनेता, राष्ट्रपति से लेकर प्रधानमंत्री, ढेरों मुख्यमंत्रियों और गांधी परिवार शामिल होता है और उनकी तारीफों के पुल बांधता है।

Update:2023-07-05 08:44 IST
Sharad Pawar Political Journey (Photo: Social Media)

Sharad Pawar Political Journey शरद पवार भारत के सबसे मजबूत, गहरी पैठ और बेहद लम्बी रेस वाले राजनेताओं में से एक हैं। वह ऐसे नेता हैं जिनके सत्ता में नहीं होने पर भी उनके जन्मदिन की पार्टी में टॉप बिजनेस टायकून और प्रमुख राजनेता, राष्ट्रपति से लेकर प्रधानमंत्री, ढेरों मुख्यमंत्रियों और गांधी परिवार शामिल होता है और उनकी तारीफों के पुल बांधता है। शरद पवार ऐसी शख्सियत हैं जो भले की पश्चिमी महाराष्ट्र तक सीमित हैं लेकिन उनकी पहचान पूरे देश में है। उनकी बहुत बड़ी काबिलियत व्यक्तिगत समीकरण बनाने की है।

चन्द्रशेखर, मनमोहन सिंह, लालू यादव, नरेंद्र मोदी, यहां तक कि उनके लंबे समय से प्रतिद्वंद्वी बाल ठाकरे से भी उनके बेहतरीन रिश्ते रहे हैं। पवार इस कहावत में विश्वास रखते हैं कि राजनीति में कोई स्थायी दोस्त या स्थायी दुश्मन नहीं होता है। पवार भले ही फिलवक्त अपने भतीजे अजित पवार और अपनी पार्टी के कुछ लोगों के हाथों शिकस्त खाए दिख रहे हों लेकिन जिसने कैंसर तक से हार नहीं माने वह भला इन हालातों में कैसे हार मान लेगा? दरअसल, शरद पवार जैसे गूढ़ भारतीय राजनेता कम ही हैं। मुंबई के राजनीतिक हलकों में कहा जाता है कि - "पवार क्या सोचते हैं, क्या कहते हैं और क्या करते हैं, ये तीन पूरी तरह से अलग चीजें हैं।“ एक रणनीतिक मराठा की तरह वह कुछ भी कर सकते हैं।

सन 56 से शुरू हुआ राजनीतिक सफ़र अब भी है जारी

पवार ने 1956 में पुणे में एक छात्र के रूप में अपनी राजनीतिक यात्रा शुरू की, उन्होंने महाराष्ट्र के प्रवरनगर क्षेत्र में गोवा की स्वतंत्रता पर एक विरोध मार्च का आह्वान किया था। दो साल बाद वह युवा कांग्रेस में शामिल हो गए और 1962 में पुणे जिले के अध्यक्ष बने। अगले कुछ वर्षों में, पवार महाराष्ट्र युवा कांग्रेस के भीतर कई प्रमुख पदों पर रहे। शरद पवार के असली राजनीतिक गुरु थे बंबई राज्य के अंतिम मुख्यमंत्री - यशवंतराव चव्हाण। उन्हीं के शिष्यत्व में शरद पवार ने मात्र 27 साल की उम्र में महाराष्ट्र के बारामती से सन 67 में विधायकी का चुनाव लड़ा और जीता। कांग्रेस से शरद पवार का रिश्ता अटूट नहीं रहा। जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के निष्कासन के बाद कांग्रेस मुश्किलों में घिर गई, तो पवार उनके भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आर) गुट का हिस्सा बन गए। उन्होंने आपातकाल के दौरान शंकरराव चव्हाण की सरकार में महाराष्ट्र के गृह मंत्री के रूप में कार्य किया और बाद में पार्टी के एक बार फिर विभाजन के बाद कांग्रेस (यू) गुट के साथ चले गए।

पवार ने वसंतदादा पाटिल सरकार में उद्योग और श्रम मंत्री के रूप में कार्य किया। जब कांग्रेस के दोनों गुटों ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था, तब उन्होंने जनता पार्टी के खिलाफ गठबंधन सरकार बनाई थी। 1978 में उन्होंने एक विद्रोही समूह का नेतृत्व किया और वसंतदादा पाटिल सरकार को सफलतापूर्वक गिरा दिया और जनता पार्टी के साथ गठबंधन सरकार में महाराष्ट्र के सबसे कम उम्र के मुख्यमंत्री बने। उस समय उनकी उम्र 37 वर्ष थी। 1983 में पवार अपनी कांग्रेस (सोशलिस्ट) के अध्यक्ष बने और अगले वर्ष बारामती से लोकसभा के लिए चुने गए। अंततः वह 1987 में कांग्रेस (आई) में लौट आये।

वह दो बार - 1988 और 1990 में महाराष्ट्र के सीएम बने। 1991 में माना जा रहा था कि पवार अगले कांग्रेसी प्रधानमंत्री बन सकते हैं। लेकिन यह पद पीवी नरसिम्हा राव को दिया गया। उसी साल वे केंद्रीय रक्षा मंत्री के रूप में नरसिम्हा राव सरकार में शामिल हुए। पवार ने 1993 तक ये विभाग संभाला और बाद में चौथी बार महाराष्ट्र के सीएम बने। 1995 के चुनावों में शिव सेना-भाजपा गठबंधन द्वारा अपदस्थ किये जाने के बाद, वे एक वर्ष तक राज्य में विपक्ष के नेता रहे। 1996 में उन्होंने बारामती से एक बार फिर लोकसभा चुनाव जीता।

प्रधानमंत्री पद के लिए सोनिया गांधी की उम्मीदवारी का विरोध करने के बाद 1999 में पवार को पीए संगमा और तारिक अनवर के साथ कांग्रेस से निष्कासित कर दिया गया। संगमा और पवार ने प्रतिक्रिया में राकांपा की स्थापना की, लेकिन 1999 में कांग्रेस के साथ गठबंधन में राज्य विधानसभा चुनाव लड़ा और शिव सेना-भाजपा गठबंधन को हराया।

2004 में पवार मनमोहन सिंह यूपीए सरकार के तहत कृषि मंत्री बने। 2014 के लोकसभा चुनावों में भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए को भारी जीत मिलने के बाद अंततः उन्हें अपना पदखोना पड़ा। राकांपा को भी महाराष्ट्र में शिकस्त झेलनी पड़ी। 2019 में, एक बड़े राजनीतिक उथल-पुथल के बाद (तत्कालीन उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना गठबंधन सरकार के हिस्से के रूप में एनसीपी महाराष्ट्र में सत्ता में लौट आई। शरद पवार को 2020 में राज्यसभा सांसद के रूप में फिर से चुना गया। हालांकि, 2022 में, शिवसेना नेता एकनाथ शिंदे के सफल विद्रोह का नेतृत्व करने और भाजपा के साथ हाथ मिलाने के बाद महा विकास अघाड़ी सरकार को उखाड़ फेंका गया। अब ताजा मामला भतीजे अजित पवार का है।

कोआपरेटिव किंग

1950-60 के दशक से ‘सहकारिता मठाधीशों’ ने महाराष्ट्र में कृषि सहकारी समितियों और जिला सहकारी बैंकों के माध्यम से राजनीतिक सत्ता चलाने के मॉडल को सिद्ध किया है। महाराष्ट्र के कद्दावर नेता यशवंतराव चव्हाण, वसंतदादा पाटिल और शंकरराव चव्हाण - ये सभी कोआपरेटिव राजनीतिक अर्थव्यवस्था के दिग्गज थे। इस क्षेत्र पर मराठों का प्रभुत्व रहा है और पिछले तीन दशकों में शरद पवार इसके प्रतीक रहे हैं। वे
सहकारी क्षेत्र के बेताज बादशाह रहे हैं। उन्होंने अपनी राजनीति सहकारी बैंकों और सहकारी चीनी मिलों के आसपास खड़ी की है। महाराष्ट्र के 150 से अधिक विधायकों का सहकारी क्षेत्र से किसी न किसी तरह का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष संबंध है और शरद पवार इस साम्राज्य के शीर्ष पर हैं। सहकारी बैंकों पर रिज़र्व बैंक की नजरें टेढ़ी हुईं लेकिन शरद पवार पर आंच न आ सकी।

सबसे बड़ा अफ़सोस

शरद पवार को अपनी बगावतों के बारे में कभी अफ़सोस नहीं रहा चाहे वह इंदिरा गाँधी के खिलाफ हो या सोनिया गाँधी के खिलाफ। उन्हें जीवन का एक ही अफ़सोस है – तम्बाकू खाने का। पवार के मुताबिक, उन्हें सबसे बड़ा पछतावा तंबाकू के सेवन का है और वह कहते हैं कि काश किसी ने उन्हें तंबाकू और सुपारी के सेवन के खिलाफ चेतावनी दी होती। मुंह के कैंसर से बचे पवार ने कहा कि उन्हें एक सर्जरी करानी पड़ी, जिसमें दांत पूरी तरह से हटा दिए गए। वह अपना मुंह पूरा नहीं खोल सकते हैं, उन्हें निगलने और बोलने में कठिनाई होती है।

2004 में पवार को कैंसर का पता चला था और डाक्टर ने उन्हें बहुत से बहुत 6 महीने जीने की संभावना बताई थी लेकिन पवार आसानी से हार मानने को तैयार नहीं थे। उनके गाल की सर्जरी की गई। जब यूपीए सरकार में शरद पवार को कृषि मंत्री बनाया गया तब वह कैंसर का इलाज कराने के साथ-साथ वह अपने कर्तव्यों का भी निर्वहन करते रहे। अपने कार्यालय में उपस्थित होने और आगंतुकों से मिलने के बाद वह सीधे अपोलो अस्पताल में कीमोथेरेपी के लिए जाते थे।
शरद पवार ने अपनी आत्मकथा, ऑन माई टर्म्स में लिखा है - जीवन में कुछ चीज़ें अचानक, अप्रत्याशित रूप से घटित होती हैं। उन पर चिंता करने का कोई मतलब नहीं है।

ऐसी स्थितियों में अधिकांश लोग बस आगे बढ़ने की इच्छा खो देते हैं। जहां तक मेरा सवाल है, चीजों को सहजता से लेना मेरा दूसरा स्वभाव है। जब शरद पवार कैंसर से उबरने की राह पर थे, तभी उन्हें ह्रदय की बीमारी ने जकड़ लिया। उनका ऑपरेशन किया गया और हृदय में स्टेंट लगाए गए। 2014 में घर में फिसलने से उनकी पेल्विक हड्डी टूट गई थी। हालाँकि, आर्थोपेडिक सर्जरी के बाद, वह पंद्रह दिनों के भीतर बिना किसी सहारे के चलने लगे। मार्च 2021 में, उनकी पित्त नली में फंसी पथरी को निकालने के लिए सर्जरी की गयी। एक के बाद एक बीमारियों का सामना करने के बावजूद, पवार ने महाराष्ट्र की राजनीति में अपनी उपस्थिति दर्ज कराना जारी रखा। 2019 में, उन्होंने एमवीए सरकार का निर्माण किया और संख्या बल के मामले में तीसरे नंबर पर होने के बावजूद अपनी पार्टी एनसीपी को सत्ता में बनाए रखने में कामयाब रहे। अगर कोई इस बुढ़ापे में भी इतने सक्रिय रहने के लिए उनकी तारीफ करता है तो पवार इसे अच्छा नहीं मानते। पवार ने बार-बार साबित किया है कि उम्र उनके लिए सिर्फ एक संख्या बनकर रह गई है। वह स्पष्ट रूप से कहते हैं, मुझे चीजों का नेतृत्व करना पसंद है।

खेल के भी खिलाड़ी
शरद पवार का हाथ सिर्फ राजनीति में ही नहीं बल्कि खेलों में भी रहा है। उन्होंने विभिन्न खेल संगठनों के प्रमुख के रूप में काम किया हुआ है। और वहां की राजनीति को भी कंट्रोल किया है। वह मुंबई क्रिकेट एसोसिएशन, महाराष्ट्र कुश्ती संघ, महाराष्ट्र कब्बडी एसोसिएशन, महाराष्ट्र खो खो एसोसिएशन, महाराष्ट्र ओलंपिक एसोसिएशन के अध्यक्ष रहे। इसके अलावा वह भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के अध्यक्ष (2005-2008), अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट परिषद के उपाध्यक्ष, अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट परिषद के अध्यक्ष रहे। इसके अलावा शरद पवार पुणे इंटरनेशनल मैराथन ट्रस्ट के अध्यक्ष भी रहे हैं।
अपराधियों से रिश्ते

शरद पवार का नाम अपराधियों से भी जोड़ा जा चुका है। 1992-93 में, महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री सुधाकरराव नाइक ने एक बयान दिया था कि शरद पवार ने उन्हें "पप्पू कालानी" नामक बड़े माफिया पर नरमी बरतने के लिए कहा था। बाद में शिव सेना प्रमुख बाल ठाकरे ने भी इन आरोपों से सहमति जताई थी] इसके अलावा, मुख्यमंत्री नाइक ने यह भी आरोप लगाया था कि कालानी और एक अन्य अपराधी हितेंद्र ठाकुर को पवार के कहने पर विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए टिकट दिया गया था। शरद पवार पर अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम के साथ घनिष्ठ संबंध रखने का भी आरोप लगा है। बहुजन वंचित अघाड़ी (बीवीए) के नेता प्रकाश अंबेडकर ने कहा था कि शरद पवार के कारण दाऊद इब्राहिम को भारत वापस नहीं ला जा सका था। प्रकाश अम्बेडकर ने दावा किया था कि जब दाऊद 1993 में आत्मसमर्पण करने को तैयार था, तब तत्कालीन सीएम पवार कोई कार्रवाई करने में विफल रहे थे। भाजपा नेता किरीट सोमैया ने भी शरद पवार पर दाऊद से संबंधों का आरोप लगाया था।

चचा – भतीजे की कहानी

शरद पवार और अजित पवार चाचा भतीजे हैं। भतीजा अजित का व्यक्तित्व अपने चाचा से एकदम अलग है। शरद पवार की मित्रता व्यापक है, वह बहुत मिलनसार हैं, सॉफ्ट स्पोकन हैं, मजबूत जमीनी पकड़ है वहीँ अजित जल्दी पारा खो बैठने वाले, कम बोलने वाले, सख्त मिजाज और सीमित मित्रता वाले हैं। भतीजे की महत्वाकांक्षा भी बहुत रही है और उनको सब कुछ पाने की बहुत हड़बड़ी भी है। इसी विरोधाभास में चाचा को भतीजे से झटका लगा है। वैसे, इसका अंदेशा शरद पवार को पहले से ही था। महाराष्ट्र की चाचा भतीजे की ये कहानी यूपी की राजनीति में पहले ही हो चुकी है। यूपी में लोगों ने देखा है कि किस तरह प्रदेश के एक मजबूत राजनीतिक परिवार में भतीजे ने अपने चाचा को क्लीन बोल्ड कर दिया था। यहाँ पात्र रहे चाचा शिवपाल और भतीजे रहे अखिलेश यादव। राजनीति के पुराने और मंझे खिलाड़ी शिवपाल को पता ही नहीं चला कि उनके पैरों तले जमीन कब भतीजे अखिलेश ने खिसका दी। महाराष्ट्र में शरद पवार को भतीजे की कारगुजारियों से पहले से ही संकेत मिल गये थे कि खेल होने वाला है। लेकिन यूपी में चाचा को अपने साथ कुछ ऐसा होने का अंदेशा नहीं था क्योंकि उन्हें भाई और भतीजे पर ज्यादा ही भरोसा था। लेकिन खेल ऐसा बिगड़ा कि आज तक बन नहीं पाया है।

बहरहाल, कुल मिला कर शरद पवार एक अथक, साधन संपन्न नेता और एक चतुर राजनीतिक जोड़तोड़ एक्सपर्ट हैं। वह इसी कहावत को चरितार्थ करते हैं कि - राजनीति में कोई स्थायी दोस्त या दुश्मन नहीं होता बल्कि स्थायी हित होते हैं। अब भी वह किसी न किसी स्थाई हित को ही देख रहे होंगे।

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