लखनऊ: पश्चिम बंगाल में तो विधानसभा चुनाव नहीं हैं, फिर सीएम ममता बनर्जी ने ऐसा क्यों किया? दुर्गा की मूर्तियों के विसर्जन की समय सीमा तय कर उन्होंने भावनाएं आहत कीं। क्या ध्रुवीकरण का संदेश पूरे देश में नहीं जाएगा? क्या ये बीजेपी के खुश होने की वजह नहीं हो सकती? क्या अब राजनीतिक दलों की ओर से खुले आम या यूं कहें कि बेशर्मी से ध्रुवीकरण की राजनीति नहीं होने लगी है कि हाईकोर्ट भी टिप्पणी करने लगे कि ममता सरकार मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति कर रही है।
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दिखाने के लिए ही सही राजनीतिक दल राजनीतिक दल इससे बचने की कोशिश करते दिखाई देते थे लेकिन अब ये खुले आम होने लगा है। क्या मुस्लिम वोट इतने महत्वपूर्ण है ममता के लिए कि उन्होंने पूरे बंगाल की भावना आहत कर दी। पूरा देश जानता है कि दुर्गापूजा बंगाल का सबसे महत्वपूर्ण त्योहार है। इसका महत्व जानना है तो किसी बंगाली से पूछिए। ये उनके लिए मुसलमान की ईद की तरह है। बंगालियों के लिए दुर्गापूजा बीतते ही उन्हें अगली पूजा का इंतजार हो जाता है। ऐसा कई सवाल हैं जो सालों चली बहस के बाद बिना जवाब के रह जाते हैं।
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मुहर्रम पर ममता की मजबूरी
बंगाल में कम्युनिस्टों की सरकार जाने के बाद वहां के मुसलमानों ने ममता में पूरा विश्वास दिखाया । लगातार हुए विधानसभा और लोकसभा चुनावों में ममता की पार्टी को मिले मुस्लिम वोट बढ़ते गए। साल 2011 में उन्हें 35 प्रतिशत मिले थे तो पिछली विधानसभा चुनाव में ये बढ़कर 50 प्रतिशत को पार कर गया। पश्चिम बंगाल के इतिहास में संभवत: ये दूसरी बार हो रहा कि दुर्गा प्रतिमा के विसर्जन की समय सीमा तय कर दी गई क्योंकि 1 अक्तूबर को मुहर्रम है और 30 सितम्बर को विजयदशमी । ममता सरकार के अनुसार 30 सितम्बर शाम 6 बजे से 1 अक्तूबर तक दुर्गा प्रतिमा का विसर्जन नहीं होगा । क्या ये सबसे आसान तरीका था ? क्या प्रशासनिक कुशलता और राजनीतिक इच्छाशक्ति से इससे नहीं निपटा जा सकता था ? क्या कोई ऐसा रास्ता नहीं निकाला जा सकता था कि विसर्जन भी आसानी से हो जाता और मुहर्रम भी आसानी से निपट जाए।
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मुहर्रम और दुर्गापूजा में बहुत थोड़ी समानता है। मुहर्रम पूरी तरह मातम है तो दुर्गापूजा खुशी के साथ बिछड़ने का दर्द भी है। मुहर्रम हिजरी कैलेंडर के पहले महीने का नाम है। इस्लामी आदेशों के अनुसार इस महीने में वार प्रतिबंधित होता है। इसी महीने की दसवीं तारीख को पैगम्बर मोहम्मद के परिजनों को इराक के करबला में यजीद की सेनाओं ने शहीद कर दिया था। हजरत मोहम्मद के परिजनों का नेतृत्व हजरत इमाम हुसैन कर रहे थे। सेना के नाम पर उनके पास 72 लोग थे जिसमें बच्चे और महिलाएं भी थीं।इस्लाम में इसे सत्य और असत्य के बीच निर्णायक वार का दर्जा प्राप्त है।
दुर्गा पूजा में भक्त चार दिन श्रद्धा में डूबे रहते हैं। तीन दिन मां दुर्गा की पूजा करने के बाद अंतिम दिन विजयादशमी के दिन मां की विदाई का वक्त आता है जो भक्तों को दुखों में डूबो देता है । दुख दोनो तरफ है। एक ओर पैगम्बर के परिवार वालों के मारे जाने का दुख तो जिसे जगत जननी कहते हैं उनसे बिछड़ने का दुख।
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विसर्जन की बंधी समय सीमा गलत संदेश दे गई
दुर्गा प्रतिमा के विसर्जन की समय सीमा भावनात्मक,धार्मिक ओर राजनीतिक रुप से भी गलत संदेश दे गई। भावनात्मक रुप से तो लगातार दूसरे साल पूरा देश आहत हुआ। खासकर पूरी दुनियां में बसे बंगाली। इस त्योहार में कहीं भी बसे बंगाली अपने घर आने का प्रयास करते हैं ,जो नहीं आ पाते वो वहीं से मां को नमन कर लेते हैं। नौ दिन खुश रहने के बाद अंतिम दसवां दिन विदाई का आ जाता है। कहा जाता है कि दुर्गा मूर्तियों के चेहरे के भाव हर दिन बदलते हैं। विदाई के दिन मूर्तियों की आंखें छलछलाती दिखाई देती हैं। दरअसल ये श्रद्धालुओं के अपने भाव होते हैं जो मूर्तियों के चेहरे पर नजर आते हैं।
राजनीतिक संदेश
समय सीमा राजनीतिक दलों को भी खास संदेश दे गई। गुजरात, हिमांचल प्रदेश और कर्नाटक में चुनाव होने ही वाले हैं । समय सीमा वोट की फसल को अच्छा खासा खाद पानी दे गई है। ये जब पूरी तरह लहलाएगी तो इसे काटा जाएगा। यूपी ही नहीं पूरा देश मुजप्फरनगर में 2013 में हुए दंगे के बाद ध्रुवीकरण का नतीजा देख चुका है । विभाजन के बाद ये पहला बड़ा दंगा था जिसमें 50 हजार से ज्यादा लोग विस्थापित हो शिविरों में रहे थे। साल 2014 में लोकसभा के हुए चुनाव में इसका बड़ा फायदा बीजेपी को मिल चुका है। लोकसभा की 80 में 71 सीटें पार्टी ने जीत ली थी। इसके साथ उसके सहयोगी अपनादल को भी दो सीटें मिल गई थी। ममता की गलती बीजेपी को फायदा पहुंचा देगी संभवत: इसका अंदाजा उनको नहीं है । चुनाव के वक्त लोग ये सोचने को मजबूर हो जाते हैं कि उनकी धार्मिक भावनाओं का संरक्षण कौन सी पार्टी कर रही है। अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक दोनों दो खेमे में बंट जाते हैं। नतीजा चुनाव में जीत उसी को मिल जाती है जिसकी झोली में वोट गिर जाते हैं ।