कोलकाता। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अपने राजनीतिक करियर के सबसे कठिन लोकसभा चुनावों का सामना कर रही हैं। ममता अपनी तृणमूल कांग्रेस को भाजपा और कांग्रेस के बाद तीसरी सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभार कर चुनावों के बाद किंगमेकर की भूमिका निभाना चाहती हैं। बंगाल में भाजपा के साथ लगातार तेज होती जुबानी जंग को ध्यान में रखते हुए राजनीतिक हलकों में तमाम सवाल चल रहे हैं। भाजपा ने चुनाव आयोग से पूरे बंगाल को अति संवेदनशील राज्यों की श्रेणी में रखने और हर मतदान केंद्र पर केंद्रीय बल तैनात करने की मांग उठाई है। भाजपा की इस रणनीति का सामना करने के लिए ममता ने पिछली बार की तरह इस बार भी फिल्मी सितारों का सहारा लिया है। उन्होंने अपने आठ पुराने सांसदों का पत्ता साफ कर बांग्ला फिल्मों की दो टॉप अभिनेत्रियों समेत पांच फिल्मी हस्तियों को मैदान में उतारा है।
जिन दो अभिनेत्रियों को ममता ने टिकट दिया है उनमें से एक मिमी चक्रवर्ती तो कोलकाता की प्रतिष्ठित जादवपुर सीट से लड़ेंगी। यह वही सीट है जहां से कभी पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी और खुद ममता भी चुनाव लड़ चुकी हैं। दोनों अभिनेत्रियों को राजनीति का कोई अनुभव नहीं है। इसके अलावा ममता ने इस बार 42 में 17 सीटों पर महिलाओं को टिकट दिए हैं।
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बंगाल के पल-पल बदलते राजनीतिक हालात ने इस बार लोकसभा चुनावों को सबसे दिलचस्प बना दिया है। वर्ष 2004 के बाद ममता को कभी लोकसभा चुनावों में इतनी कड़ी चुनौती का सामना नहीं करना पड़ा है। यह तो एकदम साफ है कि यहां अबकी तृणमूल कांग्रेस और भाजपा के बीच सीधा मुकाबला है और एक-दूसरे को पटखनी देने के लिए दोनों पार्टियां कोई भी कसर नहीं छोड़ रही हैं। ममता भी मानती हैं कि २019 के लोकसभा चुनाव एक बड़ी चुनौती हैं और भाजपा उनकी मुख्य चुनौती है।
बंगाल में राजनीतिक हाशिए पर पहुंची कांग्रेस और सीपीएम अपना वजूद बचाने के लिए जूझ रही हैं। ऐसे में मुख्य प्रतिद्वंद्वी के तौर पर उभरी भाजपा से निपटने के लिए ममता ने अपनी रणनीति में बदलाव करते हुए कई जगह उम्मीदवार बदले हैं तो कई जगह उनकी सीटों में बदलाव किया है। खासकर बांकुड़ा, झाडग़्राम, मेदिनीपुर और बोलपुर इलाकों में यह बदलाव साफ नजर आता है जहां पिछले पंचायत चुनावों में भाजपा का प्रदर्शन बेहतर रहा था।
तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में तो फिल्मी सितारों के चुनाव मैदान में उतरने का लंबा इतिहास रहा है। पश्चिम बंगाल में अब तक लोकसभा चुनावों में ऐसे फिल्मी सितारों को टिकट देने का चलन नहीं था। लेफ्ट फ्रंट के जमाने में मंझे हुए राजनीतिज्ञ ही चुनाव मैदान में उतरते थे लेकिन ममता ने एक नई परंपरा शुरू करते हुए वर्ष 2009 के चुनावों में शताब्दी राय और तापस पाल जैसे उस समय के दो सबसे व्यस्त सितारों को मैदान में उतारा और वह दोनों अपने ग्लैमर और तृणमूल की लहर की वजह से आसानी से जीत गए। उसके बाद वर्ष 2014 में उन्होंने पांच सितारों को टिकट दिए। इनमें शताब्दी व पाल भी शामिल थे। वह पांचों जीत गए। अबकी भी ममता ने पांच सितारों को ही मैदान में उतारा है। फर्क यह है कि पिछली बार जीती संध्या राय और तापस पाल की जगह अबकी बांग्ला फिल्मों की दो शीर्ष अभिनेत्रियों, मिमी चक्रवर्ती और नुसरत जहां को चुनाव मैदान में उतारा गया है।
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खासकर मिमी चक्रवर्ती को कोलकाता की प्रतिष्ठित जादवपुर सीट से मैदान में उतारने का फैसला हैरत भरा रहा है। यह वही सीट है जहां वर्ष 1984 के लोकसभा चुनाव में सीपीएम के वरिष्ठ नेता सोमनाथ चटर्जी को पटखनी देकर ममता बनर्जी राजनीति के राष्ट्रीय परिदृश्य पर उभरी थीं।
इसी तरह बांग्लादेश की सीमा से लगी बशीरहाट सीट पर अभिनेत्री नुसरत जहां को उम्मीदवार बनाया गया है। उस इलाके में भाजपा का असर हाल के वर्षों में तेजी से बढ़ा है। ममता ने ग्लैमर के सहारे उसे बेअसर करने की रणनीति बनाई है। इन दोनों के अलावा बांग्ला फिल्मों के हीरो दीपक अधिकारी उर्फ देब, शताब्दी राय और मुनमुन सेन को भी टिकट दिया गया है। इनमें से मुनमुन सेन को बांकुड़ा की बजाय आसनसोल में भाजपा के संभावित उम्मीदवार बाबुल सुप्रियो के खिलाफ मैदान में उतारा गया है।
लोकसभा सीटों के लिए चुनावी समर शुरू होने से पहले ही पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस और भाजपा के बीच जुबानी जंग और आरोप-प्रत्यारोपों का सिलसिला तेज होने लगा है। हाल में केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद के नेतृत्व में भाजपा के एक शिष्टमंडल ने चुनाव आयोग से मुलाकात कर पश्चिम बंगाल में स्वतंत्र व निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिए प्रदेश को 'अति संवेदनशील राज्य' घोषित करने की मांग की है। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष दिलीप घोष कहते हैं कि बंगाल में मुक्त और निष्पक्ष चुनावों का आयोजन ही सबसे बड़ी चुनौती है। यही वजह है कि पार्टी ने तमाम मतदान केंद्रों पर केंद्रीय बल के जवानों को तैनात करने की मांग उठाई है। राज्य पुलिस की मौजूदगी में चुनाव निष्पक्ष नहीं हो सकते।
वहीं मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भाजपा की इस मांग को राज्य के लोगों का अपमान करार दिया है। वह कहती हैं कि राज्य में एक चुनी हुई लोकतांत्रिक सरकार है। इसके अलावा कानून व्यवस्था राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र में है। तमाम केंद्रीय एजेंसियों के हाथ में होने के बावजूद आखिर बंगाल को लेकर भाजपा नेतृत्व इतना डरा हुआ क्यों है? ममता ने भाजपा पर मानसिक रोगियों की तरह व्यवहार करने का भी आरोप लगाया है और चेतावनी दी है कि वह बंगाल के लोगों को कमतर आंकने की गलती न करे। लोग उसका सूपड़ा साफ कर देंगे।
फिल्म अभिनेत्रियां हुईं ट्रोल
बांग्ला फिल्म अभिनेत्री मीमी चक्रवर्ती और नूसरत जहां को जबसे तृणमूल ने लोकसभा चुनाव के लिए उम्मीदवार बनाया है तबसे दोनों सोशल मीडिया पर ट्रोल हो गयी हैं। फेसबुक, ट्विटर और वाट्सअप में मेमे, जोक्स, बयानों और लाइक्स की भरमार हो गयी है। कई लोगों ने मीमी चक्रवर्ती को एक अच्छी अभिनेत्री बने रहने के लिए राजनीति से दूर रहने की सलाह दी। वहीं कुछ लोग ममता बनर्जी के कदम से खुश नजर नहीं आए। एक यूजर का कहना है कि जादवपुर चुनाव क्षेत्र से मीमी चक्रवर्ती का खड़ा होना राजनीतिक और साहित्यिक दिग्गजों का अपमान है। कई यूजर्स ने दोनों अभिनेत्रियों के मूवी के आइटम सांग में डांस करने का फोटो पोस्ट किया और ममता के निर्णय की आलोचना की है। इसके जवाब में मीमी ने कहा कि इसके पहले भी कई खिलाड़ी व कलाकार सांसद रह चुके हैं। वह भी एक कलाकार हैं तथा कलाकार के रूप में उन्होंने काम किया है और चुनाव में प्रतिद्वंद्विता करना उनका अधिकार है। भाजपा सांसद बाबुल सुप्रियो ने भी अभिनेत्रियों को उम्मीदवार बनाये जाने पर ट्रोल करने की आलोचना करते हुए कहा कि कोई भी लोकसभा का उम्मीदवार हो सकता है। अभिनेत्री होने के कारण ट्रोल करना ठीक नहीं है। तृणमूल कांग्रेस महासचिव पार्थ चटर्जी ने कहा है किचुनाव समिति ने सोचसमझ कर उम्मीदवारों के नामों की घोषणा की है, इसमें कोई फेरबदल नहीं होगा।
भाजपा की घेराबंदी
जहां तृणमूल कांग्रेस से नेताओं का भाजपा में जाने का सिलसिला जारी है वहीं ममता बनर्जी की पार्टी में टिकट वितरण को लेकर भारी असंतोष भी नजर आ रहा है। कभी तृणमूल कांग्रेस में दूसरे नंबर की हैसियत रखने वाले मुकुल राय अब भाजपा में हैं। असंतुष्ट नेताओं और कुछ निर्वाचित प्रतिनिधियों तक को अपनी पूर्व पार्टी से भाजपा में लाने में उनकी भूमिका अहम बतायी जा रही है।
लोकसभा चुनाव के लिए जब तृणमूल ने अपने 42 उम्मीदवारों की सूची जारी की तब पार्टी में असंतोष के स्वर भी उठने लगे। इस सूची में कृचबिहार, बशीरहाट, झाडग़्राम, मेदिनीपुर, बोलपुर, विष्णुपुर और कृष्णनगर लोकसभा सीटों के वर्तमान सांसदों के नाम नहीं हैं। इन सीटों पर तृणमूल के स्थानीय नेतृत्व में मची कलह का भाजपा ने पिछले पांच साल में जम कर फायदा उठाते हुए अपने लिए रास्ते बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। कुछ सीटों पर तृणमूल पार्टी ने अपने पुराने नेताओं की उपेक्षा की और नौसिखियों, फिल्मी सितारों तथा कांग्रेस एवं वाम दलों से आए लोगों को प्रमुखता दी। सांसद सौमित्र खान, सांसद अनुपम हाजरा और चार बार विधायक रहे वरिष्ठ तृणमूल नेता अर्जुन सिंह भाजपा का दामन थाम चुके हैं। तृणमूल के दक्षिण दिनाजपुर जिला प्रमुख बिप्लव मित्रा बेलुरघाट लोकसभा सीट से अर्पिता घोष को दोबारा टिकट दिए जाने पर अपनी नाराजगी खुल कर जाहिर कर चुके हैं। रंगमंच की कलाकार अर्पिता तब से ममता की बुद्धिजीवी ब्रिगेड का हिस्सा रही हैं जब वह पूर्ववर्ती वाम मोर्चा सरकार के खिलाफ लड़ रही थीं। अर्पिता कहती हैं कि जब तक ममता का आशीर्वाद उनके साथ है तब तक उन्हें कोई नहीं हरा सकता।