आलोक अवस्थी
देहरादून: उत्तराखंड बीजेपी में प्रदीप बत्रा अकेले विधायक हैं, जिन्होंने सबसे कम समय में संघ परिवार समेत पूरे घराने को अपने खिलाफ खड़ा कर लिया है। कांग्रेस से बीजेपी में आए रुडक़ी के विधायक प्रदीप बत्रा ने पार्टी तो बदल ली लेकिन अपना तौर-तरीका नहीं बदला। पूरी पार्टी इनके कारनामों का लेकर सड़क पर है।
विधायक महोदय पर आरोप है कि एक व्यापारी- पटियाला लस्सी वाले को फायदा पहुंचाने के लिए इन्होंने सिविल लाइंस के चौराहे से चंद्रशेखर आजाद की प्रतिमा ही उखाड़ दी। चंद्रशेखर आजाद का दोष इतना था कि वो दुकान के सामने मूंछ ऐठ रहे थे। इसके खिलाफ पीडब्लूडी को ही कोर्ट जाना पड़ा। कोर्ट ने तो मूर्ति के हक में फैसला सुना दिया। लेकिन चंद्रशेखर आजाद जी तमाम दबाव के बाद भी विधायक जी की मर्जी के आगे बेबस हैं।
जबकि चंद्रशेखर आजाद की मूर्ति हटने पर जमकर बवाल हुआ था लोगों ने प्रदीप बत्रा के खिलाफ न सिर्फ नारेबाजी की थी बल्कि उनके पुतले की शव यात्रा भी निकाली थी। विभिन्न सगठन भी सड़क पर उतरे थे। पश्चिमी रुडक़ी भाजपा के मंडल अध्यक्ष सौरभ पंवार भी इनके खिलाफ संगठन के कार्यकर्ताओं की अनदेखी करने की शिकायत कर चुके हैं। सन् 1971 से स्थापित चंद्रशेखर की मूर्ति हटाने के मुद्दे पर उन्होंने भी कड़ी आपत्ति दर्ज करायी थी।
विधायक जी, अपनी और पत्नी की एलएलबी की फर्जी डिग्री को लेकर सीबीसीआईडी की जांच में दोषी पाए जा चुके हैं। ये बात और है कि विजय बहुगुणा के मुख्यमंत्रित्व काल में इस प्रकरण को ठंडे बस्ते में डलवा चुके हैं।
ताजा प्रकरण इनके बनते नए मॉल का है। नूजूल की जमीन पर कानून ताख पर रखने वाले प्रदीप बत्रा ने प्लाट के फ्रंट पर मौजूद पुलिस चौकी तक को उखाड़ कर फिकवा दिया। अब कोर्ट ने फिर इनके खिलाफ फैसला दे दिया है। बीजेपी के कार्यकर्ता और इस प्रकरण को प्रमुखता से उठाने वाले अभय पुण्डीर का आरोप है कि विधायक जी ने बेतहाशा पैसा पानी की तरह बहाया था। प्रशासन के हाथों को अपनी जेबों में कैद कर देते हैं। पैसे की ताकत के आगे पूरा प्रशासन इनके आगे नतमस्तक है।
और तो और इनका ये कारनामा तो सब पर भारी है। एक पुल का निर्माण सरकार ने कराया पर विधायक जी ने चार लाख रुपए खर्च कर उस पुल पर अपने पिता प्रकाश जी के नाम पर कर दिया। पुल सरकारी था। नाम प्रकाश गंगा। जमकर विरोध शुरू हुआ। भाजपा ने इस पुल का नाम पंडित दीनदयाल उपाध्याय के नाम पर रखा था लेकिन प्रदीप बत्रा ने सेतु का नाम अपने पिता के नाम पर प्रकाश गंगा ब्रिज कर दिया तो वही विरोध में मुखर हुई कांग्रेस ने इस पुल को नया नाम दे दिया सरदार भगत सिंह क्रांति सेतु। बाद में संगठन के दबाव के आगे सरकार को इस पुल का नाम पं. दीन दयाल उपाध्याय के नाम पर करना पड़ा।
बताया जाता है कि गंगनजर पर लोक निर्माण विभाग की ओर से नगर निगम कार्यालय के पास पुल का निर्माण कराया गया। लेकिन इसको लेकर राजनीति उस समय गरमा गई जब वायरल हुए एक वीडियो में लोगों ने देखा कि रंगारंग रोशनी में नहाए पुल की तस्वीरों में उसका नाम पं. दीनदयाल उपाध्याय प्रकाश गंगा सेतु के रूप में चमक रहा है। पुल के नाम में प्रकाश शब्द जोड़े जाने की जानकारी आम होते ही बवाल शुरू हो गया।
कांग्रेस नेता एवं पूर्व विधायक धरने पर बैठ गए। उनका कहना था कि पुल के नाम में विधायक के पिता का नाम जोड़े जाने से बेहतर है कि पुल का नाम महाराजा अग्रसेन पर कर दिया जाए। वही संत शिरोमणि रविदास सेवा ट्रस्ट के अध्यक्ष सोमपाल सिंह ने मुख्यमंत्री से मांग की कि इस सेतु का नाम भीमराव अम्बेडकर के नाम पर किया जाए। इसी तरह स्वतंत्रता सेनानी सत्यवती सिन्हा की बेटी किरण कौशिक ने अपनी माताजी के नाम पर पुल का नाम रखने की मांग उठा दी।
यह मामला उस समय कुछ ज्यादा ही गरमा गया जब भाजयुमो ने विधायक पर सीधे तौर पर पुल के नाम में दीनदयाल उपाध्याय की आड़ में अपने पिता का नाम जोड़े जाने का आरोप लगाते हुए विरोध शुरू कर दिया। भाजयुमों के मंडल अध्यक्ष वरुण त्यागी ने सीएम को भेजी शिकायत में कहा कि विधायक पुल के नाम में दीनदयाल उपाध्याय के साथ अपने पिता का नाम जोड़ कर उन्हें गरिमामंडित करने का प्रयास कर रहे हैं जबकि उनका समाज के हित में कोई योगदान नहीं रहा है। पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने भी इस पर गंभीर आपत्ति जतायी प्रदीप बत्रा इसमें सीएम की सहमति का राग अलापते रहे। लेकिन आलाकमान की कड़ी आपत्ति के बाद बड़ी मुश्किल से पुल से प्रकाश नाम हटा।
विधायक जी प्रधानमंत्री के स्वच्छता अभियान में शामिल हुए तो गंगा जी के किनारे सुलभ शौचालय बनवा डाला। जिसका सारा मल गंगा जी में जाता है और वह गर्व से कहते हैं कि हमने मोदी जी के स्वच्छता अभियान को गति प्रदान की। इसका भी विरोध जारी है।
इससे पहले चुनाव के दौरान अनुमति के बगैर विज्ञापन प्रकाशित कर चुनाव आयोग को सीधी चुनौती भी दे चुके हैं प्रदीप बत्रा जिस पर आयोग ने इन्हें नोटिस भी दी थी।
बीते नवंबर माह में एक खबर आई थी कि रुडक़ी के मौजूदा विधायक प्रदीप बत्रा के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज हो सकती है। इनके खिलाफ एक मामले की सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने शहरी विकास सचिव और संबंधित विभाग को कार्रवाई करने के आदेश जारी किये थे। दरअसल, नगर निगम रुडक़ी के वर्तमान मेयर यशपाल राणा ने इस मामले में हाई कोर्ट में याचिका दायर कर प्रदीप बत्रा पर आरोप लगाए थे कि रुडक़ी नगर पालिका चेयरमैन रहते हुए बत्रा ने अपने चहेतों को बिना किसी विज्ञापन या विज्ञप्ति के ही नगर पालिका की दुकानें आवंटित कर दी थीं।
इस प्रकरण में शासन स्तर पर उच्चस्तरीय कमेटी से जांच कराई गई थी। कमेटी की 3 मार्च 2015 को आई जांच रिपोर्ट में घोटाले की पुष्टि भी हुई थी। कोर्ट में सुनवाई के दौरान सभी सबूतों को देखते हुए शहरी सचिव और शहरी विकास मंत्री को इस मामले में कार्रवाई करने को कहा गया। कोर्ट ने अपने आदेश में साफ कहा है कि इस मामले में निष्पक्ष जांच कर जल्द एक्शन हो और जरूरत पडऩे पर बत्रा के खिलाफ मुकदमा भी दर्ज किया जाए। बावजूद इस सबके बत्रा का बाल भी बांका नहीं हुआ। जबकि आज की डेट में रुडक़ी नगर पालिका अब नगर निगम बन गया है और प्रदीप बत्रा कांग्रेस छोड़ बीजेपी के विधायक हैं।
कार्यकर्ताओं के लिए भी ये समझना मुश्किल होता जा रहा है कि इतने बेअंदाज विधायक को पार्टी संगठन क्यों शह दे रहा है? सत्तर सदस्यीय विधान सभा में पचपन विधायकों की ताकत रखने वाली पार्टी प्रदीप बत्रा के आगे किस ताकत के कारण नतमस्तक है। इसे ढूंढने में सभी लगे हुए हैं।
संगठन सर्वोपरि: अजय भट्ट
प्रदेश संगठन भी पेशोपेश में है प्रदीप बत्रा को लेकर। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट के अनुसार- संगठन सर्वोपरि है कोई भी कार्यकर्ता कितना भी बड़ा या छोटा क्यों न हो संगठन से ऊपर नहीं है। प्रदीप बत्रा का सारा प्रकरण संगठन की निगाह में है। समय आने पर उचित कार्यवाही होगी। अजय भट्ट बताते हैं कि रुडक़ी शहर के पदाधिकारी पुल प्रकरण पर जब उनसे मिले तो उनके कहने पर संगठन ने दबाव बनाया और प्रदीप बत्रा को अपने पिता जी के नाम लगाया गया बोर्ड हटाना पड़ा।
ये अनीस अहमद कौन हैं
बीजेपी का जिला संगठन इस नाम को लेकर बेचैन है... संगठन के पदाधिकारियों की मानें तो अनीस अहमद का आपराधिक रिकार्ड है। प्रदीप बत्रा ने इन्हें पहले विधायक प्रतिनिधि बनाया... अब ये महाशय जिला योजना के सदस्य भी बना दिये गए हैं।