Motivational Video: सलाम बेटी के जज्बे को! घर में नहीं थे पैसे, खुद 35 किमी रिक्शा चलाकर पिता को पहुंचाया अस्पताल
Daughter Motivational Video: इलाज के लिए पिता को जल्द से जल्द अस्पताल पहुंचाना जरूरी था, लेकिन उसके घर में इतने पैसे नहीं थे कि पिता को निजी गाड़ी से अस्पताल ले जाया जा सके।
Daughter Motivational Video: आज़ादी के अमृत महोत्सव के अवसर पर भी हम एक ऐसी ग़रीबी की दास्तान से रू ब रू होने जा रहे हैं, जिसमें एक बच्ची के हाथ में इतने पैसे नहीं होते हैं कि वह अपने पिता को अस्पताल न तो रिक्शे से ले जा सकती है। और न ही उसके पास फ़ोन है कि वह किसी एंबुलेंस बुला सकें। इस ह्रदय विदारक घटना की शिकार एक चौदह साल की नाबालिग बेटी हुई है।
ये पूरा मामला ओडिशा के भद्रक जिले नदिगान गांव का है, जहां 14 वर्षीय सुजाता सेठी के पिता झड़प में घायल हो गए थे। इलाज के लिए पिता को जल्द से जल्द अस्पताल पहुंचाना जरूरी था, लेकिन उसके घर में इतने पैसे नहीं थे कि पिता को निजी गाड़ी से अस्पताल ले जाया जा सके। लेकिन, बेटी ने हार नहीं मानी और पिता को रिक्शा पर बैठाया और खुद से रिक्शा चलाकर 14 किलोमीटर दूर धामगर अस्पताल ले गई, जहां डॉक्टरों ने हालत गंभीर देखते हुए भद्रक डीएचएच रेफर कर दिया। इसके बाद बेटी ने पिता को रिक्शा में बैठाकर फिर 21 किलोमीटर रिक्शा खींचा और पिता को अस्पताल पहुंचाया।
घटना के मुताबिक सुजाता के पिता शंभुनाथ 22 अक्टूबर को एक झड़प में घायल हो गए थे। इस दौरान जब सुजाता सेठी से पूछा गया तो उसने बताया कि भद्रक डीएचएच के चिकित्सकों ने उन्हें वापस घऱ जाने और ऑपरेशन के लिए एक सप्ताह बाद अस्पताल आने की सलाह दी। सुजाता सेठी ने कहा कि मेरे पास न तो निजी गाड़ी किराए पर ले जाने के लिए पैसे हैं और नही एंबुलेंस बुलाने के लिए मोबाइल फोन है। इसलिए, मैं अपने पिता को रिक्शा पर ही अस्पताल ले आई।
कोरोना काल में भी बेटी ने पिता को गुरुग्राम से पहुंचाया था बिहार
हालांकि यह पहला मामला नहीं है, जब किसी बेटी ने अपने पिता के लिए ऐसा कदम उठाया है। इससे पहले कई मौकों पर बेटियों ने पिता का साथ देकर साबित किया है, जो लड़के कर सकते हैं वह लड़कियां भी कर सकती हैं। कोरोना काल के दौरान साल 2020 में लॉकडाउन में जब पूरा देश घरों में कैद था, तब ज्योति नाम की एक लड़की ने अपने पिता को गुरूग्राम से बिहार पहुंचाया था। गुरुग्राम से 1200 किलोमीटर दूर गांव था। साइकिल से ग्रुरुग्राम तक जाने की कल्पना नामुमकिन थी। लेकिन ज्योति ने कर दिखाया था। अपने से कई गुना अधिक वजन के पिता को साइकिल पर बैठाकर ज्योति आठ दिन में 1200 किलोमीटर का सफर तय करके गुरुग्राम से दरभंगा के सिरहुल्ली गांव पहुंच गई थी।