नई दिल्ली: तमिलनाडु के राजनीतिक घमासान पर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) लगातार नजर बनाए हुए है। वहां ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (एआईएडीएमके) दो धड़ों के बीच जारी खींचतान में बीजेपी अपना दांव खेलने को तैयार है।
बीजेपी पूर्व सीएम ओ पन्नीरसेल्वम पर अपना दांव खेल रही है। इसके पीछे बीजेपी समर्थकों का तर्क है कि दिवंगत सीएम जे. जयललिता की पहली पसंद पन्नीरसेल्वम ही थे। इसीलिए जब-जब जयललिता ने पद छोड़ा उन्होंने अपनी जगह पन्नीर को ही दी। ऐसे में बीजेपी का मानना है कि जया की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने वाले वही हैं।
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...तो ये है बीजेपी की रणनीति
गौरतलब है कि तमिलनाडु में राज्य विधानसभा चुनाव होने में अभी 4 साल का समय शेष है। ऐसे में बीजेपी ऐसी पार्टी के तौर पर दिखनी चाहती है, जो जयललिता की पसंद के नेता के साथ नजर आए। राजनीतिक जानकारों का मानना है, कि बीजेपी को लगता है कि लोगों के बीच ज्यादा स्वीकार्य धड़े के साथ रहकर ही वह एआईएडीएमके समर्थकों के बीच अपनी पैठ बढ़ा सकती है। यही भविष्य में उसकी राजनीति के लिए फायदेमंद साबित होगी।
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लगातार जनाधार बढ़ने में जुटे मोदी-शाह
बता दें, कि साल 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने 282 से ज्यादा सीटें हासिल की थी। इसके बाद से बीजेपी उन क्षेत्रों में लगातार काम करती रही है जहां या तो उसका जनाधार है ही नहीं या है भी तो काफी कम, तमिलनाडु की राजनीति में पार्टी की दिलचस्पी इसी तरह की कोशिश है। पीएम मोदी और अमित शाह की जोड़ी इस दिशा में लगातार काम कर रही है। तमिलनाडु जैसे राज्य में बीजेपी का कोई चर्चित या विश्वसनीय चेहरा नहीं हैं। ऐसे में स्थानीय स्तर पर असर बढ़ाने के लिए उसे इस वक़्त दूसरी पार्टियों के नेताओं पर निर्भर रहना होगा।
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कम से कम 15 संसदीय सीट पर नजर
सूत्र बताते हैं कि बीजेपी ने 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव का खाका अभी से तैयार कर लिया है। इसी के मद्देनजर बीजेपी की नजर राज्य के 39 संसदीय सीटों में से कम से कम 15 सीटें जीतने की है।
इसलिए खड़ी है पन्नीर के पीछे
बीजेपी नेतृत्व का एक धड़ा मानता है कि अधिकतर एआईएडीएमके नेता आने वाले समय में इस उम्मीद के साथ पन्नीरसेल्वम के पीछे खड़े नजर आ सकते हैं कि उन्हें केंद्र सरकार का पूरा समर्थन हासिल होगा। जिसे समझते हुए बीजेपी भुनाने में जुटी है।
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बीजेपी के निशाने पर डीएमके
हालांकि, बीजेपी की मुख्य कोशिश राज्य की विपक्षी पार्टी द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) को राजनीतिक हाशिए पर रखने की है। पार्टी की रणनीति यही है कि करुणानिधि की राजनीतिक विरासत संभालने जा रहे एमके स्टालिन को एआईएडीएमके में जारी संकट का राजनीतिक फायदा उठाने का मौका न मिले।