नुक्कड़ सभाओं से लेकर चुनावी गीतों तक… आम चुनाव में इस तरह लुभाए जाते रहे हैं मतदाता
Lok Sabha Election: आजादी के बाद से लेकर अब तक चुनाव प्रचार के कई रूप बदले। पहले मुनादी कर वोटरों को एकत्रित किया जाता था। फिर दौर आया नुक्कड़ सभाओं और कवि सम्मेलनों का। इसके बाद अब चुनावी गाने दौर में हैं। आइए, विस्तार से जानते हैं चुनाव प्रचार के बदलते रूप को।
Lok Sabha Election: लोकसभा चुनाव के दो चरणों का मतदान समाप्त हो चुका है। तीसरे चरण की वोटिंग 7 मई को है। इसको लेकर पार्टियों के स्टार प्रचारक अलग-अलग राज्यों में जाकर चुनावी जनसभाओं को संबोधित कर रहे हैं। नेताओं पर वार-पलटवार का भी दौर जारी है। आजादी के बाद देश में पहले आम चुनाव 1951 में कराए गए थे। इस बार 18वीं लोकसभा का चुनाव हो रहा है। समय बदला, देश बदला और चुनाव के तरीके बदले। साथ ही चुनाव में प्रचार-प्रसार के माध्यम भी लगातार बदलते रहे। कभी एक समय था जब ढोल-नगाड़ों के साथ चुनावी जनसभा का आयोजन किया जाता था। अब एक समय है जब तरह-तरह के गाने चुनाव प्रचार के लिए प्रयोग में लाए जा रहे हैं।
अब हाइटेक हो चला है चुनाव
लोकसभा चुनाव को लेकर देश में राजनीतिक माहौल चरम पर है। दांव-पेच की रणनीति चल रही है। इस समय तमाम राजनीतिक पार्टियों और नेताओं का एक ही लक्ष्य है कि प्रभावी चुनाव प्रचार कैसे है? कैसे अपनी बात आम जनता तक आसानी से पहुंचाएं? इसका सबसे कारगर तरीका है असरदार नारे और जुबान पर चढ़ जाने वाले गीत। एक दौर था जब ढोल-नगाड़े बजाकर देश में चुनावी जनसभाओं का आयोजन किया जाता था, गांव के खेत खलिहानों में कवि सम्मेलन, संगीत सभा जमती थी। लेकिन अब समय बदल चुका है। साथ ही चुनावी प्रचार के तरीके और माध्यम भी बदल गए हैं। यूं कहें कि हाइटेक हो चला है।
सबसे ज्यादा बदलाव चुनाव प्रचार में ही हुआ
दशकों गुजर गए इस चुनाव प्रणाली में जो सबसे ज्यादा बदलाव हुआ तो वह प्रचार के तरीकों में ही हुआ है। एक जमाना था जब ठेठ देसी अंदाज में चुनावी प्रचार किए जाते थे, नेतागण बात ऐसी बोलते थे जो सीधे वोटरों के दिल को छूए। उस समय न तो इंटरनेट मीडिया वार रूम बनता था और ना ही वोटरों को रिझाने के लिए ऑडियो-वीडियो जैसे तरीके मौजूद थे।
मुनादी से बुलाए जाते थे वोटर्स
शुरूआती लोकसभा चुनावों में प्रचार बहुत दिलचस्प तरीके से होता था। स्थानीय बोली में मुनादी कर गांवों में किसी भी पार्टी की सभा या बड़े नेता के जनसभा की सूचना दी जाती थी। मुनादी करने वाला शख्स ढोल-नगाड़े बजाते हुए जोर-जोर से कहता ‘सुनो-सुनो-सुनो सुबह 10 बजे सभा होगी।' इसके बाद चुनावी प्रचार में रेडियो ने इंट्री ली। बीसवीं शताब्दी के सातवें-आठवें दशक में चुनाव की तारीख सुनने, या किसी भी तरह की चुनावी सूचना के लिए श्रोता रेडियो के पास बैठ जाते थे। उस जमाने में टीवी शायद ही किसी के पास होता था। उस समय कई लोग ऐसे भी होते थे जिन्हें यह भी पता नहीं होता था कि कौन चुनाव लड़ रहा है। तब तो विधानसभा चुनावों में पार्टी के आधार पर वोटिंग हो जाया करती थी। बस सबका जोर पार्टी के चुनाव चिह्न को ध्यान में रखने पर रहता था। जैसे-जनसंघ का दीपक, कांग्रेस का गाय बछड़ा या दो बैलों की जोड़ी, सोशलिस्ट का बरगद आदि।
नुक्कड़ सभाओं और कवि सम्मेलनों का दौर
पहले चुनावी प्रचार के तौर पर नुक्कड़ सभाएं होती थीं। स्थानीय बोली के कवि सम्मेलन हुआ करते थे। कई इलाकों में नाटकों के जरिए चुनाव प्रचार होता था। एक समय ऐसा भी आया जब मुहल्लों में आगे-आगे रिक्शा या पार्टी की प्रचार गाड़ी चलती। उस पार्टी की तरफ से आया कोई आदमी माइक लेकर बैठा चुनाव चिन्ह पैंप्लेट्स और स्टिकर्स को उछालता जाता और नारे लगाते जाता- गली-गली में शोर है...(प्रत्याशी का नाम लेकर) का जोर है। उस समय एक और नारा काफी चर्चा में आया था कि “दाल रोटी खाएंगे, (प्रत्याशी का नाम) जी को लाएंगे।”
चुनाव में गीतों की इंट्री
आज के दौर में चुनाव प्रचार का तरीका एकदम बदल चुका है। यूट्यूब पर राजनीतिक पार्टियों का प्रचार करने वाले गीतों और गायकों की भरमार है। कई सारे गायक पार्टियों का प्रचार करते सुनाई देंगे। पहले भी ऐसा होता था कि लोकगायक अपने-अपने नेता के नाम से जोड़कर गीत बनाते थे। जैसे- सांसद जी बेजोड़ बाटे, हमरी ...दीदी के विधायक बनाइहा, फिर से चली वोट के बयार, फिर से आई अबकी ...सरकार। ऐसा नहीं है कि सिर्फ लोकगायक, बल्कि मुंबई के कई ऐसे चर्चित कलाकार भी धीरे-धीरे चुनावी प्रचार में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने लगे हैं। बालेश्वर यादव का मुलायम सिंह यादव के लिए चुनावी गीत बनाना सपा को शिखर पर पहुंचाने में एक महत्वपूर्ण कारक रहा। इसी तरह हाल ही में कन्हैया मित्तल के गाए गीत 'जो राम को लाये हैं, हम उनको लाएंगे’, ने बीजेपी के लिए कमाल का काम किया।
चुनाव की तारीख घोषित होने से पहले बीजेपी ने जारी किया गाना
सभी पार्टियां अपने-अपने हिसाब से गीत-संगीत के माध्यम से मतदाताओं को अपने पालें में करने की कोशिश में जुटे हैं। इस बार के लोकसभा चुनाव का ऐलान होने से पहले ही बीजेपी ने चुनावी गाने गुनगुनाने शुरू कर दिए थे। बीजेपी ने की तरफ से कई चुनावी गीत जारी किये जा चुके हैं।
भाजपा ने 12 भाषाओं में पेश किया चुनावी गीत
कुछ दिनों पहले ‘मैं हूं मोदी का परिवार’ गीत पेश किया गया। अब ‘सपने नहीं हकीकत बुनते, तभी तो सब मोदी को चुनते’ जैसे गीत भाजपा के तरफ से लॉन्च किये गये हैं। यूट्यूब पर इस गीत को अब तक सात करेाड़ से भी अधिक लोग देख और सुन चुके हैं। बीते महीने भाजपा ने एक और मोदी सरकार गीत पेश किया है। भाजपा ने ‘सपने नहीं हकीकत बुनते’ गीत को 12 अलग-अलग भाषाओं रीलीज किया। इस गाने में मोदी सरकार की उपलब्धियों को देश की अलग-अलग भाषाओं में लाया गया है। इन गानाओं में मुख्य तौर पर उन अहम बातों और योजनाओं के बारे में दिखाया गया है, जिनके लिए केंद्र की मोदी सरकार देश-दुनिया में हमेशा चर्चा मे रही है। जैसे- यूपीआइ, उज्ज्वला गैस योजना, ड्रोन दीदी आदि।
कांग्रेस की ‘न्याय’ गीत
संगीत के माध्यम से चुनाव प्रचार की इस रेस में कांग्रेस ने भी अपने गाने पेश किए हैं। अपना एजेंडा वोटरों तक पहुंचाने के लिए कांग्रेस ने न्याय गीत के नाम से चुनावी गीत पेश किया है। कांग्रेस की ओर से जारी वीडियो करीब 2 मिनट 34 सेकंड का है, जिसमें कांग्रेस ने पांच न्याय और युवाओं के लिए दी गयी गारंटियों का जिक्र किया है। इस वीडियो को राहुल गांधी ने अपने यूट्यूब चैनल से अपलोड किया है। जिसे अब तक करीब 6 लाख 50 हजार से अधिक लोगों ने देखा है। कांग्रेस ने अपने इस चुनावी गीत के माध्यम से अपने चुनावी वादों जैसे- युवाओं के लिए रोजगार, किसानों के लिए एमएसपी और अप्रेंटिसशिप की गारंटी का जिक्र किया है। गाने के बोल हैं ‘तीन रंग लहरायेंगे, जब न्याय पायेंगे’।
ममता की पार्टी तृणमूल कांग्रेस का चुनावी गीत
देश की राजनीति में पश्चिम बंगाल की राजनीति भी विशेष स्थान रखती है। पश्चिम बंगाल की तृणमूल कांग्रेस ने भी अपने चुनावी गीत पेश किए हैं, जिसका बोल है , जोनोगोनेर गोर्जन (जोरदार गर्जन)। इस गीत में तृणमूल कांग्रेस ने बीजेपी को निशाना बनाया है।
कई राजनीतिक दलों ने जारी किए चुनावी गानें
इनके अलावा कई राजनीतिक पार्टियां हैं, जिन्होंने चुनावी गीत पेश किये हैं, लेकिन भाजपा-कांग्रेस और तृणमूल के गीत ही हैं, जिसपर जनता अधिक प्रतिक्रिया दे रही है।