Delhi Nahari Village: दिल्ली के निकट फिर भी समस्याएं

Delhi Nahari Village: गांव के लोगों को बिजली, पानी समेत कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।

Written By :  Yogesh Mishra
Update:2022-08-23 18:21 IST

दिल्ली के निकट फिर भी समस्याएं (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

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Delhi Nahari Village: दिल्ली की सीमा के साथ सटे मेरे गांव नाहरी (Nahari) से ही शराबबंदी आंदोलन (Alcohol Prohibition Movement) की शुरूआत हुई थी, लेकिन हमें अफसोस है कि आज आर्य समाज, मार्क्सवादी और नक्सलवादी चिंतन से राज्य के सबसे अधिक प्रभावित गांवों के सैकड़ों लड़के शराब, अफीम और यहां तक कि स्मैक के आदी हो गए हैं। झाल (तालाब) झाड़ और मंदिरों के लिए मशहूर अपने गांव में अब एक बार फिर जन जागरण अभियान (Jan Jagran Abhiyan) शुरू करने और संघर्ष करने की जरूरत महसूस होने लगी है। सरकार ने भी नहीं चाहा कि गांव का विकास हो और गांव के लडक़े सुधरें  यह हमारा स्वाभिमान ही है कि चाहे बंशीलाल हो, भजनलाल या फिर चोटाला हम प्रत्येक को खरी-खरी सुनाते हैं और इसी कारण गांव आर्थिक और भौतिक दृष्टि से आज भी वहीं हैं, जहां तीस साल पहले थे। ऐर छोर्यां धोरै कोए काम नहीं सै तै ने नशेड़िए बजेंगे।

दिल्ली का नरेला कम्बा (Narela) यहां से तकरीबन चार-पांच किलोमीटर दूर है, लेकिन वहां के हालात और यहां के हालात में दिन-रात का अंतर है। वहां जमीन की कीमत 30 लाख रूपये एकड़ है। जबकि यहां 2-4 लाख एकड़ भी कोई नहीं पूछता। यहां बिजली की हालत बुरी है। पड़ोस के दिल्ली के गांवों में 24 घंटे बिजली रहती है। जब हम दिल्ली से नौकरी करके लौटते हैं तो दिल्ली के गांव रोशन होते हैं और म्हारा गाँव अंधेरे म्हैं डूबा रह सैं रोटी भी दीवे के चांदणे म्हैं खां सैं।। हां एक बात जरूरी है कि नाहरी गांव के कुछ लोगों को दिल्ली के नजदीक होने से एनडीएमसी, एमसीडी, डीटीसी और डीडीए में नौकरियों अवश्य मिल गई हैं। सेना में बड़े पदों पर गांव के कई अफसर भर्ती भी हुए हैं और दो लड़कियां हरियाणा सिविल सेवा में भर्ती भी हुई हैं। कई लड़के व लड़कियां विदेशों में एमबीबीएस करके के भी आए हैं। लेकिन दिल्ली के लोगों का जीवन देखकर हमें अपने गांव के लोगों की हालत पर तरस आता है। नाहरी से जिला मुख्यालय सोनीपत तक जाने और दिल्ली जाने की सड़कों की हालत बेहद खराब है।

न मंत्री, ना नेता दे रहे इस गांव की ओर ध्यान

गांव के आर्य समाज मंदिर की हालत इन दिनों अच्छी नहीं है तो स्कूलों की स्थिति भी बहुत अच्छी नहीं है। दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री और फिलहाल श्रम मंत्री साहिब सिंह वर्मा की ससुराल इसी गांव में है, लेकिन उन्होंने गांव के विकास के बारे में नहीं सोचा है। पिछले दिनों पूर्व ग्रामीण विकास एवं कार्यावन्यन मंत्री व फिलहाल भाजपा अध्यक्ष वेंकैया नायडू यहां आए थे। उन्होंने गांव में बैंक की शाखा खुलवाने और टेलीफोन एक्सचेंज लगवाने का वादा किया था। लेकिन जिले के सबसे बड़े गांवों में से एक होने के बावजूद आज तक बैंक नहीं खुला है। जबकि यहां दो बड़े स्कूल और दूसरे कई सरकारी विभागों के दफ्तर हैं। बैंक न होने के कारण ग्रामीणों को छोटे मोटे या किसी बड़े ऋण के लिए आसपास के दूसरे गांवों में जाना पड़ता है। गांव की डिस्पेंसरी की हालत खस्ता हो चुकी है। सरकार के बार-बार के वादे के बावजूद यहां अस्पताल का निर्माण नहीं हो पाया है। हम गांववालों ने पिछले विधानसभा चुनाव का बहिष्कार का निर्णय भी किया था। लेकिन उम्मीदवारों और जिला प्रशासन के विकास के वादे के बाद हमने चुनाव में हिस्सा लिया। लेकिन उसके बावजूद गांव की समस्याएं जस की तस हैं।

मिनी स्टेडियम का निर्माण तक नहीं हो पाया

नाहरी गांव के तीन ओलंपिक खिलाड़ी और कई एशियाड विजेता रहे हैं। गांव के सत्यवीर और महावीर ने पहलवानी की दुनिया में ओलंपिक में खिताब जीते हैं। तो चांद सिंह ने राष्ट्रीय पहलवान के रूप में अपनी पहचान बनाई है। नाहरी गांव की हॉकी टीम प्रांतीय स्तर पर अक्सर अव्वल रही है। लेकिन सरकार द्वारा खेलों के विकास के लिए कोई कोच, अखाड़ा या खेलकूद के सामान की व्यवस्था करना तो दूर की बात गांव में जमीन उपलब्ध करवाए जाने के बावजूद मिनी स्टेडियम का निर्माण आज तक नहीं हो पाया है। पीने के पानी की हमारे गांव में कोई सरकारी व्यवस्था नहीं है। गांव वालों ने चंदा एकत्रित करके ट्यूबवेल लगाकर गांव के लिए सामूहिक पेयजल व्यवस्था स्थापित की है। गांव में अब सैकड़ों ट्रैक्टर हैं और आधुनिक तौर-तरीकों से खेती होती है। इससे कुछ किसान परिवारों की जिंदगी में क्रांतिकारी परिवर्तन आया है। आजादी से पहले से अब तक ग्रामीण चंद्रशेखर आजाद, भगतसिंह, राजगुरू, सुखदेव के दीवाने हैं। आजादी के आंदोलन के दिनों में गांव के स्वतंत्रता सेनानी अभय राम ने गांव में अंग्रेजी पुलिस से छिपने के लिए घर से खेतों तक एक सुरंग का निर्माण भी किया था। नेताजी सुभाष चद्र बोस की आजाद हिंद फौज में भी गांव के दर्जनों लोग सक्रिय थे।

(मूल रूप से 03.Feb,2005 को प्रकाशित।)

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