कोलकाता : वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) व्यवस्था लागू किए जाने पर नाराजगी जताते हुए दुर्गा पूजा के आयोजकों और मूर्ति निमार्ताओं का कहना है कि जीएसटी व्यवस्था ने उन्हें नुकसान पहुंचाया है, क्योंकि इससे उनका विज्ञापन राजस्व और मुनाफा कम हो गया है।
धन की कमी के मद्देनजर कोलकाता में सामुदायिक पूजा समितियों ने अपना बजट घटाना शुरू कर दिया है।
देश के पूर्वी हिस्से का सबसे बड़ा वार्षिक त्योहार पांच दिवसीय दुर्गा पूजा उत्सव 26 से 30 सितंबर तक आयोजित किया जा रहा है।
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पूजा आयोजकों ने जीएसटी को 'नया दानव' कहा है, क्योंकि इससे उन्हें बड़ी आर्थिक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। बड़े पैमाने पर होने वाला पूजा आयोजन प्रायोजकों, विज्ञापनदाताओं और दान पर निर्भर होता है, क्योंकि सदस्यता शुल्क संग्रह बजट के 10 प्रतिशत हिस्से में भी योगदान नहीं देता है।
कोलकाता नगर निगम के पार्षद असीम कुमार 14 पूजा समितियों में शामिल रहते हैं। उन्होंने बताया, "दुर्भाग्यपूर्ण है कि विज्ञापनों से मिलने वाला राजस्व बंद हो गया है और पूजा समितियों ने अपने-अपने अनुसार बजट में 15 से 20 फीसदी की कटौती की है।"
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फोरम फॉर दुर्गोत्सव के अध्यक्ष पार्थ घोष बताते हैं कि वास्तव में आयोजकों के लिए नई टैक्स प्रणाली 'अस्पष्ट' है। नई कर व्यवस्था लागू होने के बाद बुरी तरह प्रभावित हुआ उपभोक्ता वस्तु क्षेत्र इस साल विज्ञापन उपलब्ध नहीं करा पा रहा है।
घोष ने कहा, "उपभोक्ता वस्तुओं का क्षेत्र जो वर्षों से आयोजकों के लिए राजस्व का प्रमुख स्रोत रहा है, इस वर्ष आगे नहीं रहा है। उन्होंने अपनी अक्षमता और झिझक प्रदर्शित की है। नतीजतन, राजस्व में पिछले वर्ष की तुलना में 20 प्रतिशत की गिरावट दर्ज हुई है, लेकिन कई मामलों में यह गिरावट 30 प्रतिशत से अधिक है।"
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तेजी से बढ़ती उपभोक्ता वस्तुओं (एफएमसीजी) की कंपनियों में से कई ने अप्रैल-जून तिमाही के लिए राजस्व में गिरावट दर्ज की, जिसका कारण उन्होंने जीएसटी को बताया।
घोष ने कहा कि कारोबार संक्रमण के दौर से गुजर रहा है और जब तक यह नई कर व्यवस्था में ठीक तरह से समायोजित नहीं हो जाता, तब तक ये निराशाजनक हालात अक्टूबर माह में पड़ने वाले लक्ष्मी पूजा और काली पूजा जैसे त्योहारों को प्रभावित करेंगे।
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घोष ने जीएसटी लागू होने के समय पर नाराजगी जताते हुए कहा, "अगर जीएसटी 1 जुलाई से कुछ महीने पहले लागू किया गया होता, तो हमें बेहतर प्रतिक्रिया मिलती, क्योंकि तब तक व्यापारिक प्रतिष्ठानों के पास खुद को इसके अनुसार समायोजित करने का समय मिल जाता।"
आयोजक अब उम्मीद कर रहे हैं कि अगले साल उन्हें इस तरह की कठिन परिस्थिति का सामना नहीं करना पड़ेगा।
आयोजकों की तरह मूर्ति निर्माता भी जीएसटी लागू किए जाने के समय की तरफ उंगली उठा रहे हैं, क्योंकि उन्हें ऐसे में लागत से कम में मूर्तियां बेचने का दबाव झेलना पड़ रहा है।
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एक मूर्तिकार प्रद्युत पाल ने बताया, "रथ यात्रा समारोहों के लिए ज्यादातर मूर्तियों को पहले ही बुक कर लिया गया था, जो जीएसटी लागू होने से पहले की बात है। लेकिन जीएसटी लागू होने के बाद हमने पाया कि कई वस्तुओं की कीमतें बढ़ गई हैं, जिससे लागत में लगभग 20 प्रतिशत अधिक खर्च आ रहा था। हम खरीदार से अतिरिक्त कीमत नहीं ले सकते थे, क्योंकि कीमतें पहले से तय हो चुकी थीं।"
पाल ने इस साल पांच मूर्तियां विदेश भेजी हैं। बाहर जाने वाली मूर्तियों की कीमत 2.5 लाख से सात लाख रुपये के बीच होती है।
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इस संदर्भ में पाल ने कहा, "अगर आप जीएसटी के बाद अपने खर्च के मुताबिक कीमतों को बढ़ा देते, तो हमें इतना कम मुनाफे की स्थिति का सामना नहीं करना पड़ता। जीएसटी के कारण परिवहन लागत ने उछाल वृद्धि दर्ज की, जिसने हमें मिलने वाला पूरा मुनाफा निगल लिया।"
जीएसटी ने लागत को कैसे प्रभावित किया, इस पर बात करते हुए पाल ने कहा कि मूर्तियों के कपड़े तैयार करने और सजावट में इस्तेमाल होने वाली जरूरी चीजें जड़ी और कपड़ों पर 12 फीसदी और 5 फीसदी जीएसटी लग रहा है जबकि पहले यह कर काफी कम था।
पाल के अनुसार, "जीएसटी के बाद मूर्तिकारों को मूर्तियों के हाथों में लगने वाले हथियार बनाने में इस्तेमाल टीन की लागत पर 3.5 प्रतिशत अधिक खर्च करना पड़ रहा है।"