मोदी सरकार के 3 साल: विपक्ष की बैठक में होगा पोस्टमॉर्टम, मंदी और बेरोजगारी बनेंगे औजार
विपक्ष की बैठक में राष्ट्रपति उम्मीदवार के लिए साझा उम्मीदवार खड़ा करने पर निर्णायक चर्चा होनी है।लेकिन बंगाल जैसे राज्यों में विपक्षी एकता खतरे में हैं। कांग्रेस व वाम पार्टियां ममता सरकार के खिलाफ सड़कों पर हैं। उत्तर प्रदेश में भी सपा व बसपा के तार जोड़े रख पाना टेढ़ा काम है।
नई दिल्ली: राष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष की रणनीति तैयार करने के लिए शुक्रवार को होने वाली बैठक इस मामले में भी अहम बताई जा रही है कि मोदी सरकार आज ही केंद्र की सत्ता में अपने तीन साल पूरे कर रही है।
विपक्षी नेताओं का एक बड़ा हिस्सा इस बात की भी हिमायत कर रहा है कि अपनी उपलब्धियों का बखान कर रही मोदी सरकार के दावों को उसी दिन आईना दिखाना जरूरी है, जिस दिन यह सरकार अपने तीन साल पूरे होने का जश्न मना रही है।
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सरकार के जश्न में विपक्ष का आइना
आने वाले दिनों में विपक्ष दो प्रमुख मुद्दों पर मोदी सरकार की घेराबंदी करेगा। इनमें एक है, युवाओं को रोजगार दिलाने के मामले में सरकार बुरी तरह नाकाम हुई है, तो दूसरी ओर अर्थव्यवस्था भयावह मंदी के दौर से गुजर रही है।
विशेषज्ञों का कहना है कि जीडीपी ग्रोथ के पैमाने तय करने के लिए मोदी सरकार ने जो नए मानदंड तय किए हैं उन्हें अगर मनमोहन सरकार के कार्यकाल के चश्मे से देखा जाय तो जीडीपी मात्र 4 प्रतिशत के आसपास सिमट गई है। जबकि मोदी सरकार का दावा है कि यह बढोतरी 7.5 प्रतिशत तक है।
हर साल दो करोड़ लोगों को रोजगार दिलाने वाले मोदी सरकार के दावे पर विपक्षी दल सबसे ज्यादा आक्रामक हैं। शहरी बेरोजगारी के अलावा ग्रामीण भारत में बेकारी विकराल रूप धारण कर रही है। सूत्रों का कहना है कि मोदी सरकार के तीन साल के कार्यकाल पर विपक्षी पार्टियां अलग से भी काम कर रही हैं तथा इस बारे में अहम कोर बिंदुओें पर विपक्षी पार्टियों के बीच विचार विमर्श भी हुआ है।
आगे स्लाइड में विपक्षी एकता की राह में कांटे....
कांटे भी हैं राह में
हालांकि बंगाल जैसे राज्यों में विपक्षी एकता खतरे में हैं क्योंकि कांग्रेस व वाम पार्टियां ममता सरकार के खिलाफ सड़कों पर हैं। कमोबेश यही हालत उत्तर प्रदेश में भी है जहां सपा व बसपा के आपसी तार जोड़े रख पाना टेढ़ा काम है।
विपक्ष की बैठक में राष्ट्रपति उम्मीदवार के लिए साझा उम्मीदवार खड़ा करने पर निर्णायक चर्चा होनी है। लेकिन यह कोई जरूरी नहीं कि विपक्ष अभी से ही अपने पत्ते खोलने की तत्परता दिखाएगा। विपक्ष में अभी तक जो प्रमुख नाम इस पद के लिए सामने आए हैं उनमें महात्मा गांधी के पौत्र व राजनयिक गोपाल कृष्ण गांधी सबसे आगे हैं।
सोनिया गांधी ने भी उनके नाम को हरी झंडी दे दी है। हालांकि पूर्व लोकसभा स्पीकर मीरा कुमार का भी नाम कांग्रेस की सूची में है। लेकिन गोपाल कृष्ण गांधी ऐसा गैर विवादित नाम है जो दलगत राजनीति से अलग हटकर है।
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मुश्किल तो होगी
गोपाल गांधी का गुजराती मूल का होना भी प्रधानमंत्री मोदी को असहज करने वाला वाकया होगा इसलिए उनकी र्निविवाद छवि के बाद भी मोदी अगर उनके नाम का विरोध करते हैं तो अगले साल गुजरात विधानसभा चुनावों में कई हिचकोलों से जूझ रही भाजपा को जनता के सवालों का जवाब तलाशने में मुश्किलें आएंगी।