पोलियो भी नहीं बन पाई बाधा, यूट्यूब पर विडियो देख बनी एथलीट, जीत चुकी है 14 मेडल

Update: 2018-07-25 14:04 GMT

नई दिल्ली: 'पंख से कुछ नहीं होता हौसलों से उड़ान होती है मंजिल उन्हीं को मिलती है जिनके सपनों में जान होती है'। इस कहावत को आज दिल्ली की रहने वाली पैरा एथलीट श्वेता शर्मा ने सच साबित कर दिखाया है। उनके कमर के नीचे का हिस्सा बेजान है। वह चल-फिर नहीं सकतीं। उन्होंने तीन साल पहले तक कभी खेलने की कोशिश भी नहीं की थी। पर अब उनके नाम नेशनल और इंटरनेशनल लेवल पर 14 मेडल हैं। वे अब एशियन पैरा गेम्स की तैयारी कर रही हैं। ये खेल 8 अक्टूबर से इंडोनेशिया के जकार्ता में होंगे।

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9 महीने की उम्र में हो गई थी ये बीमारी

श्वेता शर्मा (32) बताती हैं, ''मैं जब 9 महीने की थी तब पोलियो के कारण मेरे दोनों पैर बेजान हो गये थे। मेरे घरवालों ने मुझें कई डाक्टरों के पास दिखाया लेकिन सभी ने जवाब दे दिया। इस बात से निराश घरवालों ने मेरी अच्छी परवरिश करने की ठान ली। मेरे पिता रोज मुझें अपने साथ स्कूल ले जाते और फिर छुट्टी होने पर वापस घर ले आते थे। मेरे घरवालों ने मेरे पालन पोषण में कोई कसर नहीं छोड़ी।

शादी के बाद भी मुसीबतों ने नहीं छोड़ा साथ

मेरी 23 साल की उम्र में शादी कर दी गई। 2015 तक जिंदगी ठीक ढंग से आगे बढ़ रही थी। लेकिन 2016 में मेरे पति की जॉब छूट गई। घर का खर्च चलना मुश्किल हो गया। दो बच्चों की मां श्वेता ने घर संभालने के लिए तब नौकरी करने की सोची। उन्होंने कई कम्पनियों में जॉब करने के लिए अप्लाई किया लेकिन उनके पैरों की तकलीफ को देखकर कोई भी उन्हें जॉब देने को राजी नहीं हुआ।

 

लाइफ में ऐसे आया ट्विस्ट

उन्हें पैरालंपियन दीपा मलिक के बारे में पता चला। वे दीपा से मिलीं और उनसे प्रेरित होकर खेलने का निर्णय लिया। उनके लिए अब मुश्किल यह थी कि उन्हें स्टेडियम लेकर कौन जाए। इस कारण उन्होंने यूट्यूब पर ही खेल के बारे में जाना। फिर 2016 से पास के मैदान पर प्रैक्टिस करने लगीं।

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अब तक 14 मेडल कर चुकी है अपने नाम

2017 में शॉटपुट में गोल्ड मेडल जीता। इसके बाद नेशनल पैरा गेम्स और एशियन ट्रायल में एक-एक गोल्ड और एक-एक ब्रॉन्ज मेडल जीत लिए। नेशनल और इंटरनेशनल लेवल पर उनके नाम अब तक कुल 14 मेडल दर्ज है।

बच्चों को पढ़ाने के लिए खुद भी कर रही पढ़ाई

श्वेता बताती हैं, 'खेलों में आने का कारण यह था कि इसमें स्कॉलरशिप और इनामी राशि दोनों मिलती है। मैं कैश प्राइज के लिए ओपन टूर्नामेंट में खेलती हूं।' मेरे दो छोटे बच्चे है। मैं खुद 12वीं की पढ़ाई कर रहीं हूं ताकि अपने बच्चों के पढ़ने में मदद कर सके।

 

 

 

 

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