Presidential Election 2022: मुर्मू की उम्मीदवारी से मुश्किल में फंसा झामुमो, सोरेन के लिए विरोध करना मुश्किल

Presidental Election 2022: द्रौपदी मुर्मू को उम्मीदवार बनाकर भाजपा ने एक तीर से कई निशाने साधने की कोशिश की है। ऐसा कर के भाजपा ने अपनी भावी रणनीति का खुलासा भी कर दिया है।

Report :  Anshuman Tiwari
Update:2022-06-22 11:53 IST

ओडिशा की आदिवासी नेता द्रौपदी मुर्मू  (Social media)

Presidential Election 2022: राष्ट्रपति के चुनाव में ओडिशा की आदिवासी नेता द्रौपदी मुर्मू को उम्मीदवार बनाकर भाजपा ने एक तीर से कई निशाने साधने की कोशिश की है। मुर्मू को उम्मीदवार घोषित करने के साथ ही भाजपा ने अपनी भावी रणनीति का खुलासा भी कर दिया है। भाजपा का यह कदम सियासी नजरिए से काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है क्योंकि इसके जरिए भाजपा ने महिलाओं के साथ ही आदिवासी समुदाय को साधने का बड़ा कदम उठाया है। पांच साल पहले एक दलित को देश के सर्वोच्च पद पर बिठाने के बाद अब आदिवासी महिला उम्मीदवार को चुनाव मैदान में उतारकर भाजपा ने बड़ा सियासी दांव खेला है।

भाजपा ने इस कदम के जरिए बीजू जनता दल और वाईएसआर कांग्रेस को तो साध ही लिया है मगर इसके साथ ही झारखंड मुक्ति मोर्चा के लिए भी मुश्किलें पैदा कर दी हैं। झामुमो आदिवासी के नाम पर राजनीति करता रहा है और ऐसे में आदिवासी उम्मीदवार मुर्मू का विरोध करना झामुमो के लिए काफी मुश्किल काम होगा। ऐसे में अब सबकी निगाहें झामुमो के फैसले पर टिकी हुई हैं।

भाजपा की बड़ा संदेश देने की कोशिश 

देशभर में आदिवासियों की आबादी 12 करोड़ से अधिक है, लेकिन राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक मोर्चे पर यह समुदाय आज भी पिछड़ा हुआ है। ऐसे में द्रौपदी मुर्मू को उम्मीदवार बनाकर एनडीए ने यह संदेश देने की कोशिश की है कि उसका फोकस समरस और सर्वस्पर्शी समाज बनाने पर है। मुर्मू की उम्मीदवारी का सियासी असर भी व्यापक तौर पर पड़ने की संभावना जताई जा रही है। 

यदि झारखंड के नजरिए से देखा जाए तो 2014 के चुनाव में जीत हासिल करने के बाद भाजपा ने झारखंड में गैर आदिवासी रघुवर दास को मुख्यमंत्री बनाया था मगर उसके बाद पार्टी ने देश के सबसे बड़े आदिवासी समुदाय संथाल से ताल्लुक रखने वाली मुर्मू को राज्यपाल बनाकर आदिवासी समुदाय को भी साधने की कोशिश की थी।

गहरे धर्मसंकट में फंसे हेमंत सोरेन 

झारखंड विधानसभा में 81 में से 28 सीटें आदिवासी समुदाय के लिए आरक्षित हैं। मौजूदा समय में इनमें से 26 सीटों पर झारखंड मुक्ति मोर्चा और कांग्रेस विधायकों का कब्जा है। झारखंड मुक्ति मोर्चा शुरुआत से ही आदिवासी समुदाय की बेहतरी के लिए काम करने के मुद्दे पर सियासत करता रहा है। ऐसे में मुर्मू को उम्मीदवार बनाकर एनडीए ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को गहरे धर्मसंकट में डाल दिया है।

 झामुमो के मौजूदा समय में 30 विधायक हैं और इसके साथ ही लोकसभा और राज्यसभा में भी पार्टी का एक-एक सदस्य है। द्रौपदी मुर्मू और हेमंत सोरेन के बीच पहले से ही काफी अच्छे रिश्ते रहे हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि सोरेन मुर्मू का समर्थन करने का बड़ा कदम उठा सकते हैं। 

आखिर क्या है हेमंत सोरेन की मुश्किलें 

वैसे मुर्मू का समर्थन करना सोरेन के लिए आसान भी नहीं है। विपक्षी दलों की ओर से यशवंत सिन्हा को पार्टी का उम्मीदवार घोषित किया गया है। यशवंत सिन्हा हजारीबाग से सांसद रह चुके हैं। कांग्रेस की ओर से यशवंत सिन्हा के समर्थन का ऐलान किया जा चुका है जबकि झारखंड में हेमंत सोरेन कांग्रेस और राजद के समर्थन से ही सरकार चला रहे हैं। ऐसी स्थिति में अगर वे मुर्मू का समर्थन करते हैं तो कांग्रेस से उनके रिश्ते पर असर पड़ सकता है और उनकी सरकार के लिए संकट पैदा हो सकता है।

दूसरी ओर यदि उन्होंने मुर्मू का समर्थन नहीं किया तो भाजपा को सोरेन पर हमला करने का बड़ा मौका मिल जाएगा। विपक्षी उम्मीदवार का समर्थन करने पर सोरेन को आगे चलकर सियासी नुकसान होने का भी डर है। भाजपा ने पहले ही खदान लीज आवंटन के मुद्दे पर सोरेन की घेराबंदी कर रखी है। ऐसे में आने वाले दिनों में उनकी मुश्किलें और बढ़ सकती हैं। 

राज्यपाल के रूप में आदिवासियों के लिए काम 

एनडीए उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू झारखंड में सबसे लंबे समय तक राज्यपाल रही हैं। उनका कार्यकाल करीब 6 साल से अधिक रहा। पांच साल का कार्यकाल पूरा होने के बाद भी वे कुछ समय तक प्रदेश की राज्यपाल बनी रहीं। सबसे उल्लेखनीय बात यह है कि इस दौरान किसी भी प्रकार का कोई विवाद नहीं पैदा हुआ। 

झारखंड के राज्यपाल के रूप में उन्होंने आदिवासियों और बालिकाओं को हितों को लेकर काफी सजग भूमिका निभाई। आदिवासियों से जुड़े मुद्दे पर उन्होंने कई बार सरकार को मार्गदर्शन भी दिया। ऐसे में एनडीए ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के सामने बड़े धर्मसंकट की स्थिति पैदा कर दी है। अब सबकी निगाहें राष्ट्रपति चुनाव के संबंध में सोरेन के फैसले पर टिकी हुई हैं।

Tags:    

Similar News