Protests in India: 32 साल पहले भी जला था देश, युवाओं के प्रदर्शन से कईयों की हुई थी मौत

Student Protests in India: 7 अगस्त 1990 को वीपी सिंह ने देश में मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करने का ऐलान कर दिया और 13 अगस्त 1990 को बढ़ते विरोध – प्रदर्शन को देखते हुए इसे लागू करने की अधिसूचना जारी कर दी गई।

Written By :  Krishna Chaudhary
Update:2022-06-17 20:39 IST

brief history of student protests in India (Social Media)

Student Protests in India: अग्निपथ सैन्य भर्ती स्कीम के खिलाफ चल रहा विरोध – प्रदर्शन पूरी तरह से नौजवान केंद्रित है। इस स्वतः स्फूर्त युवाओं के आक्रोश में देश के कई हिस्से बीते तीन दिनों से जल रहे हैं। पूरा समाचार जगत भीषण आगजनी और तोड़फोड़ की खबरों से अटा पड़ा है। एक नौजवान ने तो सरकार की नई योजना के विरूद्ध खुद का जीवन ही खत्म कर लिया। हालांकि, देश में ऐसा पहली बार नहीं हुआ है, इससे पहले भी युवा सरकार के खिलाफ सड़कों पर उतरकर अपना गुस्सा और आक्रोश जाहिर कर चुके हैं। 1990 में मंडल आयोग की सिफारिशों के खिलाफ भड़का देशव्यापी आंदोलन इसका उदाहरण है।

मंडल कमीशन क्या है ?

सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्ग की स्थिति को जानने के लिए 20 दिसंबर 1978 को मोरारजी देसाई सरकार (Morarji Desai Government) ने बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल (Former Bihar Chief Minister Bindeshwari Prasad Mandal) की अध्यक्षता में 6 सदस्यीय पिछड़ा वर्ग आयोग के गठन (Constitution of Backward Classes Commission) की घोषणा की। यह आयोग मंडल कमिशन के नाम से प्रसिध्द हुआ। मंडल आयोग ने अपने रिपोर्ट में पिछड़े वर्गों को सरकारी नौकरियों में 27 प्रतिशत आरक्षण देने की सिफारिश की थी। मंडल आयोग ने 12 दिसंबर,1980 को अपनी रिपोर्ट फाइनल किया लेकिन तब तक मोरारजी देसाई सरकार जा चुकी थी और केंद्र में इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) की सरकार आ चुकी थी। कांग्रेस इस सिफारिश पर लंबे समय तक चुप्पी साधे बैठी रही। बाद में विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार आने के बाद उन्होंने इस जिन्न को बोतल से निकाला। 7 अगस्त 1990 को वीपी सिंह ने देश में मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करने का ऐलान कर दिया और 13 अगस्त 1990 को बढ़ते विरोध – प्रदर्शन को देखते हुए इसे लागू करने की अधिसूचना जारी कर दी गई।

आरक्षण के खिलाफ उबला देश

तत्ताकलीन प्रधानमंत्री वीपी सिंह (Former PM VP Singh) के आरक्षण लागू करने के ऐलान के बाद पूरे देश में विरोध की आग भड़क उठी। देशभर में सवर्ण समुदाय के छात्र सड़कों पर उतर आए। दरअसल देश में अनुसूचित जाति-जनजाति को पहले से 22.5 प्रतिशत आरक्षण दिया जा रहा था। उसके बाद पिछड़ा वर्ग को 27 फीसदी आरक्षण दिए जाने के बाद 49.5 सीटें आरक्षित हो गईं। ऐसे में सवर्ण समुदाय के लिए केवल 50 प्रतिशत के करीब सीटें बचीं। इसी को लेकर वह सड़कों पर उतर आए। जगह-जगह से आगजनी और तोड़फोड़ की खबरें आने लगी थीं। छात्रों के जबरदस्त प्रदर्शन के कारण वीपी सिंह की नेशनल फ्रंट सरकार को समर्थन दे रही बीजेपी भी दवाब में आ गई थी। सरकार के अंदर मौजूद सवर्ण समुदाय के नेताओँ पर भी काफी दवाब बढ़ गया था।

राजीव गोस्वामी बने थे इस विरोध का चेहरा

देश भर में ओबीसी आरक्षण के खिलाफ कई महीनों तक जबरदस्त विरोध – प्रदर्शन हुआ था। राजधानी दिल्ली में प्रदर्शन की त्रीवता सबसे अधिक थी। यहां पर लगातार छात्रों और पुलिस के बीच झड़पें हो रही थीं। इस बीच 19 सितंबर 1990 को दिल्ली में ऐसा कुछ हुआ, जिसने पूरे देश को झकझोड़ कर रख दिया। आरक्षण का विरोध कर रहे दिल्ली विश्वविद्यालय के देशबंधु कॉलेज के तीसरे वर्ष के छात्र राजीव गोस्वामी ने खुद को आग के हवाले कर दिया। उसे गंभीर हालात में एम्स में भर्ती करवाया गया। अगले दिन सभी समाचार पत्रों पर उसकी जलती हुई तस्वीर छपी, जिसने इस आंदोलन को और गरमा दिया। उस दौरान गोस्वामी से मिलने एम्स पहुंचे भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी को सवर्ण युवाओं का तगड़ा विरोध झेलना पड़ा था। 50 फीसदी से अधिक जलने वाले राजीव गोस्वामी कभी इससे उबर नहीं पाए और 2004 में उनकी मृत्यु हो गई। आरक्षण पर उठे बवंडर ने ही वीपी सिंह की केंद्र की सत्ता से विदाई की पटकथा लिख दी थी। उसी साल नवंबर आते – आते सरकार को बाहर से समर्थन दे रही बीजेपी ने समर्थन खींच लिया। 7 नवंबर 1990 को वीपी सिंह ने पीएम पद से इस्तीफा दे दिया था।

Tags:    

Similar News