40 साल पहले की सोच के साथ भागलपुर के कहलगांव में निर्माणाधीन नहर की दीवार ढहने और इससे आई अप्राकृतिक बाढ़ के कारण उमड़े सवालों के सैलाब में सरकारी तंत्र ने ‘सुरक्षित रास्ता’ ढूंढ़ लिया है। परियोजना जल संसाधन विभाग के तहत है, लेकिन सुरक्षित रास्ता एनटीपीसी के जरिए मिला है। एनटीपीसी ने सामने आकर नहर पर बने अंडरपास निर्माण में अपनी गलती स्वीकार करते हुए नए सिरे से निर्माण पर होने वाले खर्च को वहन करने की सहमति दी है।
भागलपुर/पटना: बिहार के भागलपुर जिला मुख्यालय से करीब 30 किलोमीटर दूर कहलगांव में निर्माणाधीन नहर की दीवार ढहने से आए अप्राकृतिक सैलाब की जांच पूरी हो गई है। आधे-अधूरे नहर का 20 सितंबर को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार लोकार्पण करने वाले थे, लेकिन ठीक एक दिन पहले शाम में आधी से भी कम शक्ति वाले मोटर से ट्रायल के दौरान नहर की दीवार ढह गई थी। राज्य सरकार ने जांच का आदेश दिया। पहले तो निर्माण के जिम्मेदार जल संसाधन विभाग के हाथ में ही जांच का जिम्मा मिला और फिर नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन (एनटीपीसी) को भी इसमें शामिल कराया गया।
अब जांच का नतीजा सामने आया है तो अप्रत्याशित रूप से न पुरानी सरकार फंसी और वर्तमान। राजद भी मोर्चा खोलकर पीछे हट गई थी, क्योंकि 40 साल से चल रहे निर्माण के दौरान राजद-कंाग्रेस, जदयू-कांग्रेस-राजद, जदयू-भाजपा..हरेक की सरकार रही है। जांच की बात सामने आने से पहले ही महागठबंधन में शामिल कांग्रेस मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ खड़ी हो गई थी। ‘अपना भारत’ ने पहले ही यह साफ किया था कि अगर इस मामले की सही तरीके से जांच हो जाए तो कोई भी राजनीतिक दल सवालों के दायरे से बाहर नहीं बचेगा। अब जांच रिपोर्ट में एनटीपीसी पर जिम्मेदारी डालकर बीच का रास्ता निकाला जा चुका है।
अंडरपास निर्माण पर बात-बात से घूमी जांच
निर्माणाधीन बटेश्वर स्थान पंप नहर परियोजना में बीच में वॢटकल गार्ड वाल के बिना अंडरपास बनाना गलत निर्णय था। गार्ड वाल होता तो शायद नहर की दीवार नहीं टूटती। - नहर की दीवार टूटने पर जल संसाधन विभाग के प्रधान सचिव ने यह बयान दिया था। यह परियोजना जल संसाधन विभाग के पास है और प्राथमिक जांच में यही बात सामने नहीं आ रही थी कि आखिर किसके आदेश या किसकी अनुमति से नहर पर अंडरपास का निर्माण कराया गया। कहलगांव में एनटीपीसी थर्मल और इसका बड़ा आवासीय परिसर है। इसी आधार पर बातों-बातों में यह बात सामने आई कि एनटीपीसी ने यह अंडरपास बनाया/बनवाया।
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इस सवाल का जवाब अब भी किसी के पास नहीं है कि बिहार सरकार के जल संसाधन विभाग की परियोजना में एनटीपीसी ने कैसे बदलाव किया, हालांकि इन्हीं बातों के उठने पर एनटीपीसी ने अंडरपास के लिए अनापत्ति प्रमाणपत्र (एनओसी) लेने की बात कहकर बीच का रास्ता निकाल दिया। एनटीपीसी ने जांच के दौरान जैसे ही एनओसी की बात कही, बिहार सरकार ने उससे इसकी प्रति मांग ली। जब यही नहीं पता कि जल संसाधन विभाग के प्रोजेक्ट में एनटीपीसी ने कैसे अंडरपास बनवा लिया तो एनओसी की प्रति मिलने की संभावना पहले दिन से नहीं थी। 28 सितंबर को जल संसाधन विभाग के पांच और एनटीपीसी के नौ अधिकारियों ने नहर के टूटे हिस्से और अंडरपास के संयुक्त निरीक्षण के बाद जांच रिपोर्ट तैयार की तो यह मान लिया गया कि एनटीपीसी के पास एनओसी नहीं है। इस तरह एनटीपीसी ने खुद ही अंडरपास की गड़बड़ी के लिए जिम्मेदारी मानते हुए नए सिरे से निर्माण का खर्च वहन करने पर अपनी सहमति दे दी।
असल सवाल वहीं के वहीं रह गए
40 साल पहले कहलगांव के आसपास के इलाकों में नहर से पानी उपलब्ध कराते हुए किसानों को सिंचाई की समस्या का समाधान देने के लिए महज 13 करोड़ से बनी यह योजना अब तक पूरी नहीं हुई है। परियोजना की लागत 828.80 करोड़ पहुंच चुकी है। कुल परियोजना राशि में 389 करोड़ ही स्वीकृत होने के कारण इसे निर्माणाधीन ही कहा जाएगा, इसके बावजूद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के हाथों उद्घाटन की जल्दबाजी का कारण अब तक जाहरि नहीं हुआ है। बिहार के साथ झारखंड के भी कुछ हिस्सों को परियोजना से फायदा दिलाने के अलावा इसका कोई विस्तार या नया रूप नहीं दिखा।
सवाल आज भी वहीं है कि अगर परियोजना इतनी अहम थी तो 40 साल तक राजनीतिक दलों ने पूरी इच्छाशक्ति के साथ इसपर ध्यान क्यों नहीं दिया। और, अगर यह जरूरी नहीं लगा तो लागत 63 गुणा बढऩे के बावजूद इसे दोबारा गति देने से पहले समीक्षा क्यों नहीं की गई। अब एनटीपीसी के जिम्मेदारी लेने पर एक और सवाल खड़ा हो गया है कि आखिर बिहार सरकार के प्रोजेक्ट में घुसकर क्या केंद्र सरकार का उपक्रम अपनी मर्जी से निर्माण में बदलाव करा सकता है?
• 1977 में 13.88 करोड़ की लागत से योजना का शिलान्यास हुआ था।
• 2017 में अब तक परियोजना की लागत 828.80 करोड़ पहुंच चुकी है।
• 389 करोड़ ही स्वीकृत, परियोजना अब भी निर्माणाधीन ही कही जाएगी।