गूगल पर नहीं मिलेगी इनकी जानकारी, सहज रखे हैं 175 देशों के दुर्लभ सिक्के

Update:2017-11-30 11:59 IST

गोरखपुर: आज के जमाने में किसी को आलीशान बंगले का शौख है, तो किसी को लक्जरी गाड़ी का, तो किसी को कुछ, लेकिन आज के समय में एक ऐसा व्यक्ति है, जिसे सिक्के इकट्ठे करने का शौक है। आपको एक ऐसे बुजुर्ग शख्स से रूबरू करवाने जा रहे हैं, जिसके जूनून को देख कर आप भी दंग रह जाएंगे। दुअन्नी-चवन्नी के नोट हों या कागज के सिक्के! ये शब्द सुन कर थोड़ा अजीब लग रहा होगा, लेकिन गोरखपुर के रहने वाले कृष्ण चंद्र रस्तोगी ने 175 देशों के दुर्लभ मुद्राओं को इकठ्ठा किया है।

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सबसे छोटी मुद्रा के नोट कहें या कागज के सिक्के। एक पैसा, दो आना, चार आना की मुद्रा लेकिन सिक्कों के रूप में नहीं, कागज पर। गोरखपुर के अलीनगर मोहल्ले में रहने वाले 77 साल के कृष्णचंद्र रस्तोगी ने इस दुर्लभ मुद्रा को सहेज कर रखा है। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान अंग्रेजों के कहने पर भारत की रियासतों में छापी गई ये मुद्रा अद्भुत है। कृष्णचंद्र रस्तोगी को प्राचीन मुद्रा इकट्ठा करने का जुनून है। किशोर उम्र से ही वह दुर्लभ सिक्के और नोट इकट्ठे करते रहे हैं। दोस्तों, रिश्तेदारों से कुछ उपहार स्वरूप मिले तो कुछ उन्होंने खरीदे।

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Newstrack.Com से ख़ास बातचीत में रस्तोगी बताते हैं कि पूरी दुनिया में आधार मुद्रा (भारत में रुपया) से छोटे मूल्य की मुद्रा सिक्कों के रूप में ही प्रचलित हैं। भारत में भी एक रुपए से कम कीमत के नोट या कागज की मुद्रा कभी नहीं छपी। बस द्वितीय विश्वयुद्ध के चार-पांच साल अपवाद हैं। 1939 में विश्वयुद्ध होने पर भारतीय सेना भी मित्रराष्ट्रों की सेनाओं के साथ लड़ी। अंग्रेजों ने युद्ध के दौरान अपने धातु भंडार की रक्षा के लिए भारत की कई रियासतों की टकसालों को बंद करा दिया। उनके शासकों से कहा गया कि वे कागज पर सिक्के छाप लें और रियासत की ब्लॉक मुहर के साथ प्रचलित कर दें। रियासतों ने यही किया और कागज के सिक्के प्रचलित हुए।

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राजा बूंदा मीना द्वारा राजस्थान में स्थापित बूंदी रियासत में 1940 में कागज के सिक्के छापे गए। कृष्ण चंद्र रस्तोगी के संग्रह में एक आना कीमत का पेपर क्वाइन उपलब्ध है। उनके पास गवर्नमेंट ऑफ बीकानेर की तत्कालीन सदर ट्रेजरी से 1940 से 1943 के मध्य छपे एक पैसा, दो आना, चार आना के कागज के सिक्के भी उपलब्ध हैं। इसी तरह उनके संग्रह में जूनागढ़ इस्टेट के द्वारा 1939 में एक पैसा, 2 पैसा, 1 आना के कागज पर छपे पैसे भी उपलब्ध हैं।

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जूनागढ़ स्टेट के इन सिक्कों पर सौराष्ट्र लिखा हुआ है, पेशे से बिजनस मैन रहे कृष्ण चंद्र रस्तोगी उस दौरान भी जहां जाते, सिक्के बटोर लाते, और अब जब उनकी उम्र 78 साल हो चुकी है, तो घर में ही रह कर इस तरह के सिक्के दुसरो से मंगवाते हैं और उसे संजोते हैं, उनके परिवार के लोग भी उनके इस काम में उनका पूरा सहयोग देते हैं, अब इनकी इच्छा यही है कि सरकार इस तरह के जूनून या हुनर को पहचाने और इन्हें सजोने का काम करे ताकि हमारी आने वाली पीढ़ी इस तरह के सिक्कों को समझ सके और जान सके क्योंकि ये जितने भी सिक्के हैं, इनकी जानकारी न ही गूगल चाचा के पास है, और न ही किसी इंटरनेट के साइड पर, ये सब दुर्लभ मुद्राएं सिर्फ गोरखपुर के कृष्ण चंद्र रस्तोगी के पास मिलेगी, जिसे उन्होंने बड़े ही हिफाजत के साथ संजो कर रखा है।

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कृष्ण चंद्र रस्तोगी के इस जूनून में उनकी धर्म पत्नी हमेशा उनका साथ देती रहती है क्योंकि उन्हें गर्व है कि सी उम्र में भी उन्होंने ऐसा किया, जिसके बाद आज गोरखपुर के साथ साथ पूरा प्रदेश और देश उन्हें जानने लगा है, गोरखपुर के रस्तोगी इस समय उम्र के आखिरी पड़ाव में सफर कर रहे हैं, बावजूद इसके इन्हें हिम्मत और इनके जूनून में कोई कमी नहीं आई है, आज भी इन्हें इसी तरह के दुर्लभ मुद्रा सजोने की ही धुन सवार रहती है, इनका बेटा कहीं जाता तो इन्हें लेकिन दुर्लभ सिक्के ले आता और ये उसे फाइलों में पी रो लेते। अब इनके हुनर और जूनून को सरकार कितनी गंभीरता से लेते हैं, ये तो आने वाल वक्त ही बताएगा।

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