Ratan Tata: सबसे सस्ती कार का ऐसे देखा था सपना, सिंगूर में ममता के विरोध के बाद मोदी ने लपक लिया था प्रोजेक्ट
Ratan Tata Nano: मिडिल क्लास की दिक्कतों को दूर करने के लिए ही रतन टाटा ने सस्ती नैनो कार का सपना देखा था।
Ratan Tata Nano: देश के सबसे प्रतिष्ठित और पुराने औद्योगिक घराने टाटा समूह के मुखिया रतन टाटा का निधन हो गया है। रतन टाटा की सादगी हमेशा चर्चा का विषय रही है और वे हमेशा गरीबों और मिडिल क्लास के लोगों के लिए चिंतित रहा करते थे। मिडिल क्लास की दिक्कतों को दूर करने के लिए ही रतन टाटा ने सस्ती नैनो कार का सपना देखा था।
मुंबई की तेज बारिश में एक बार टू व्हीलर पर भीगते चार लोगों के परिवार को देखकर रतन टाटा ने सस्ती नैनो कार बनाने का फैसला किया था। शुरुआत में इस कार के लिए पूरे देश में मारामारी मच गई थी। हालांकि बाद के दिनों में इसके प्रति लोगों का आकर्षण घट गया। अब तो इस कार का प्रोडक्शन भी बंद किया जा चुका है।
बारिश में भीगते परिवार को देखकर आया आइडिया
निचले मध्य वर्ग के लिए सस्ती कार का सपना देखने वाले रतन टाटा ने कई बार लोगों के साथ अपने विचारों को साझा किया था। दरअसल बारिश में भीगते परिवार को देखकर रतन टाटा ने सोचा कि एक छोटी और सस्ती कार होती तो वे लोग कार में आराम से सीट पर बैठ कर जाते।
स्कूटर पर बारिश में इस तरह लदकर जाते लोगों को देखकर उनके दिमाग में सस्ती कार बनाने का विचार जगा। रतन टाटा ने एक बार इंस्टाग्राम पर इस बाबत पोस्ट भी लिखा था। उनका कहना था कि आर्किटेक्चर स्कूल से जुड़ा होने के कारण मैं खाली समय में हमेशा डूडल बनाता रहता था। इसी दौरान मैंने एक कार का डूडल बनाया जो बग्घी जैसा दिखता था और उसमें दरवाजे तक नहीं थे।
इसके बाद मैंने फैसला कर लिया कि मुझे ऐसे लोगों के लिए कार बनानी चाहिए और फिर टाटा नैनो कार सबके सामने आई। यह कार हमारे आम लोगों के लिए थी। ऐसे लोगों के लिए जो कार का सपना तो देखते हैं मगर कार खरीदने में सक्षम नहीं है। इसे टाटा नैनो का नाम दिया गया और पूरे देश में यह कार लखटकिया के नाम से प्रसिद्ध हुई।
बंगाल के सिंगूर में प्रोजेक्ट लगाने का फैसला
टाटा की इस कार के प्रोजेक्ट को लेकर बड़ा राजनीतिक विवाद भी पैदा हुआ। दरअसल रतन टाटा इस प्रोजेक्ट को पश्चिम बंगाल के हुगली जिले के सिंगूर में लगाना चाहते थे। इस बाबत उन्होंने 2006 के मई महीने में पश्चिम बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य और कॉमर्स मिनिस्टर निरुपम सेन के साथ बैठक की थी।
इस बैठक के बाद ही सिंगूर में प्रोजेक्ट लगाने का ऐलान किया गया। इसके लिए टाटा को करीब एक हजार एकड़ जमीन की जरूरत थी। इसके लिए प्रशासन की ओर से जमीन अधिग्रहण की प्रक्रिया भी शुरू कर दी गई।
ममता बनर्जी ने किया तीखा विरोध
उस समय तृणमूल कांग्रेस की मुखिया ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल की वाम सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल रखा था और वे पश्चिम बंगाल में अपना जनाधार बढ़ाने की कोशिश में जुटी हुई थीं। उन्होंने जमीन अधिग्रहण का विरोध किया और सिंगूर जाने की जिद पकड़ ली। उन्होंने जमीन अधिग्रहण का विरोध करने वाले लोगों के समर्थन में आंदोलन छेड़ दिया।
पुलिस में 30 नवंबर 2006 को ममता बनर्जी को सिंगूर जाने से रोक दिया। इसके विरोध में तृणमूल कांग्रेस के विधायकों में पश्चिम बंगाल विधानसभा में भारी हंगामा किया। इसके बाद ममता बनर्जी 6 दिसंबर 2006 को सिंगूर प्रोजेक्ट के खिलाफ आमरण पर बैठ गई। उनकी पार्टी ने इस प्रोजेक्ट के खिलाफ बड़ा आंदोलन छेड़ दिया।
मोदी ने गुजरात के लिए लपक लिया प्रोजेक्ट
सिंगूर प्रोजेक्ट के खिलाफ ममता की पार्टी की ओर से चलाए जा रहे आंदोलन के कारण रतन टाटा का मन खट्टा हो गया और उन्होंने 3 अक्टूबर 2008 को नैनो कार के प्रोजेक्ट को पश्चिम बंगाल से कहीं और ले जाने का ऐलान कर दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उन दिनों गुजरात के मुख्यमंत्री थे और उन्हें यह प्रोजेक्ट गुजरात के लिए लपकने का सुनहरा मौका दिखा।
उन्होंने टाटा समूह के सामने गुजरात के साणंद में यह महत्वाकांक्षी परियोजना लगाने का प्रस्ताव रखा। टाटा समूह को भी यह प्रस्ताव जंच गया। मुख्यमंत्री के रूप में मोदी ने टाटा समूह को हर प्रकार की सहूलियत भी उपलब्ध कराई।
2008 में सबके सामने आई नैनो कर
मोदी की अगुवाई वाली सरकार की ओर से मदद मिलने के बाद नैनो कार का कारखाना सिंगूर से साणंद शिफ्ट कर दिया गया। करीब साढ़े तीन हजार ट्रकों और 500 कंटेनरों के जरिए कारखाने के सामानों को साणंद पहुंचाया गया। इस शिफ्टिंग में करीब सात महीने का समय लगा। साणंद में प्लांट लगने के बाद नैनो कार का उत्पादन शुरू हुआ और 10 जनवरी 2008 को रतन टाटा ने सबके सामने नैनो कार को प्रदर्शित किया। यह प्रदर्शन दिल्ली के प्रगति मैदान में आयोजित ऑटो एक्सपो में किया गया।
टाटा नैनो के बेसिक मॉडल की कीमत एक लाख रखी गई थी और इसी कारण यह कार लिफ्ट लखटकिया कार के रूप में भी प्रसिद्ध हुई। कार की लांचिंग के मौके पर टाटा का कहना था कि वह भारतीय परिवारों को कम कीमत में ट्रांसपोर्ट का माध्यम उपलब्ध कराना चाहते हैं और इसीलिए नैनो कार को लाया गया है।
शुरुआत में दीवानगी बाद में घटा आकर्षण
शुरुआत में नैनो कार के प्रति लोगों में गजब की दीवानगी देखी और करीब दो लाख लोगों ने इस कार के लिए आवेदन किया। टाटा ग्रुप की ओर से एक लाख लोगों को लॉटरी के माध्यम से कार देने का फैसला किया गया और इसके बाद रतन टाटा ने खुद 17 जुलाई 2009 को कस्टम विभाग के कर्मचारी अशोक रघुनाथ विचारे को पहली नैनो कर की चाबी सौंपी थी।
हालांकि यह भी सच्चाई है कि बाद के दिनों में नैनो कार के प्रति लोगों का आकर्षण घटने लगा। इसी का नतीजा था कि 2019 आते-आते रतन टाटा का यह महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट दम तोड़ने लगा। इसके बाद टाटा ने नैनो कार का उत्पादन बंद करने का फैसला किया। 2020 में इस कार का प्रोडक्शन पूरी तरह बंद कर दिया गया। इसे दिग्गज उद्योगपति रतन टाटा के लिए बड़ा झटका भी माना गया था। ।