RCEP समझौते पर सस्पेंस! जानें क्यों उतावला है चीन, भारत की ये है मांग

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी थाईलैंड की राजधानी बैंकॉक में सोमवार को आरसीईपी शिखर सम्मेलन में शामिल होंगे। एशियाई देशों के साथ क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (आरसीईपी) के तहत मुक्त व्यापार समझौते पर असमंजस की स्थिति बरकरार है।

Update: 2019-11-04 09:14 GMT

श्रीनगर: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी थाईलैंड की राजधानी बैंकॉक में सोमवार को आरसीईपी शिखर सम्मेलन में शामिल होंगे। एशियाई देशों के साथ क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (आरसीईपी) के तहत मुक्त व्यापार समझौते पर असमंजस की स्थिति बरकरार है। भारत ने पहले ही साफ कर दिया है कि वह निष्पक्ष और पारदर्शी करार में ही शामिल होगा।

बता दें कि भारत घरेलू उद्योगों के सुरक्षा की मांग कर रहा है। पीएम मोदी ने आसियान में शामिल देशों के साथ भारत के व्यापारिक करार की समीक्षा की बात की, हालांकि आरसीईपी के मसले पर उन्होंने कुछ साफ नहीं कहा है।

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मुक्त व्यापार समझौते को लेकर सहमति पर इसलिए गतिरोध जारी है, क्योंकि भारत अपने घरेलू उद्योगों के सुरक्षा की मांग कर रहा है। जानकारों का मानना है कि इस मसले में बातचीत कर रहे 16 देश बिना किसी सहमति पर पहुंते ही संयुक्त बयान जारी कर सकते हैं। इन देशों में थाइलैंड भी शामिल है। इस बीच आई खबरों में कहा जा रहा है कि इस मुद्दे पर सभी देश बंटे हुए हैं।

जापानी मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक 1 नवंबर को आयोजित आरसीईपी सदस्य देशों के व्यापार मंत्रियों के बीच बैठक बिना किसी समझौते के समाप्त हो गई।

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इसलिए नहीं बनी सहमति

इस समझौते पर सहमति इसलिए नहीं बन पाई, क्योंकि भारत चीन से सस्ते आयात के खतरे की वजह से कई उत्पादों पर टैरिफ को कम या खत्म करने को तैयार नहीं था। भारत की बड़ी चिंता चीन से होने वाला सस्ता आयात है, जिससे घरेलू कारोबार पर असर पड़ने की आशंका है। इसके अलावा ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड से सस्ते दुग्ध उत्पादों का आयात होने से घरेलू डेरी उद्योग पर भी प्रभाव हो सकता है।

सबसे ज्यादा बेचैन है चीन

जानकारों का कहना है कि आरसीईपी समझौते के बाद भारतीय बाजार में चीनी सामानों की बाढ़ आ जाएगी। चीन और अमेरिका के बीच ट्रेड वॉर चल रहा है जिसकी वजह से उसे नुकसान हो रहा है। चीन अमेरिका के साथ ट्रेड वॉर की वजह से हो रहे नुकसान की भरपाई भारत व अन्य देशों में अपना सामान बेचकर करना चाहता है। इसलिए चीन आरसीईपी समझौते को लेकर सबसे ज्यादा बेचैन है।

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इस समझौते में श्रम मानकों, भ्रष्टाचार व खरीदारी की प्रक्रिया न होने पर इसकी आलोचना की जा रही है। कहा जा रहा है कि यह समझौता सिर्फ टैरिफ फ्री ट्रेड पर ही केंद्रित है। समझौते में शामिल देशों के बीच आर्थिक असमानता को लेकर भी कई सवाल खड़े हो रहे हैं।

चीन के लिए यह समझौता एक बड़ा अवसर है, क्योंकि उत्पादन के मामले में बाकी देश उसके आगे कहीं नहीं टिकते हैं। इस समझौते के जरिए चीन अपना आर्थिक दबदबा कायम करना चाहता है।

आरसीईपी में अगर भारत शामिल होता है तो उसे आसियान देशों, जापान, दक्षिण कोरिया से आने वाले 90 फीसदी वस्तुओं पर से टैरिफ हटाना होगा। इसके अलावा, चीन, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड से 74 प्रतिशत सामान टैरिफ फ्री करना होगा। भारत को इस बात की चिंता है कि वहां से आने वाला सस्ता आयात घरेलू कारोबार को भी बुरी तरह प्रभावित कर सकता है।

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भारत की निर्यात विकास दर 2019 के पहले आठ महीनों में 11.8 प्रतिशत से गिरकर 1.4 प्रतिशत हो गई है। अगर ये गिरावट जारी रहती है तो भारत का व्यापार घाटा और बढ़ेगा, क्योंकि भारत दूसरे देशों को निर्यात करने से ज्यादा खुद आयात करेगा। जानकारों का मानना है कि अगर इन आंकड़ों को देखते हुए भारत अगर समझौता करता है, तो यह आत्मघाती साबित हो सकता है।

आरसीईपी में आसियान के 10 देश जैसे ब्रुनेई, कंबोडिया, इंडोनेशिया, मलेशिया, म्यांमार, सिंगापुर, थाईलैंड, फिलीपींस, लाओस और वियतनाम और उनके छह एफटीए साझेदार चीन, जापान, भारत, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड शामिल हैं।

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