नोटबंदी: मुश्किल में सरकार, केंद्र और राज्यकर्मियों के वेतन के लिए करेंसी की चुनौती
सरकार ने ग्रुप सी के सरकारी कर्मचारियों, रक्षा व सेना के जवानों को वेतन खाते से 10 हजार रुपए निकालने की छूट दी है। लेकिन बच्चों की पढाई, हॉस्टल खर्च, यात्राएं और घर के रुटीन खर्चों के लिए उन पर भारी दबाव बढ़ने की सूरत में इतने कम पैसे से उनका काम नहीं चलने वाला।
नई दिल्ली: नोटबंदी का सबसे ज्यादा असर अगले पखवाड़े तब देखने को मिलेगा जब माह के अंत में केंद्र सरकार और सभी राज्य सरकारों के सामने अपने कर्मचारियों के बैंक खातों में नवंबर माह के वेतन के पैसे ट्रांसफर करने पड़ेंगे। वित्त मंत्रालय के सूत्रों ने माना है कि वेतनभोगियों में मौजूदा हालात पैदा होने से आर्थिक असुरक्षा के जो हालात बने हैं, उसके चलते सरकारी कर्मचारियों की ओर से दबाव बढ़ेगा कि उन्हें महीने का पूरा वेतन बैंक से एकमुश्त निकालने की सुविधा दी जाए।
वेतन का सवाल
केंद्र सरकार के विभिन्न मंत्रालयों, अर्द्ध सरकारी बैकों, वित्तीय संस्थाओं, सार्वजनिक क्षेत्रों के कर्मचारियों की कुल तादाद 38 लाख से 40 लाख के करीब है। इससे भी करीब दोगुनी तादाद देश के बाकी राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों की सरकारों व उनके अधीन आने वाले संस्थानों के कर्मचारियों की है। यानी देशभर में सभी सरकारी कर्मियों व पेंशन भोगियों की संख्या का आकलन किया जाए तो यह तादाद डेढ़ करोड़ कर्मचारियों की संख्या को पार करती है। अकेले पंजाब सरकार के रिकॉर्ड के अनुसार 2014 में उसके कर्मचारियों की तादाद करीब 4 लाख 30 हजार के करीब थी। अभी तक केंद्र सरकार ने अपने खातों से पैसा निकालने की जो पाबंदी बाकी लोगों पर लगा रखी है, वह फार्मूला सरकारी कर्मचारियों पर भी लागू है।
बड़ी चुनैती
सरकार में बैठे लोगों को भी यह फीडबैक है कि सरकारी कर्मचारियों का वेतन तय वक्त पर दिया जाना कई कारणों से जरूरी है। ऐसा करने में कोई चूक हुई तो इससे बाजार में और मुसीबत पैदा होगी। क्योंकि करेंसी का प्रसार रुकने से छोटे-छोटे दुकानदार और कारोबारियों के कामकाज में और मंदी आएगी।
इधर कर्मचारी संगठनों व ट्रेड यूनियनों ने सरकार को आगाह कर दिया है कि भले ही कालेधन को खत्म करने की मंशा सही हो सकती है लेकिन इससे देशभर में वेतनभोगी कर्मचारियों और उनके परिवारों पर मुसीबतें बढ़ेंगी।
खर्च का चक्र
सरकार ने चुनौती भांपकर ग्रुप सी के तहत आने वाले सरकारी कर्मचारियों, रक्षा व सेना के जवानों को वेतन खाते से 10 हजार रुपए निकालने की छूट दी है। लेकिन ऐसा आकलन है कि इससे उनका काम नहीं चलने वाला। खुद कई सरकारी कर्मचारियों ने बातचीत में कहा है कि बाजार के जो हालात हैं उससे उनके नाते-रिश्तेदार वेतन मिलते ही करेंसी की मदद के लिए उनके पास आएंगे। इसके अलावा बच्चों की पढाई, हॉस्टल खर्च, यात्राएं और घर के रुटीन खर्चों के लिए उन पर भारी दबाव बढ़ने की सूरत में इतने कम पैसे से उनका काम नहीं चलने वाला। हालांकि सरकार ने गुरुवार को दावा किया है कि हालात जल्द सामान्य होंगे।
चेतावनी
ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस यानी एटक के सचिव डीएल सचदेव ने केंद्र सरकार को आगाह किया है कि नोट बंदी की वजह से बाजार में दैनिक उपयोग की आवश्यक वस्तुओं के दामों में भारी किल्लत हो रही है। उनका कहना है कि कालेधन के खिलाफ कदम सही है लेकिन इससे आम लोगों को जो दिक्कतें हो रही हैं उससे दिहाड़ी और छोटे मोटे वेतन से घर चलाने वाले सबसे ज्यादा मुसीबत में हैं। श्री सचदेव ने केंद्र सरकार को आगाह किया कि बाजार में करेंसी की किल्लत को जल्द से जल्द दूर किया जाना चाहिए वरना स्वार्थी तत्व व जमाखोर लोगों की परेशानियों का गलत फायदा उठाकर बाजार में जरूरी वस्तुओं का अकाल पैदा करके मुनाफाखोरी कर सकते हैं।
मुआवजे की मांग
संघ के विचारक व भाजपा के पूर्व महासचिव केएन गोंविदाचार्य ने मुद्दा उठाया है कि नोट बंदी की वजह से बैंकों के बाहर लंबी लाइनों में खड़े होकर जिन लोगों की मौत हुई है उनके परिजनों ने इस तरह की मृत्यु पर मुआवजे की मांग की है। संघ विचारक ने यह मांग केंद्रीय आर्थिक मामलों के महासचिव शक्तिकांत दास को एक नोटिस भेज कर की है। उनका कहना है कि इन लोगों की मौत मोदी सरकार की आर्थिक सर्जिकल स्ट्राइक की वजह से हुई है, उन्हें मुआवजा मिले। बकौल उनके करीब 55 लोगों की नोटबंदी की वजह से मौत हुई।
गोंविदाचार्य का कहना है कि जो लोग करेंसी की किल्लत की वजह से मौत के शिकार हुए हैं उसके लिए सरकार पूरी जिम्मेदार है। बकौल उनके ये लोग इसलिए मरे हैं क्योंकि 1000 व 500 के नोट अचानक बंद करने के सरकार के फैसले के बाद लोग बदहवासी में पुराने नोट बदलवाने और अपने खातों से पैसा निकालने गए थे क्योंकि सरकार ने ऐलान कर दिया कि पुराने नोट अमान्य हो गए हैं।