Shanti Bhushan: शांति भूषण ने लड़ा था वह ऐतिहासिक मुकदमा, इंदिरा गांधी को मिली थी हार,फिर देश में लग गई थी इमरजेंसी

Shanti Bhushan: 97 वर्षीय शांति भूषण पिछले कई दिनों से बीमार चल रहे थे। दिल्ली स्थित आवास पर आज उन्होंने अंतिम सांस ली।

Report :  Anshuman Tiwari
Update:2023-02-01 08:13 IST

Shanti Bhushan (Social Media)

Shanti Bhushan: पूर्व कानून मंत्री और देश के चर्चित वकीलों में शुमार किए जाने वाले शांति भूषण का आज निधन हो गया। 97 वर्षीय शांति भूषण पिछले कई दिनों से बीमार चल रहे थे। दिल्ली स्थित आवास पर आज उन्होंने अंतिम सांस ली। 1977 में मोरारजी देसाई की सरकार में शांति भूषण ने 1977 से 1979 तक कानून मंत्री के रूप में काम किया था। भ्रष्टाचार के खिलाफ वे हमेशा मुखर रहे और इसके साथ ही वे अपने पूरे जीवनकाल में जनहित से जुड़े मुद्दे उठाते रहे।

शांति भूषण ने अपने जीवनकाल में कई चर्चित मुकदमों में पैरवी की, लेकिन उनकी जिंदगी से जुड़ा हुआ सबसे चर्चित मुकदमा वह था जिसमें उन्होंने राजनारायण के वकील के रूप में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के खिलाफ दमदार दलीलें दी थीं। इस केस में इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया था जिसके कारण बाद में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में इमरजेंसी लगा दी।

जस्टिस सिन्हा ने इंदिरा गांधी को चुनाव में धांधली का दोषी ठहराते हुए उनका चुनाव रद्द कर दिया था। उन्होंने छह साल तक इंदिरा गांधी के चुनाव लड़ने पर भी प्रतिबंध लगा दिया था।जस्टिस सिन्हा के इस ऐतिहासिक फैसले के बाद देश में सियासी भूचाल आ गया। सुप्रीम कोर्ट से भी राहत न मिलने के बाद इंदिरा गांधी ने 25 जून, 1975 को देश में इमरजेंसी लगा दी थी।

1971 में रायबरेली से जीती थी॔ इंदिरा गांधी

1971 में हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को भारी बहुमत से जीत हासिल हुई थी। उस समय लोकसभा की 518 सीटों में से कांग्रेस 352 सीटें जीतने में कामयाब हुई थी। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी उस समय रायबरेली लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा करती थीं और उन्होंने 1971 के चुनाव में भी इसी सीट से जीत हासिल की थी। उन्होंने संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार राजनारायण को एक लाख से ज्यादा वोटों से शिकस्त दी थी। 1971 के लोकसभा चुनाव में राजनारायण ने भी रायबरेली में काफी मेहनत की थी और उन्हें अपने चुनावी जीत का पूरा भरोसा था। उन्हें अपनी जीत पर इतना ज्यादा भरोसा था कि उन्होंने नतीजों की घोषणा के पहले ही विजय जुलूस तक निकाल दिया था। नतीजों की घोषणा के समय उन्हें करारा झटका लगा और इंदिरा गांधी उन्हें हराने में कामयाब रहीं।

शांति भूषण ने की थी राजनारायण की पैरवी

इंदिरा गांधी के चुनाव जीतने के बाद राजनारायण ने इस मसले को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। राजनारायण की ओर से शांति भूषण ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में दमदार तरीके से पैरवी की। उन्होंने इंदिरा गांधी पर चुनावों में धांधली और सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग करने के आरोप लगाए। उनका कहना था कि इंदिरा गांधी ने गलत तरीके अपनाकर चुनाव में जीत हासिल की है। लिहाजा उनका चुनाव रद्द किया जाना चाहिए।

इस मामले की सुनवाई सुनवाई इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा ने की थी। उन्होंने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को कोर्ट में तलब किया था। उनका यह आदेश काफी महत्वपूर्ण था क्योंकि देश के इतिहास में पहली बार प्रधानमंत्री को कोर्ट में पेश होना पड़ा। इंदिरा गांधी 18 मार्च, 1975 को अपना बयान दर्ज कराने के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट में पहुंची थीं और इस दौरान अदालत में उनसे करीब पांच घंटे तक जिरह गई थी। शांति भूषण ने उस दिन की याद करते हुए बाद में कहा था कि इंदिरा गांधी के कोर्ट में प्रवेश करने से पहले जस्टिस सिन्हा ने कहा था कि अदालत में लोग तभी खड़े होते हैं जब जज जाते हैं। ऐसे में इंदिरा गांधी के आने पर किसी को खड़ा नहीं होना चाहिए।

जस्टिस सिन्हा पर प्रलोभन का भी असर नहीं

बाद में शांति भूषण ने यह खुलासा भी किया था कि इस मुकदमे में जस्टिस सिन्हा को प्रभावित करने की कोशिश भी की गई थी। इलाहाबाद हाईकोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस डीएस माथुर इंदिरा गांधी के निजी डॉक्टर के पी माथुर के नजदीकी रिश्तेदार थे। शांति भूषण के मुताबिक जस्टिस माथुर अपनी पत्नी के साथ जस्टिस सिन्हा के घर पहुंचे थे। उन्होंने जस्टिस सिन्हा से साफ तौर पर कहा था कि यदि वे राजनारायण वाले मामले में सरकार के अनुकूल फैसला सुनाते हैं तो उन्हें तुरंत सुप्रीम कोर्ट का जज बना दिया जाएगा मगर इस प्रलोभन का जस्टिस सिन्हा पर कोई असर नहीं हुआ।

जस्टिस सिन्हा ने सुनाया ऐतिहासिक फैसला

दोनों पक्षों की दलीलें सुनने और जिरह करने के बाद आखिरकार 12 जून 1975 का वह ऐतिहासिक दिन आया जिस दिन जस्टिस सिन्हा को इस मामले में फैसला सुनाना था। उस दिन इलाहाबाद हाईकोर्ट का परिसर खचाखच भरा हुआ था और कहीं भी पैर रखने तक की जगह नहीं थी। जस्टिस सिन्हा की कोर्ट नंबर 24 में तो जाने के लिए बकायदा हाईकोर्ट की ओर से पास तक जारी किया गया था। जस्टिस सिन्हा ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए इंदिरा गांधी के चुनाव को रद्द कर दिया और उनके 6 साल तक चुनाव लड़ने पर भी बैन लगा दिया। किसी को भी हाईकोर्ट के ऐसे फैसले की उम्मीद नहीं थी। हाईकोर्ट का फैसला आते ही कांग्रेस के खेमे में सन्नाटा पसर गया।

सुप्रीम कोर्ट से भी इंदिरा को नहीं मिली राहत

इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस महत्वपूर्ण फैसले के बाद दिल्ली में कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं के बीच कई दिनों तक बैठक और विचार-विमर्श का दौर चला और आखिरकार इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने का फैसला किया गया। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 23 जून, 1975 को हाईकोर्ट के इस फैसले पर रोक लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। सुप्रीम कोर्ट ने अगले दिन इस मामले की सुनवाई की और जस्टिस वीआर कृष्णा अय्यर ने हाईकोर्ट के फैसले पर पूरी तरह रोक लगाने से इनकार कर दिया। हालांकि उन्होंने यह जरूर कहा कि इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनी रह सकती हैं। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी आदेश दिया कि इंदिरा गांधी संसद की कार्यवाही में हिस्सा तो ले सकती हैं मगर उन्हें वोट देने का अधिकार नहीं रहेगा।

रामलीला मैदान में जेपी की ऐतिहासिक रैली

इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला आने के बाद ही विपक्षी दलों के नेताओं ने इंदिरा गांधी पर इस्तीफे का दबाव बढ़ा दिया था। सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने पर विपक्ष के तेवर और तीखे हो गए। 25 जून, 1975 को दिल्ली के रामलीला मैदान में विपक्ष की ओर से ऐतिहासिक रैली का आयोजन किया गया जिसे संबोधित करने के लिए लोकनायक जयप्रकाश नारायण भी मंच पर मौजूद थे। अपने संबोधन के दौरान लोकनायक ने इंदिरा गांधी से इस्तीफा देने की मांग की और प्रसिद्ध कवि रामधारी सिंह दिनकर की एक कविता पढ़ते हुए नारा दिया- सिंहासन खाली करो कि जनता आती है। विपक्ष के तीखे तेवर से कांग्रेस के खेमे में हड़कंप मच गया।

कुर्सी बचाने के लिए थोपी इमरजेंसी

रामलीला मैदान की इस रैली के जरिए विपक्षी नेता देश में बड़ा सियासी संदेश देने में कामयाब हुए और इंदिरा गांधी जबर्दस्त दबाव में आ गई। जबर्दस्त तनाव के दौर से गुजर रहीं इंदिरा गांधी रैली खत्म होने के बाद राष्ट्रपति भवन पहुंच गईं। उन्होंने तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद को देश में आपातकाल लगाने का प्रस्ताव सौंपा। इंदिरा सरकार की सिफारिश पर राष्ट्रपति ने भारतीय संविधान की धारा 352 के तहत देश में आपातकाल लगाने की मंजूरी दे दी। 26 जून, 1975 की सुबह इंदिरा गांधी ने रेडियो पर देश में आपातकाल लगाने की घोषणा की। आपातकाल की घोषणा के बाद विपक्ष के आंदोलन को जोर जबर्दस्ती से कुचलने की पूरी चेष्टा की गई और लोकनायक जयप्रकाश नारायण समय सभी बड़े नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। आपातकाल के उस दौर को आज भी देश के इतिहास में काले अध्याय के रूप में याद किया जाता है। नई दिल्ली में आज शांति भूषण के निधन के बाद उस ऐतिहासिक मुकदमे को भी याद किया जा रहा है जिसमें हार के कारण इंदिरा गांधी को जबर्दस्त झटका लगा था। मुकदमे में राजनारायण की जीत के पीछे शांति भूषण की दमदार पैरवी को भी बड़ा कारण माना गया था।

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