Sharad Yadav: इस फैसले के कारण टूटी शरद और नीतीश की जोड़ी, आखिरी दौर में लालू से मिलाया हाथ
Sharad Yadav Death: किसी जमाने में बिहार की सियासत में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और शरद यादव की जोड़ी काफी हिट मानी जाती थी।
Sharad Yadav : दिग्गज समाजवादी नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री शरद यादव के निधन के बाद उनके सियासी जीवन की कई महत्वपूर्ण घटनाएं सुर्खियां बन रही हैं। किसी जमाने में बिहार की सियासत में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और शरद यादव की जोड़ी काफी हिट मानी जाती थी। दोनों नेताओं का लंबे समय तक साथ रहा। भाजपा के साथ मिलकर दोनों नेताओं ने लालू यादव को सत्ता से बेदखल करने में प्रमुख भूमिका निभाई थी।
हालांकि बाद के दिनों में नीतीश कुमार से शरद यादव के रिश्तों में खटास आ गई। नीतीश कुमार के एक फैसले से शरद यादव नाराज हो गए और उन्होंने नीतीश के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। अपने लंबे सियासी जीवन के आखिरी दिनों में एक बार फिर उन्होंने लालू यादव से हाथ मिला लिया और अपनी पार्टी लोकतांत्रिक जनता दल का राजद में विलय कर दिया।
नीतीश के साथ मिलकर लालू के खिलाफ संघर्ष
गैर कांग्रेसवाद के कट्टर समर्थक शरद यादव लंबे समय तक जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे। बिहार में नीतीश कुमार के सियासी कामयाबी में शरद यादव की प्रमुख भूमिका मानी जाती रही है। बिहार की सियासत में नीतीश और शरद यादव की जोड़ी ने लालू के खिलाफ मजबूती से संघर्ष किया। भाजपा के साथ गठबंधन करके दोनों नेताओं ने लालू यादव को सियासी रूप से कमजोर बना दिया। 1999 के लोकसभा चुनाव में मधेपुरा लोकसभा क्षेत्र में लालू यादव और शरद यादव के बीच कड़ा मुकाबला हुआ था। इस चुनाव में शरद यादव लालू यादव को हराने में कामयाब हुए थे। हालांकि बाद में उन्हें लालू के मुकाबले हार का भी सामना करना पड़ा।
नीतीश के इस फैसले से नाराज हुए शरद यादव
शरद यादव के बड़े सियासी कद को देखते हुए ही उन्हें राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का संयोजक भी बनाया गया था। बिहार की राजनीति में 2013 का वर्ष काफी महत्वपूर्ण था क्योंकि नीतीश कुमार ने भाजपा के साथ गठबंधन तोड़ने का फैसला कर लिया था। शुरुआत में शरद यादव नीतीश कुमार के इस फैसले के प्रति सशंकित थे मगर बाद में उन्होंने नीतीश कुमार का साथ देते हुए लालू प्रसाद यादव से गठबंधन कर लिया।
नीतीश और लालू के हाथ मिला लेने के बाद बिहार में एक बार फिर महागठबंधन की सरकार बन गई। इसी बीच 2017 में नीतीश कुमार ने एक बार फिर बड़ा फैसला लेते हुए पलटी मार ली और भाजपा के साथ हाथ मिला लिया। भाजपा के साथ हाथ मिलाने के बाद नीतीश कुमार एक बार फिर बिहार के मुख्यमंत्री बनने में कामयाब हो गए।
शरद यादव नीतीश कुमार के इस फैसले से सहमत नहीं थे और उन्होंने नीतीश के खिलाफ विरोध का झंडा बुलंद कर दिया। शरद यादव के इस रुख के कारण उन्हें आखिरकार जदयू से अलग होना पड़ा। जदयू की ओर से आपत्ति जताए जाने के बाद शरद यादव राज्यसभा सदस्य के रूप में भी अयोग्य घोषित कर दिए गए। सांसदी जाने के बाद शरद यादव को दिल्ली में सात तुगलक रोड का वह बंगला भी छोड़ना पड़ा जिसमें वे 22 वर्षों से रह रहे थे।
जेडीयू से अलग होने के बाद कमजोर हुए शरद
जदयू से अलग होने के बाद शरद यादव सियासी रूप से काफी कमजोर हो गए। बाद में उन्होंने लोकतांत्रिक जनता दल के नाम से नई पार्टी का गठन किया। शरद यादव ने राजनीतिक पार्टी तो बना ली मगर वे अपनी पार्टी को मजबूत नहीं बना सके। बाद में उनका स्वास्थ्य खराब हो गया और वे राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाने में अक्षम साबित हुए।
सियासी ताकत दिखाने में नाकाम रहने के बाद उन्होंने जीवन के आखिरी दौर में लालू प्रसाद यादव से एक बार फिर हाथ मिला लिया। शरद यादव के लोकतांत्रिक जनता दल का राजद में विलय कर दिया गया। सियासी जानकारों का मानना है कि जदयू से अलग होने के बाद ही शरद यादव की सियासी प्रासंगिकता एक तरह से खत्म हो गई थी। बाद में खराब स्वास्थ्य ने उनकी भूमिका को और सीमित कर दिया।