Shimla: शिमला की संजौली मस्जिद का मामला आखिर है क्या? जानिये सब कुछ

Shimla Masjid Controversy: मस्जिद के खिलाफ 2010 में मामला दर्ज किया गया था, जिसमें दावा किया गया था कि यह अवैध है।

Written By :  Neel Mani Lal
Update:2024-09-11 15:15 IST

Shimla Masjid Controversy    (photo: social media )

Shimla Masjid Controversy: हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला की एक मस्जिद के खिलाफ स्थानीय लोगों, नेताओं और कई संगठनों द्वारा जबर्दस्त विरोध प्रदर्शन किया जा रहा है। प्रदर्शनकारी इस ढांचे को अवैध बताते हुए इसे गिराने की मांग कर रहे हैं। लोगों का कहना है कि 10 साल हो गए हैं, लेकिन मस्जिद पर कोई कार्रवाई नहीं की गई है। हिंदू जागरण मंच की हिमाचल इकाई के अध्यक्ष कमल गौतम ने दावा किया है कि मस्जिद का इस्तेमाल 'बाहरी लोगों' को शरण देने के लिए किया जा रहा था।

इस मस्जिद का मामला आखिर है क्या, जानते हैं इसके बारे में

- एक रिपोर्ट के अनुसार मस्जिद के मौलवी शहजाद इमाम ने कहा है कि यह संरचना 1947 की है, जबकि विस्तारित निर्माण 2007 के बाद हुआ है।

- मस्जिद के खिलाफ 2010 में मामला दर्ज किया गया था, जिसमें दावा किया गया था कि यह अवैध है। हालांकि, पिछले 14 वर्षों में चार नई मंजिलें जोड़ी गईं। ये मामला पिछले 14 वर्षों से न्यायालय में विचाराधीन है।

- कथित तौर पर नगर निगम द्वारा इस मामले की 44 बार सुनवाई की गई, लेकिन कोई समाधान नहीं निकला।

- पांच मंजिला मस्जिद पिछले महीने एक विवाद के बाद चर्चा में आई, जिसमें कुछ लोगों के समूह ने कहा कि वे इसके "कब्जाधारी" हैं।

- 30 अगस्त को अल्पसंख्यक समुदाय से संबंधित आधा दर्जन लोगों ने कथित तौर पर मलयाना क्षेत्र में एक व्यापारी और कुछ अन्य व्यापारियों पर रॉड और डंडों से हमला किया, जिसमें उनमें से चार घायल हो गए। इस मामले में गुलनवाज (32), सारिक (20), सैफ अली (23), रोहित (23), रिहान (17) और समीर (17) के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है। ये आरोपी उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर के रहने वाले हैं, जबकि रिहान देहरादून का रहने वाला है।

- हिमाचल प्रदेश के ग्रामीण विकास मंत्री अनिरुद्ध सिंह द्वारा राज्य में अवैध निर्माण के मुद्दे को उठाए जाने के कुछ दिनों बाद, हिमाचल प्रदेश वक्फ बोर्ड ने बीते 7 सितम्बर को शिमला की एक अदालत को बताया था कि संजौली में विवादित मस्जिद का मालिकाना हक उसी का है। बोर्ड ने कहा कि विवाद केवल अतिरिक्त मंजिलों के निर्माण को लेकर था।

- हिमाचल प्रदेश वक्फ बोर्ड के राज्य अधिकारी कुतुबुद्दीन अहमद के अनुसार, नगर आयुक्त की अदालत ने 2023 में बोर्ड को नोटिस जारी किया था। जवाब में, वक्फ बोर्ड ने पिछली सुनवाई के दौरान अपना जवाब प्रस्तुत किया। स्थानीय निवासियों का प्रतिनिधित्व करने वाले अधिवक्ता जगत पाल ने कहा कि वे इस मामले में शामिल होने के लिए मजबूर हैं क्योंकि यह पिछले 14 वर्षों से नगर निगम आयुक्त की अदालत में लंबित था और वक्फ बोर्ड को 2023 में ही पक्ष बनाया गया था। उन्होंने जोर देकर कहा कि यह सांप्रदायिक मुद्दा नहीं है, बल्कि अवैध निर्माण का मामला है और मस्जिद को ध्वस्त किया जाना चाहिए। दलीलों पर सुनवाई करते हुए अदालत ने वक्फ बोर्ड और मस्जिद समिति से यह बताने को कहा कि मूल एक मंजिला मस्जिद कैसे पांच मंजिला संरचना में तब्दील हो गई। अदालत ने निर्माण पर स्थिति रिपोर्ट मांगी है।

- अधिवक्ता जगत पाल के अनुसार, वक्फ बोर्ड स्वामित्व का कोई सबूत पेश करने में असमर्थ था और राजस्व विभाग के रिकॉर्ड के अनुसार, राज्य भूमि का मालिक था।

- वक्फ बोर्ड के राज्य अधिकारी कुतुबुद्दीन अहमद ने कहा है कि विवाद स्वामित्व के बारे में नहीं बल्कि आगे के निर्माण के बारे में था। उन्होंने कहा कि रिकॉर्ड के अनुसार, जब शिमला पंजाब में था, तब वक्फ बोर्ड भूमि का मालिक बन गया था। उन्होंने यह भी कहा कि मस्जिद में नमाज अदा करना जारी रहेगा।

- इस बीच राज्य के मंत्री अनिरुद्ध सिंह ने विधानसभा में अवैध मस्जिद का मुद्दा उठाया और कहा कि अवैध प्रवासियों द्वारा तेजी से निर्माण के कारण कुछ क्षेत्रों में तनाव बढ़ रहा है, जो उनके अनुसार रोहिंग्या और बांग्लादेश के लोग हो सकते हैं। 1960 से मस्जिद होने के दावे को खारिज करते हुए मंत्री ने कहा कि निर्माण 2010 में ही शुरू हुआ था।

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