शोर मंदिर: PM मोदी और जिनपिंग की दोस्ती का गवाह बना ये मंदिर, ऐसी हैं खूबियां
इस मंदिर में भगवान शिव का एक शिवलिंग स्थापित है, वैसे यह मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है। इसी मंदिर परिसर में देवी दुर्गा का भी छोटा सा मंदिर है जिसमें उनकी मूर्ति के साथ एक शेर की मूर्ति भी बनी हुई है।
नई दिल्ली: जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की आज पहली मुलाकात हुई। पीएम मोदी उनकी मेजबानी के लिए पहले ही तमिलनाडु के महाबलीपुरम पहुंच गए थे।
जहां पीएम मोदी ने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग को अर्जुन की तपस्या स्थल का भ्रमण कराया। इसके बाद पीएम मोदी ने शी को कृष्ण का माखन लड्डू के दर्शन कराए।
इसकी ऊंचाई 6 मीटर चौड़ाई 5 मीटर और कुल वजन 250 टन था। इसके बाद पीएम मोदी शी जिनपिंग को शोर मंदिर लेकर पहुंचे। यहां पर शी जिनपिंग के सम्मान में विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किये गये है। तो आइये जानते हैं क्या है 'शोर मंदिर' और इसकी खासियतों के बारें में:
सबसे प्राचीन पत्थर मंदिरों में से एक है शोर मंदिर
शोर मंदिर का निर्माण 700 से 728 ई.पू. तक हुआ था और इसे बंगाल की खाड़ी के शोर के रूप में जाना जाता है। इस मंदिर का निर्माण काले ग्रेनाइट से हुआ है, यह एक संरचनात्मक मंदिर है और इसे यूनेस्को के द्वारा विश्व विरासत के रूप में वर्गीकृत किया गया, यह सबसे प्राचीन पत्थर मंदिरों में से एक है जो देश के दक्षिण भाग में स्थित है।
इस मंदिर में भगवान शिव का एक शिवलिंग स्थापित है, वैसे यह मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है। इसी मंदिर परिसर में देवी दुर्गा का भी छोटा सा मंदिर है जिसमें उनकी मूर्ति के साथ एक शेर की मूर्ति भी बनी हुई है।
कई धर्मो के लोग यहां आकर करते हैं पूजा
इस मंदिर में कई धर्मो के लोग पूजा करने आते है जो उस दौरान के शासकों का धार्मिक सहिष्णुता होने का दावा करता है। शोर मंदिर, दक्षिण भारत के सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक है।
शोर मंदिर के परिसर में तीन मंदिर स्थित हैं, इनमें से एक मंदिर बड़ा और अन्य दो मंदिर अपेक्षाकृत छोटे हैं। ग्रेनाइट पत्थरों से बना यह मंदिर द्रविड वास्तुकला का एक शानदार नमूना है।
मंदिर के दीवारों पर की गई बारीक नक्काशियां बहुत आकर्षक हैं। शोर मंदिर का मुख्य मंदिर पांच मंजिला है और यह भगवान शिव को समर्पित है।
पांच पांडव रथ हैं मुख्य आकर्षण का केंद्र
मंदिर के गर्भगृह में एक शिवलिंग भी है। शोर मंदिर का मुख्य आकर्षण पांच पांडव रथ है, जिनमें से चार पांडवों के नाम पर हैं लेकिन पांचवे रथ को द्रौपदी रथ के नाम से जाना जाता है। यहां स्थित सभी रथ बेहद विशाल और एक दूसरे से अलग हैं। इनकी बनावट उस समय के कुशल कारीगरों की शिल्प कला का उदाहरण है।
यह मंदिर पल्लव राजवंश के राजा नरसिंहवर्मन द्वितीय के शासन काल में बनाया गया था। उस समय महाबलीपुरम एक व्यापारिक बंदरगाह था। मंदिर का निर्माण 700-728 ईस्वी के बीच किया गया था।
पल्लव राजवंश में हुआ था निर्माण
पल्लव राजवंश के शासन के दौरान यह पत्थरों को काट कर बनाई गई प्रांरभिक इमारतों में से एक मानी जाती है। हाल के सालों में मंदिर के आगे समुद्र की तरह पत्थरों की एक दीवार बनाई गई है ताकि समुद्र के कटाव के कारण इस मंदिर को अधिक नुकसान ना हो।
1984 में इस मंदिर को यूनेस्को वैश्विक धरोहर स्थल घोषित कर दिया गया। वर्ष 2004 में आई सुनामी के कारण मंदिर को भारी क्षति पहुंची और इसका कुछ हिस्सा नष्ट हो गया।
शोर मंदिर को दक्षिण भारत के सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक माना जाता है जिसका संबंध आठवीं शताब्दी से है।
ये खूबियां अन्य मंदिरों से बनाती है अलग
यह मंदिर द्रविड वास्तुकला का बेहतरीन नमूना है और ग्रेनाइट के ब्लॉक के साथ बनाया गया है।
यह पाँच मंज़िला मंदिर है, इसका पिरामिड संरचना 60 फुट ऊंची है और एक 50 फुट वर्ग में फैला हुआ है।
शोर मंदिर के भीतर तीन मंदिर हैं। बीच में भगवान विष्णु का मंदिर है इसके दोनों तरफ शिव मंदिर हैं।
महाबलीपुरम में स्मारकों के समूह के रूप में, यह एक यूनेस्को विश्व विरासत स्थल के रूप में वर्गीकृत किया गया है।