India SSLV Rocket: अंतरिक्ष में भारत की गेमचेंजर छलांग, एसएसएलवी मचाएगा धूम
India SSLV Rocket: एसएसएएलवी की उड़ान 2018 में ही शुरू होनी थी लेकिन इसका लॉन्च कई बार पीछे धकेला गया। महामारी के अलावा इसरो की ओर से भी देरी हुई।
India SSLV Rocket: भारत के सबसे नए रॉकेट - स्मॉल सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (एसएसएलवी) ने आज सुबह दो उपग्रहों को अंतरिक्ष में ले जाकर अपनी उद्घाटन उड़ान भरी। ये एक बहुत बड़ा गेमचेंजर कदम है, जो भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र को पूरी तरह बदल सकता है। ये एक ऐसी यात्रा की शुरुआत है, जो कुछ वर्षों में, एसएसएलवी को इसरो द्वारा सबसे अधिक इस्तेमाल किया जाने वाला प्रक्षेपण यान बना सकती है। ये पीएसएलवी (पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल) की जगह ले लेगा जिसने अब तक 50 से अधिक उड़ानें भरी हैं।
एसएसएएलवी की उड़ान 2018 में ही शुरू होनी थी लेकिन इसका लॉन्च कई बार पीछे धकेला गया। महामारी के अलावा इसरो की ओर से भी देरी हुई।
छोटे उपग्रहों का युग
अभी तक ये होता आया है कि 5 किलो से 1000 किलो तक वजन वाले छोटे उपग्रहों को उन रॉकेटों के साथ अंतरिक्ष में भेजना पड़ता है जो बड़े उपग्रहों को ले जाने के लिए कमीशन किए गए हैं।
छोटे उपग्रहों के प्रक्षेपण की समयरेखा बड़े और प्राथमिक उपग्रहों के हिसाब से निर्धारित की जाती थी, क्योंकि हमेशा बड़े उपग्रहों को ही प्राथमिकता दी जाती थी। लेकिन अधिक से अधिक व्यवसायों, सरकारी एजेंसियों, यहां तक कि विश्वविद्यालयों और प्रयोगशालाओं ने उपग्रहों को भेजना शुरू कर दिया है - उनमें से लगभग सभी छोटे उपग्रहों की इस श्रेणी में आते हैं। ऐसे में छोटे उपग्रहों को अंतरिक्ष में भेजने में आने वाली दिक्कतों से सभी परेशान हैं।
अंतरिक्ष-आधारित डेटा, संचार, निगरानी और वाणिज्य की लगातार बढ़ती आवश्यकता के कारण, पिछले आठ से दस वर्षों में छोटे उपग्रहों के प्रक्षेपण की मांग में तीव्र गति से वृद्धि हुई है। अनुमान बताते हैं कि अगले दस वर्षों में दसियों हज़ार छोटे उपग्रहों को प्रक्षेपित किया जाएगा। इसलिए, अब सैटेलाइट बिल्डरों और ऑपरेटरों के पास रॉकेट पर बर्थ पाने के लिए महीनों तक इंतजार करने या यात्रा की बहुत अधिक लागत का भुगतान करने की क्षमता या सब्र नहीं बचा है। यही नहीं, कई संगठन तो अंतरिक्ष में उपग्रहों का एक समूह बना रहे हैं। इनमें स्पेसएक्स या वनवेब के स्टारलिंक जैसी परियोजनाएं शामिल हैं जो सैकड़ों उपग्रहों का एक समूह बना रही हैं।
इसका नतीजा ये हुआ है कि विशिष्ट कार्य के लिए समर्पित रॉकेटों की मांग बढ़ रही है जिन्हें बार बार लॉन्च किया जा सकता है, और जो अंतरिक्ष में सस्ती सवारी की पेशकश कर सकते हैं। सरकारों और निजी दोनों क्षेत्रों में कई नए खिलाड़ियों ने लॉन्चिंग सेवाएं प्रदान करना शुरू कर दिया है।
यह इसरो जैसी लॉन्चिंग क्षमता वाली एजेंसियों के लिए भी एक आकर्षक व्यावसायिक अवसर है, क्योंकि ज्यादातर मांग उन कंपनियों से आती है जो वाणिज्यिक उद्देश्यों के लिए उपग्रह लॉन्च कर रही हैं। भारत में, जहां अंतरिक्ष क्षेत्र को निजी क्षेत्र के लिए तेजी से खोला जा रहा है, कम से कम तीन निजी कंपनियां ऐसे रॉकेट विकसित कर रही हैं जो छोटे उपग्रहों को अंतरिक्ष में प्रक्षेपित कर सकें। इस मांग को पूरा करने के लिए, और इस व्यावसायिक अवसर को हथियाने के लिए, इसरो ने एसएसएलवी भी विकसित किया है।
अधिक से अधिक लॉन्च
इसरो एक साल में अपने पीएसएलवी और जीइसएलवी (जियोस्पेशियल सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल) रॉकेट के साथ 5-6 लॉन्च करता है। इन रॉकेटों को असेंबल करने में आमतौर पर 70-80 दिन लगते हैं। इसमें दर्जनों लोग काम करते हैं। एक एक राकेट को असेंबल करने में प्रत्येक की कीमत दसियों मिलियन डॉलर लग जाती है। हालांकि इनमें से कई वाणिज्यिक उपग्रह भी ले जाते हैं, लेकिन राजस्व, लागत के अनुरूप एकदम नहीं है।
एसएसएलवी से ये पूरा परिदृश्य बदल जायेगा। माना जाता है कि इस रॉकेट का तेजी से टर्नअराउंड समय आमतौर पर तीन दिनों से भी कम होता है। इसे शॉर्ट नोटिस पर और मौजूदा लॉन्च वाहनों की लागत के मात्र एक अंश पर असेंबल किया जा सकता है। एसएसएलवी में 500 किलोग्राम वजन के उपग्रहों को पृथ्वी की निचली कक्षाओं (पृथ्वी की सतह से 1,000 किमी की ऊंचाई तक) तक ले जाने की क्षमता होगी, जो उपग्रहों की स्थिति के लिए अंतरिक्ष में सबसे अधिक मांग वाले स्थानों में से एक है।इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि इससे इसरो की प्रक्षेपण दर में भारी वृद्धि होने की संभावना है।
इसरो के अधिकारियों ने कहा है कि वे हर साल एसएसएलवी के साथ 50 से 60 प्रक्षेपणों पर विचार कर रहे हैं। यह व्यावहारिक रूप से हर हफ्ते एक प्रक्षेपण होगा, जो हर साल 2-3 प्रक्षेपणों से एकदम विपरीत है जिसे इसरो मैनेज करने में सक्षम है।