सुप्रीम कोर्ट का सुझाव, कहा- तीन तलाक मुद्दे के समाधान के लिए सरकार कानून लाए

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (17 मई) को केंद्र सरकार को सुझाव दिया कि तीन तलाक के मुद्दे पर वह कोर्ट के फैसले का इंतजार करने के बजाए मुस्लिमों में तीन तलाक सहित शादी और तलाक से संबंधित मुद्दों के समाधान के लिए एक कानून लाए।

Update: 2017-05-17 21:16 GMT
सुप्रीम कोर्ट का सुझाव, कहा- तीन तलाक मुद्दे के समाधान के लिए सरकार कानून लाए

नई दिल्ली: सुप्रेम कोर्ट ने बुधवार (17 मई) को केंद्र सरकार को सुझाव दिया कि तीन तलाक के मुद्दे पर वह कोर्ट के फैसले का इंतजार करने के बजाए मुस्लिमों में तीन तलाक सहित शादी और तलाक से संबंधित मुद्दों के समाधान के लिए एक कानून लाए। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया जगदीश सिंह खेहर की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी से कहा, "हम मुद्दे पर फैसला कर भी सकते हैं और नहीं भी, लेकिन आप तो कीजिए।"

सरकार के उस रुख का उल्लेख करते हुए कि कोर्ट पहले तीन तलाक को अमान्य घोषित करे उसके बाद वह कानून लाएगी, पीठ ने पूछा कि ऐसा क्यों लगता है कि सरकार अपनी जिम्मेदारी से भाग रही है?

इस पर रोहतगी ने कहा, "मुझे जो करना है, मैं करूंगा। सवाल यह है कि आप (कोर्ट) क्या करेंगे।"

किसी भी कानून की गैर मौैजूदगी में कार्यस्थल पर महिलाओं की सुरक्षा करने को लेकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा तैयार विशाखा दिशा-निर्देशों का जब रोहतगी ने संदर्भ दिया, तो जस्टिस कुरियन ने कहा कि यह कानून का मामला है न कि संविधान का।

रोहतगी ने जब हिदू धर्म में सती प्रथा, भ्रूणहत्या और देवदासी प्रथा सहित कई सुधारों का हवाला दिया, तो जस्टिस जोसेफ ने कहा कि इन सबों पर विधायी फैसले लिए गए हैं।

चीफ जस्टिस खेहर ने कहा, "क्या इसे कोर्ट ने किया? नहीं, इन सबसे विधायिका ने निजात दिलाई।"

रोहतगी ने तीन तलाक को 'दुखदायी' प्रथा करार देते हुए कोर्ट से अनुरोध किया कि वह इस मामले में 'मौलिक अधिकारों के अभिभावक के रूप में कदम उठाए।'

देश के बंटवारे के वक्त के आतंक और आघात को याद करते हुए उन्होंने कहा कि संविधान के अनुच्छेद-25 को संविधान में इसलिए शामिल किया गया था, ताकि सबके लिए यह सुनिश्चित हो सके कि उनकी धार्मिक भावनाओं के बुनियादी मूल्यों पर राज्य कोई हस्तक्षेप न कर सके।

यह भी पढ़ें ... SC ने AIMPLB से पूछा- महिला को तीन तलाक स्वीकार ना करने का अधिकार दिया जा सकता ?

तीन तलाक की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाले एक याचिकाकर्ता की तरफ से कोर्ट में पेश हुईं वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने कहा कि कोर्ट मामले पर पिछले 67 सालों के संदर्भ में गौर कर रहा है, जब मौलिक अधिकार अस्तित्व में आया था न कि 1,400 साल पहले जब इस्लाम अस्तित्व में आया था।

उन्होंने कहा कि कोर्ट को तलाक के सामाजिक नतीजों का समाधान करना चाहिए, जिसमें महिलाओं का सबकुछ लुट जाता है।

संविधान के अनुच्छेद-14 के तहत कानून के समक्ष बराबर और कानून के समान संरक्षण का हवाला देते हुए जयसिंह ने कहा कि धार्मिक आस्था और प्रथाओं के आधार पर देश महिलाओं और पुरुषों के बीच किसी भी तरह के मतभेद को मान्यता न देने को बाध्य है।

इससे पहले, सुबह में पीठ ने ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) से पूछा कि क्या यह संभव है कि निकाह की सहमति देने से पहले महिला को विकल्प मुहैया कराया जाए कि उसकी शादी तीन तलाक से नहीं टूटेगी और क्या काजी उनके (एआईएमपीएलबी) निर्देशों का पालन करेंगे।

चीफ जस्टिस ने एआईएमपीएलबी से कहा, "आप इस विकल्प को निकाहनामे में शामिल कर सकते हैं कि निकाह के लिए सहमति देने से पहले वह तीन तलाक को ना कह सके।"

सुझाव पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए वरिष्ठ वकील यूसुफ हातिम मुच्चाला ने कहा कि काजी एआईएमपीएलबी के निर्देश से बंधे नहीं हैं।

एआईएमपीएलबी की कार्यकारिणी समिति के सदस्य मुच्चाला ने हालांकि एआईएमपीएलबी द्वारा लखनऊ में अप्रैल महीने में पारित उस प्रस्ताव की ओर इशारा किया, जिसमें उसने समुदाय से वैसे लोगों का बहिष्कार करने की अपील की है, जो तीन तलाक का सहारा लेते हैं।

उन्होंने कहा कि वह विनम्रता पूर्वक सुझाव पर विचार करेंगे और उसे देखेंगे। तीन तलाक की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं की सुनवाई के दौरान एआईएमपीएलबी को कोर्ट का सुझाव सामने आया।

एआईएमपीएलबी हालांकि ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट से कहा कि तीन तलाक एक 'गुनाह और आपत्तिजनक' प्रथा है, फिर भी इसे जायज ठहराया गया है और इसके दुरुपयोग के खिलाफ समुदाय को जागरूक करने का प्रयास जारी है।

--आईएएनएस

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