आरक्षण के लिए धर्म परिवर्तित करना गलत, जानें सुप्रीम कोर्ट को क्यों कहना पड़ा ऐसा…
Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट में एक मामले की सुनवाई करते हुए अदालत ने महिला को फटकार लगाईं जिन्होंने आरक्षण पाने के लिए ईसाई से हिन्दू धर्म परिवतर्तित कर लिया।
Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट में एक मामले की सुनवाई करते हुए अदालत ने महिला को फटकार लगाई की केवल आरक्षण प्राप्त करने के लिए हिन्दू धर्म अपनाना गलत है। दरअसल महिला अनुसूचित जाति प्रमाण पत्र पुदुचेरी में लिपिक पद की नौकरी पाने के उद्देश्य से माँगा था। जिसमे महिला ने इस बात का दावा किया कि वो ईसाई धर्म की है लेकिन अब वह हिन्दू धर्म अपनाकर अनुसूचित जाति में शामिल हो चुकी है। मंगलवार को हुए सुनवाई में कोर्ट ने महिला को अनुसूचित जाति प्रमाण पत्र देने से इनकार कर दिया था।
कोर्ट ने क्या कहा
मगलवार को इस मामले की सुनवाई जस्टिस पंकज मिथल और आर महादेवन की पीठ ने किया। जहाँ कोर्ट ने फैसला देते हुए कहा कि इस पूरे मामले में अब तक जितने भी सबूत प्राप्त हुए हैं उससे यह स्पष्ट होता है कि याचिकाकर्ता ईसाई धर्म का पालन करती हैं। और वो नियमित तौर पर चर्च भी जाती हैं। वो केवल रोजगार और आरक्षण प्राप्त करने के लिए खुद को हिन्दू बताती हैं और अनुसूचित जाति प्रमाण पत्र की मांग कर रही हैं। उनका ऐसा दोहरा दावा पूरी तरह से अस्वीकार्य हैं। और वह बपतिस्मा लेने के बाद खुद को हिंदू के रूप में पहचान नहीं सकतीं।
महिला ने मद्रास हाई कोर्ट के फैसले को दी थी चुनौती
इस मामले में पहले भी मद्रास हाई कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया था जहाँ उन्होंने अनुसूचित जाति प्रमाणपत्र देने से महिला को इनकार कर दिया था। जिसपर महिला ने 24 जनवरी, 2023 को मद्रास हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। बता दें कि अपीलकर्ता का नाम सी. सेलवरानी हैं। जहाँ उन्होंने अपने दावे में कहा था कि वो हिंदू धर्म का पालन करती है और वह वल्लुवन जाति से ताल्लुक रखती है, जो कि अनुसूचित जाति में आती है। इसके अलावा महिला ने कोर्ट के सामने खुद को द्रविड़ कोटे के तहत खुद का आरक्षण का हकदार बताया था। जिसके बाद कोर्ट ने सुनवाई करते हुए यह पाया कि महिला द्वारा प्रस्तुत दस्तावेजों और गवाहियों से पता चलता है कि वो जन्मजात ईसाई है। कोर्ट ने आगे यह भी स्पष्ट किया कि सेलवरानी और उनका परिवार वास्तव में अगर हिन्दू धर्म अपनाना चाहता है तो उन्हें कुछ ठोस कदम उठाने चाहिए। जैसे कि सार्वजानिक तौर पर धर्म परिवर्तन की घोषणा।
जानकारी के लिए बता दें कि जस्टिस महादेवन ने अपने फैसले में लिखा की यदि धर्म परिवर्तन का उद्देश्य आरक्षण के लाभ प्राप्त करना है, न कि किसी अन्य धर्म में विश्वास, तो इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता क्योंकि ऐसे व्यक्तियों को आरक्षण के लाभ देना समाजिक नीति की भावना के खिलाफ होगा।