Supreme Court: गंभीरता से लें यौन उत्पीड़न के मामले, गहन जांच जरूरी

Supreme Court: भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्र की पीठ ने एक मामले में फैसला देते हुए कहा कि जब उत्पीड़क को सजा नहीं मिलती है या अपेक्षाकृत मामूली दंड के साथ छोड़ दिया जाता है उस स्थिति में यह यौन उत्पीड़न के शिकार को अपमानित और निराश करता है।

Written By :  Neel Mani Lal
Update:2023-11-07 10:22 IST

Supreme Court (photo: social media )

Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कार्यस्थल पर किसी भी रूप में यौन उत्पीड़न मामले को गंभीरता से लिया जाना चाहिए और उत्पीड़न करने वाले को कानून के चंगुल से बचने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के आरोपों की गहन जांच तब की जानी चाहिए क्योंकि इस प्रकृति का आरोप लगाना बहुत आसान है और खंडन करना बहुत मुश्किल है।

भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्र की पीठ ने एक मामले में फैसला देते हुए कहा कि जब उत्पीड़क को सजा नहीं मिलती है या अपेक्षाकृत मामूली दंड के साथ छोड़ दिया जाता है उस स्थिति में यह यौन उत्पीड़न के शिकार को अपमानित और निराश करता है।

ताकि कोई दुरुपयोग न हो

अदालत ने ये भी कहा कि यह भी ध्यान में रखा जाना चाहिए कि इस प्रकृति का आरोप लगाना बहुत आसान है और खंडन करना बहुत मुश्किल है। पीठ ने कहा कि जब झूठा आरोप लगाने की दलील दी जाती है तो अदालतों का कर्तव्य है कि वे सबूतों की गहन जांच करें और आरोप स्वीकारयोग्य है या नहीं, इसका फैसला करें। हर सावधानी बरती जानी चाहिए और शिकायत की वास्तविकता की जांच इस तरह से की जानी चाहिए जिससे कि ऐसे प्रशंसनीय कानून का दुरुपयोग न हो।

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सुप्रीम कोर्ट ने 15 मई, 2019 के गुवाहाटी हाईकोर्ट के उस फैसले को रद्द कर दिया जिसमें 2011 में एक अधीनस्थ महिला अधिकारी के यौन उत्पीड़न की शिकायत के कारण सशस्त्र सीमा बल में सेवानिवृत्त डीआईजी दिलीप पॉल की 50 फीसदी पेंशन रोकने के फैसले को रद्द कर दिया गया था। शीर्ष अदालत ने कहा कि उच्च न्यायालय उसके द्वारा निर्धारित सिद्धांतों का पालन करने में पूरी तरह से विफल रहा।

शीर्ष अदालत ने कहा कि उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में गंभीर त्रुटियां कीं। पीठ ने कहा, 'अगर उच्च न्यायालय की टिप्पणियों को स्वीकार कर लिया जाता है, तो इसका भयावह प्रभाव पड़ेगा, जिससे शिकायत समिति, जिसे जांच प्राधिकारी माना जाता है, महज रिकॉर्डिंग मशीन बनकर रह जाएगी।'

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