सुप्रीम कोर्ट में आया मर्डर का ऐसा वीभत्स मामला,जज बोले- कभी ऐसा केस नहीं देखा
सुप्रीम कोर्ट ने हत्या के आरोपी पक्ष के वकील से जो सवाल पूछे थे अब हर तरह उसकी चर्चा हो रही है। ये अपने आप में हैरान करने वाली बात है कि जब एक केस की सुनवाई करते वक्त जज को खुद ही कहना पड़ा गया कि हमने आज तक ऐसा केस कभी देखा। ऐसे में हत्या की वो घटना कितनी भयावह रही होगी। इसका अंदाजा खुद से ही लगाया जा सकता है।
नई दिल्ली: आज की बड़ी खबर सुप्रीम कोर्ट से आ रही है। सुप्रीम कोर्ट ने महिला की वीभत्स हत्या और उसके अंगों को निकालने के मामले में दोषी करार दिए गए एक शख्स की मौत की सजा पर रोक लगा दी है।
शीर्ष कोर्ट अब दोषी करार दिए गए शख्स की मौत की सजा के खिलाफ उसकी अपील पर सुनवाई के लिए सहमत भी हो गया है। सजा पर रोक लगाने से पहले शीर्ष कोर्ट ने जो बातें कही।
उसकी चर्चा अब हर तरफ हो रही है। खुद मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि 'हमने कभी ऐसा केस नहीं देखा।
कोर्ट ने आरोपी के लिए कानूनी सहायक वकील के रूप में पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा से पूछा, 'आपके मुवक्किल ने बहुत ही अप्रिय काम किया है। इस पर आप क्या कहना चाहेंगे?
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क्या है ये पूरा मामला
बता दें कि ये पूरा मामला हत्या और सबूत मिटाने का है। दरअसल एक बहु मंजिला इमारत में सिक्योरिटी गार्ड के तौर पर नौकरी करने वाले मोहन सिंह को एक महिला की हत्या और सबूत मिटाने का दोषी करार दिया गया है।
महिला की हत्या के बाद उसके पेट में कपड़ा भर दिया गया था और फिर पेट को तार से सील दिया गया था। फॉरेंसिक रिपोर्ट में पाया गया कि महिला के कई अंग भी गायब थे।
जिसके बाद राजस्थान हाई कोर्ट ने मौत की सजा को 9 अगस्त को बरकरार रखा था। लेकिन आरोपी पक्ष की तरफ से इस मामले में शीर्ष अदालत में याचिका दायर कर सुनवाई के लिए कहा गया था।
कोर्ट ने आरोपी पक्ष के वकील से पूछे ये तीखे सवाल
जिसके बाद कोर्ट इस पूरे मामले की सुनवाई के लिए राजी हो गया। इसी मामले में कोर्ट ने आरोपी पक्ष के वकील से तमाम सवाल-जवाब किये। आरोपी के वकील से पूछा कि उसने पेट क्यों फाड़ा और उसमें कपड़ा भर दिया। क्या वह कोई सर्जन है?'
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आरोपी के वकील ने क्या कहा?
सिद्धार्थ लूथरा ने अपनी दलील में कहा कि मोहन सिंह को 'गलत फंसाया' गया है। पीड़ित महिला को अंतिम बार सिक्योरिटी गार्ड से बात करते हुए देखा गया था तो तो क्या 'अंतिम बार' देखे जाने को ही सबूत के तौर पर मान लिया जाएगा।
वकील ने कोर्ट में दलील दी कि निचली अदालत ने कभी डीएनए एक्सपर्ट से जांच नहीं कराई और पुलिस ने उस एरिया के सीसीटीवी फुटेज को भी कभी खंगालने की जरूरत नहीं समझी।
दलील सुनने के बाद मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) एसए बोबडे, एएस बोपन्ना और वी राम सुब्रमण्यम की पीठ ने फिलहाल मौत की सजा पर रोक लगा दी।
पीठ दोषी की अपील पर सुनवाई को राजी हो गई और इस केस से जुड़े जांच के सभी जरूरी दस्तावेज मंगाए हैं।
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