नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने अब नेवी में भी सभी महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन का आदेश दिया है। कोर्ट ने कहा कि कार्यरत महिलाओं के साथ भेदभाव हो सकता। सरकार ने 2008 में नेवी में महिलाओं को स्थायी कमीशन के लिए यह नीति बनाई थी। जिसके तहत इस फैसले से 2008 से काम कर रही महिलाओं को लाभ होगा।
सुप्रीम कोर्ट नौसेना में महिला अधिकारियों के स्थाई कमिशन मामले पर आज फैसला यह फैसला सुनाया। जिसे लेकर सरकार ने पहले ही कह दिया है कि वह सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन करने के लिए तैयार है।
सुप्रीम कोर्ट पहले लगा चुका है फटकार-
वहीं सुप्रीम कोर्ट इस मामले में केंद्र सरकार को पहले फटकार लगा चुका है। कोर्ट ने फटकार लगाते हुए कहा था कि सामाजिक और मानसिक कारण बताकर महिला अधिकारियों को अवसर से वंचित रखना बेदभावपूर्ण रवैया है और यह बर्दाश्त के काबिल नहीं है।
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बता दें कि इसके पहले 11 मार्च को केंद्र सरकार ने लोकसभा में इस बात की जानकारी दी थी कि सेना में महिलाओं को स्थायी कमीशन देने के लिए वह तैयार है। साथ ही सरकार ने या भी कहा कि वह इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का पूरा पालन करेगी।
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने बीते महीने अपने आदेश में कहा था कि सेना में महिलाओं को स्थायी तैनाती मिलनी चाहिए। साथ ही महिलाओं को पुरुष अधिकारियों की ही तरह सैन्य कमान में भी तैनात किया जाना चाहिए।
इस कमीशन के तहत ठहराया गया था महिलाओं को अयोग्य-
1950 में बने आर्मी एक्ट के तहत महिलाओं को स्थायी कमीशन के लिए अयोग्य ठहरा दिया गया था। इसके 42 साल बाद यानी 1992 में सरकार ने पांच ब्रांच में महिला अधिकारी बनाने की अधिसूचना जारी की। 17 फरवरी 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को आदेशित किया कि सेना में महिलाओं को स्थायी
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क्या है स्थायी कमीशन का मतलब-
स्थायी कमिशन का अर्थ ये है कि कोई भी अधिकारी रिटायरमेंट की उम्र तक सेना में काम कर सकता है और इसके बाद वह पेंशन का भी हकदार होगा। अभी तक महिलाएं शॉर्ट सर्विस कमिशन में काम कर रही हैं। सिर्फ पुरुषों को ही स्थायी कमीशन मिलते हैं। शॉर्ट सर्विस कमिशन के तहत अधिकारियों को 14 साल में रिटायर कर दिया जाता है और उन्हें पेंशन भी नहीं मिलती है। इससे पहले महिलाएं केवल 10 साल तक ही नौकरी कर पाती थीं।
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