Temperature Insurance Scheme: 50 हजार महिलाओं को मिला तापमान-बीमा

Temperature Insurance Scheme: कई शहरों में तापमान 40 डिग्री को पार कर गया था। इसी के चलते राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र की कामकाजी महिलाओं को 400-400 रुपये भुगतान किया गया।

Written By :  Neel Mani Lal
Update: 2024-06-12 11:26 GMT

50 हजार महिलाओं को मिला तापमान-बीमा  (photo: social media )

Temperature Insurance Scheme: बीमा तरह तरह के होते हैं लेकिन बिगड़ते पर्यावरण से सुरक्षा का भी बीमा होता है, ये बहुतों के लिए एक नई जानकारी होगी। तो यह जान लीजिये कि भारत में 50 हजार महिलाओं को पहली बार एक ऐसा बीमा भुगतान हुआ है, जो अत्यधिक तापमान पर दिया जाता है। दरअसल, तापमान-बीमा एक ऐसी योजना है जिसके तहत अत्यधिक गर्मी होने पर उन महिलाओं को भुगतान किया जाएगा जिनका कामकाज गर्मी के कारण प्रभावित हुआ हो।

18 से 25 मई के बीच भारत के कई शहरों में तापमान 40 डिग्री को पार कर गया था। इसी के चलते राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र की इन कामकाजी महिलाओं को 400 – 400 रुपये का भुगतान किया गया है।

समाजसेवी संस्था की योजना

तापमान से आमदनी की सुरक्षा की तह योजना एक अंतरराष्ट्रीय समाजसेवी संस्था ‘’क्लाइमेट रेजिलिएंस फॉर ऑल’’ (सीआरए) ने भारत में महिलाओं के लिए काम करने वाली संस्था ‘’सेल्फ-इंप्लॉयड वीमेन एसोसिएशन’’ के साथ मिलकर शुरू की है। यह बीमा योजना स्विट्जरलैंड की कंपनी स्विस री और भारत के आईसीआईसीआई लोंबार्ड के सहयोग से चलाई गई है। सीआरए की सीईओ कैथी बॉगमन मैक्लॉयड के मुताबिक - यह पहली बार है जब सीधे नगद भुगतान को बीमा योजना के साथ जोड़ा गया है ताकि उन महिलाओं की आर्थिक मदद की जा सके, जिनकी आय अत्यधिक गर्मी के कारण प्रभावित हो रही है। 400 रुपये के इस भुगतान के अलावा लगभग 92 फीसदी महिलाओं को करीब 1,600 रुपये तक का अतिरिक्त भुगतान भी मिला। ये एक्स्ट्रा भुगतान स्थानीय परिस्थितियों और गर्मी की अवधि के आधार पर तय होता है। तापमान बीमा योजना के तहत कुल तीन करोड़ रुपये का भुगतान किया गया है।


कई देशों में योजनायें

तापमान बीमा जैसी योजनाएं कई देशों में शुरू हो गई हैं। संयुक्त राष्ट्र की संस्था युनाइटेड नेशंस डेवलेपमेंट प्रोग्राम (यूएनडीपी) ने इंश्योरेंस एंड रिस्क फाइनेंस फैसिलिटी के नाम से एक संगठन स्थापित किया है जो दुनियाभर में बीमा क्षेत्र की बड़ी कंपनियों और सरकारों के साथ मिलकर काम करता है। 33 देशों में काम कर रहे इस संगठन का मकसद जलवायु परिवर्तन के कारण आने वाली आपदाओं के वक्त एक मजबूत वित्तीय आधार उपलब्ध कराना है जो कमजोर तबकों की मदद कर सके। जलवायु नीति विशेषज्ञों का मानना है कि बिगड़ती जलवायु के कारण पूरे विश्व में लोगों की अजीविका प्रभावित हो रही है, खास कर उन लोगों की जो खुले में काम करते हैं और कमजोर वर्ग के होते हैं। ऐसे समूहों को एक सुरक्षा दायरा प्रदान किये जाने की दरकार है।

यूएनडीपी के मुताबिक जलवायु परिवर्तन के कारण आने वाली आपदाओं के लिए सबसे कम तैयारी विकासशील देशों में ही है। इनमें भी सबसे ज्यादा खतरा महिलाओं को है क्योंकि दुनियाभर की गरीब आबादी में महिलाओं की संख्या पुरुषों से ज्यादा है। बीमा ना होने से मौसमी आपदाओं के कारण लाखों-करोड़ों लोग गरीबी की खाई में गिर सकते हैं क्योंकि विकासशील देशों में ऐसे लोगों की तादाद बहुत ज्यादा है जिनके पास आपदाओं के कारण होने वाले नुकसान से उबरने के लिए संसाधन ना के बराबर हैं। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण प्रोग्राम (यूएनईपी) का अनुमान है कि इस सदी के आखिर तक जलवायु परिवर्तन के कारण समुद्र जल स्तर बढ़ने से दुनियाभर में लगभग डेढ़ करोड़ लोग प्रभावित होंगे। इनमें से बहुत से लोगों के गरीबी के मुंह में चले जाने की आशंका है। आज से मात्र छह साल में यानी 2030 तक 13 करोड़ से ज्यादा लोग मौसम की मार की वजह से गरीबी की रेखा से नीचे जा सकते हैं। विशेषज्ञ कहते हैं कि ये लोग जलवायु परिवर्तन के सबसे बड़े पीड़ित होंगे जबकि ग्लोबल वॉर्मिंग में इनका योगदान सबसे कम है। दुनिया के सबसे गरीब साढ़े तीन अरब लोग कुल कार्बन उत्सर्जन के सिर्फ 10 फीसदी के लिए जिम्मेदार हैं। यानी करे कोई और भरे कोई।



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