‘नेताजी’ सुभाष चंद्र बोस की 122वीं जयंती आज, जानें उनके जीवन से जुड़ी रोचक बातें

नेताजी के मौत की गुत्थी आज भी अनसुलझी है। उनके जीवित रहने के कई साक्ष्य और बातें रूस और भारत में देखे-सुने गए हैं। लोगों का ऐसा मानना है कि नेताजी साल 1985 तक जीवित रहे हैं। वह भगवानजी के रूप में फैज़ाबाद के एक मंदिर में रहते थे।

Update: 2019-01-23 05:31 GMT

लखनऊ: आज भारत की आजादी में अहम योगदान देने वाले अमर स्वतंत्रता सेनानियों में से एक ‘नेताजी’ सुभाष चंद्र बोस की 122वीं जयंती है। उनका जन्म 23 जनवरी को 1897 में ओडिशा (उड़ीसा) के कटक में हुआ था।

उनके पिता का नाम जानकीनाथ बोस था, वे वकील थे। उनकी माता का नाम प्रभावती था। उनकी मृत्यु 18 अगस्त 1945 को प्लेन दुर्घटना में हुई थी। सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु के संबंध में कई मतभेद भी हैं। अपने पिता की इच्छा को पूरा करने के लिए उन्होंने वर्ष 1920 में आईसीएस की परीक्षा दी और चौथा स्थान लाए।

'नेताजी' के जीवन से जुड़ी एक कहानी- जब उन्होंने अपने हौसले से अंग्रेजों के सिर झुका दिए

उनके जिंदगी से जुड़ा एक किस्सा काफी प्रसिद्ध है। जब सुभाष चंद्र बोस इंटरव्यू देने इंग्लैंड गए तो वहां सभी अंग्रेज अधिकारी थे, जो किसी भारतीय को उच्च पद पर आसीन होते नहीं देखना चाहते थे। सभी भारतीयों को नीचा दिखाने के लिए कठिन सवाल पूछे जा रहे थे।

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बोस की बारी आयी तो एक अंग्रेज ने चलते पंखे को देख सवाल किया, “इस पंखे में कितनी पंखुडि़यां है। अगर तुम सही जवाब नहीं दे पाए तो फेल हो जाओगे।” तभी एक और अंग्रेज ने भारतीय को नीचा दिखाने के मकसद से कहा, “भारतीयों में बुद्धि कहां होती है?” इसके जवाब में बोस ने कहा, “यदि मैंने सही जवाब दे दिया तो आप मुझसे दुबारा कोई सवाल नहीं पूछेंगे और मेरे सामने यह भी स्वीकार करेंगे कि भारतीय बुद्धिमान होते हैं।” अंग्रेजों ने उनकी बात मान ली और उत्तर देने को कहा। सुभाष चंद्र बोस अपने जगह से उठे और तुरंत पंखा बंद कर दिया। पंखा रूकते ही उसकी पंखुडि़यां गिनकर बता दी। उनकी इस सुझबूझ और निर्भीकता को देख अंग्रेजों की आंखे नीची हो गई।

द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान, अंग्रेजों से भारत को आजाद कराने के लिए उन्होंने जापान के सहयोग से आजाद हिन्द फौज का गठन किया था। उनके द्वारे दिए गए नारों में सर्वाधिक प्रचलित नारा है- तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा। जय हिन्द का नारा भी उन्होंने ही दिया था।

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'नेताजी' के कुछ अनमोल विचार

  1. जिस व्‍यक्ति में पागलपन नहीं होता, वह कभी भी महान नहीं बन सकता, लेकिन सभी पागल व्‍यक्ति महान नहीं बन पाते। क्‍योंकि सभी पागल व्‍यक्ति प्रतिभाशाली नहीं होते। आखिर ऐसा क्‍यों है? इसका कारण यह है कि केवल पागलपन ही काफी नहीं है, इसके साथ ही कुछ और चीजें भी जरूरी हैं।
  2. जो लोग फूलों को देखकर मचलते हैं, उन्‍हें कांटे भी जल्‍दी लगते हैं।
  3. हमें अपनी ताकत पर भरोसा करना चाहिए, क्योंकि उधार की ताकत हमारे लिए घातक होती है।
  4. ध्यान रखें सबसे बड़ा अपराध अन्याय सहना और गलत के साथ समझौता करना है।
  5. अगर आपको जीवन में कभी भी अस्‍थाई रूप से झुकना पड़े, तब वीरों की तरह झुकना।
  6. समय से पहले की प‍रिपक्‍वता अच्‍छी नहीं होती, चाहे वह किसी वृक्ष की हो या किसी व्‍यक्ति की, उसकी हानि भविष्य में भुगतनी ही होती है।
  7. अगर संघर्ष न हो, किसी का भय न हो, तब जीवन का आधा स्‍वाद ही खत्म हो जाता है।
  8. सुभाष चंद्र बोस कहते थे कि मैंने जीवन में कभी भी किसी खुशामद नहीं की है। दूसरों को अच्‍छी लगने वाली बातें करना मुझे नहीं आता।
  9. सफलता का सफर लंबा हो सकता है, लेकिन उसका आना तय है। इसीलिए हमें निरंतर आगे बढ़ते रहना चाहिए।
  10. उच्च विचारों से दुर्बलता दूर होती है, इसीलिए हमें अपने हृदय में उच्च विचार पैदा करते रहना चाहिए।

'नेताजी' के जीवन से जुड़े कुछ रोचक जानकारी

नेताजी सुभाष चंद्र बोस एक विलक्षण छात्र और राष्ट्रप्रेमी थे। वह 9 भाई-बहनों में से एक थे। भारतीय सिविल सेवा की परीक्षा में उनकी रैंक 4 थी। इसके बावजूद उन्होंने नौकरी ठुकरा दी। 1943 में बर्लिन में रहते हुए नेताजी ने आजाद हिंद रेडियो और फ्री इंडिया सेंटर की स्थापना की थी।

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नेताजी को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का दो बार अध्यक्ष चुना गया था। 1939 के कांग्रेस सम्मेलन में नेताजी स्ट्रेचर पर लाद कर लाया गया था| कांग्रेस पार्टी छोड़ने के बाद नेताजी ने 1939 में फॉरवर्ड ब्लॉक नामक संगठन का गठन किया। नेताजी के मौत की गुत्थी आज भी अनसुलझी है। उनके जीवित रहने के कई साक्ष्य और बातें रूस और भारत में देखे-सुने गए हैं। लोगों का ऐसा मानना है कि नेताजी साल 1985 तक जीवित रहे हैं। वह भगवानजी के रूप में फैज़ाबाद के एक मंदिर में रहते थे।

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