UP नगर निकाय चुनाव विश्लेषण : तुम्हारे आंकड़े झूठे हैं, दावा किताबी है

यह शेर मौजू बैठ रहा है नगर निकाय चुनाव के परिणामों पर। जिन परिणामों को लेकर बीजेपी इतरा रही है , दरअसल उसके लिए ये परिणाम बहुत चिंता में डालने वाले हैं। 14 नगर नि

Update: 2017-12-02 10:57 GMT

संजय तिवारी

आदम गोंडवी ने कभी लिखा था -

तुम्हारी फाइलों में गाँव का मौसम गुलाबी है

मगर ये आंकड़े झूठे हैं ये दावा किताबी है ।

यह शेर मौजू बैठ रहा है नगर निकाय चुनाव के परिणामों पर। जिन परिणामों को लेकर बीजेपी इतरा रही है , दरअसल उसके लिए ये परिणाम बहुत चिंता में डालने वाले हैं। 14 नगर निगमों में महापौर के पद जीत कर जश्न मानाने वाली बीजेपी के लिए चिंतन की घड़ी है। इन चुनावों के असली आंकड़े सामने आने के बाद बहुत कुछ बदला बदला सा दिखने लगा है।

उतरप्रदेश में नगर निकाय के महापौर के 16 , नगर पालिका परिषद् अध्यक्ष के 198 , नगर पंचायत अध्यक्ष के 438 चुनाव हुए थे। इनमें से 14 महापौर , 68 नगर पालिका परिषद् के अध्यक्ष और 100 नगर पंचायत अध्यक्ष के पदों पर ही भाजपा की जीत हो सकी है। पार्षदों / सदस्यों के कुल 5261 पदों में से केवल 914 सीटें ही भाजपा की झोली में गयी हैं। शेष 4 303 सीटों पर दूसरो का कब्जा रहा है। आंकड़े बता रहे हैं कि इस चुनाव में सर्वाधिक सीटें निर्दलीयों के पास हैं। प्रमुख 652 यानि अध्यक्ष पदों में से 224 पर निर्दलीय काबिज हुए हैं। यदि इसे वोट प्रतिशत की नजर से देखे तो जिस भाजपा को अभी विधानसभा चुनाव में 43 फीसद वोट मिले थे वह नगर निकाय में 30 फीसद से भी नीचे खिसक गयी है। निर्दलीय 32 फीसद वोट बटोर ले गए हैं।

अब सबसे पहले बात करते हैं महापौर की दो बड़ी सीट जीत कर सभी की नींद उड़ा देने वाली बसपा की। भाजपा गढ़ रहे मेरठ और अलीगढ जैसी सीटों का बसपा के साथ जाना बहुत कुछ कहता है। इसके साथ ही आगरा , झांसी में जिस तरह जोरदार टक्कर दी है वह भी भाजपा के लिए चिंता का कारण हो सकता है। पश्चिमी यूपी में बसपा बहुत ताकतवर होकर उभरी है। नगर पालिका में भी वह कही सपा के बराबर और कही उससे भी आगे रही है।

यूपी चुनाव नगर निकाय विश्लेषण : तुम्हारे आंकड़े झूठे हैं, दावा किताबी है

बसपा का उभार

पश्चिमी यूपी की राजनीति के केंद्र और बीजेपी के गढ़ मेरठ में भी मायावती की बसपा ने भाजपा को धूल चटा दी। बीजेपी के कद्दावर नेता और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मीकांत बाजपेयी के शहर मेरठ में भाजपा की यह पराजय बहुत कड़े सन्देश दे रही है। यहां नीले निशान वाली पार्टी की प्रत्याशी सुनीता वर्मा 229,238 वोट पाकर विजेता रहीं। भाजपा प्रत्याशी कांता कर्दम को 204,397 मत पाकर दूसरे नंबर से ही संतोष करना पड़ा। पहले से बीजेपी के पास रही अलीगढ़ नगर निगम में भी बसपा के मोहम्मद फुरकान 125682 मत पाकर विजेता रहे। उन्होंने बीजेपी उम्मीदवार को 10,445 मतों से हराया। सपा और कांग्रेस दोनों के ही प्रत्याशी मुकाबले में कहीं नहीं दिखे। पश्चिम में बाकी निकायों में भी बसपा ने अच्छा प्रदर्शन किया। प्रदेश की 198 नगर पालिकाओं में से बसपा को 35 सीटें मिली हैं जो सपा के 36 से मात्र एक कम है। प्रदेशभर में बीजेपी को जहां भी कड़ी टक्कर मिली वो बसपा के उम्‍मीदवारों ने ही दी।

इन चुनावों में बसपा की इस वापसी को देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि विधानसभा चुनावों में मिली करारी हार के बाद पार्टी सुप्रीमो मायावती ने संगठन को दुरुस्त करने के लिए राज्यसभा चुनावों से इस्तीफे का जो दांव चला था वो काम करता दिख रहा है। मौजूदा निकाय चुनावों में बसपा को जिन सीटों पर हार का मुंह देखना भी पड़ा है वहां भी उसका प्रदर्शन कमतर नहीं रहा।

यह ध्यान देने वाला तथ्य है कि राज्यसभा से इस्तीफा देने के बाद मायावती लगातार संगठन के स्तर पर काम कर रही हैं, इसके लिए उन्होंने कई जगह पार्टी पदाधिकारियों को बदला है तो कई जगह पुराने और विश्वस्त चेहरों को दोबारा कमान सौंपी गई है। संगठन के प्रति मायावती की गंभीरता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि जिस समय यूपी में निकाय चुनावों की मतगणना चल रही थी उसी दौरान वह राजस्‍थान में स्‍थानीय कार्यकर्ताओं को संबोधित कर रही थीं। यह भी उल्लेख करना जरुरी है कि बसपा की यह दमदार उपस्थिति तब सामने आयी है जब स्वामी प्रसाद मौर्य तथा नसीमुद्दीन जैसे चेहरे उसका साथ छोड़ चुके है।

पहले लोकसभा चुनावों में सूपडा साफ और फिर यूपी के विधानसभा चुनावों में बुरी गत के बाद मायावती ने पार्टी को मजबूत करने के ‌लिए खुद ही मोर्चा संभाला।अपने दलित वोटरों की जमात का भरोसा जीतने में मायावती अब फिर कामयाब होती दिख रही हैं।

दर असल यूपी के साथ ही देशभर में दलितों के खिलाफ हुए तमाम मुद्दों को मायावती ने प्रमुखता से उठाया, इस दौरान हर बार उनके निशाने पर भाजपा और प्रधानमंत्री मोदी ही रहे। दलित अस्मिता के मुद्दे को मायावती ने पूरे जोर शोर से तूल दिया, जिसका नतीजा ये रहा कि पहले लोकसभा और फिर विधानसभा चुनावों में उनका जो कोर दलित वोट बैंक हिंदुत्व के नाम पर उनसे छिटककर भाजपा के पाले में चला गया था वो निकाय चुनावों में वापस लौटता दिखा। अबकी विकल्प की तलाश में राह देख रहे मुस्लिम मतदाताओं के लिए मायावती में वह विकल्प दिख गया। उन्हें मुस्लिम वोटरों को भी साथ मिला, जिन्होंने जहां जहां बसपा उम्‍मीदवार मजबूत स्थिति में दिखा वहां वहां पूरी रणनीति के साथ उसके पक्ष में एकतरफा मतदान किया। खास कर मेरठ में बसपा उम्‍मीदवार की जीत इसकी एक बानगी भर हैं, जहां बसपा को मुस्लिमों का लगभग एकतरफा समर्थन मिला जबकि समाजवादी पार्टी की प्रत्याशी दीपू मनोठिया मात्र 46,530 वोट पास सकीं, जबकि कांग्रेस को 29,201 वोट मिले। इसी सीट पर पिछले निकाय चुनाव में सपा उम्‍मीदवार रफीक अंसारी को एक लाख से ज्यादा वोट मिले थे।

दीन - हीन दिग्गज

नगर निकाय के चुनाव परिणामो ने बहुतो को आइना दिखाया है। खासकर सभी पार्टियों के दिग्गजों को इस परिणाम ने बहुत गंभीर ढंग से चेतावनी दी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी , मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ , उपमुख्यमंत्री केशव मौर्या , कांग्रेस के शीर्ष नेता राहुल गांधी , सपा के अखिलेश यादव और रामगोपाल यादव तक के लिए यह चुनाव किसी चेतावनी से कम नहीं है। भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और अब डिप्टी सी एम केशव प्रसाद मौर्या की विधानसभा सीट सिराथू के सभी सीटों पर भाजपा हार गयी है।कौशाम्बी जिले की नगरपालिका से लगायत सभी सीट भाजपा हार गयी है।

मुख्या मंत्री योगी आदित्यनाथ गोरखपुर नगर निगम में भाजपा को पूर्ण बहुमत नहीं मिल सका है। इसके वार्ड संख्या-68 (पुराना गोरखपुर) में वोटर है। इस वॉर्ड में निर्दलीय उम्मीदवार नादरा खातून ने बीजेपी की उम्मीदवार माया त्रिपाठी को 462 वोटों से हराया। निर्दलीय उम्मीदवार नादरा खातून ने 1783 वोट मिले जबकि बीजेपी प्रत्याशी माया त्रिपाठी को मात्र 1321 वोट मिले है। सीएम योगी के गढ़ गोरखपुर में मेयर पद पर लगातार तीसरी बार हैट्रिक लगाते हुए बीजेपी ने जीत दर्ज की।

भाजपा मेयर प्रत्‍याशी सीताराम जायसवाल 75823 वोटों के अंतर से सपा के राहुल गुप्ता को हराया है। वहीं, गोरखपुर नगर निगम के 70 वार्डों में से बीजेपी ने 27, सपा को 17, निर्दलीय को 18, बीएसपी को 5 और कांग्रेस को 3 सीट मिली है।

श्रीकांत शर्मा के मथुरा नगर निगम में बीजेपी कैंडिडेट मुकेश आर्य बन्धु ने कांग्रेस के मोहन सिंह को 22195 वोटों से हराया। भाजपा के मुकेश आर्य बन्धु को 103021 वोट मिले। कांग्रेस उम्मीदवार मोहन सिंह 80896 वोट मिले। बसपा के गोवर्धन सिंह को 32641 वोट मिले। सपा से श्याम मुरारी चौहान को 11139 वोट मिले। आप के गणेश माहौर 5894 वोट मिले हैं। 70 वार्डों वाले मथुरा वृन्दावन नगर निगम में 40 वार्डों पर बीजेपी , कांग्रेस को 9, सपा को 2, बीएसपी को 3, लोकदल को 2 और निर्दलीय को 8 सीट पर जीत मिली है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में भी भाजपा को पूर्ण बहुमत नहीं मिला है। कुल 90 में से भाजपा को यहाँ महज 37 सीट ही मिली हैं। भाजपा वाराणसी नगर निगम में मेयर का चुनाव बीजेपी की मेयर उम्मीदवार मृदुला जायसवाल ने चुनाव जीता है। 90 सीट वाले वाराणसी नगर निगम में इस बार सिर्फ 89 सीटों पर वोटिंग हुई । वार्ड नंबर-28 चेतगंज से कांग्रेस से पार्षद उम्मीदवार की मौत की वजह से यहां से सीट खाली रही। 37 सीटों पर बीजेपी, 17 सीटों पर सपा, 22 सीटों पर कांग्रेस, 2 सीट बसपा, एक सीट आम आदमी पार्टी को मिली है।

यूपी चुनाव नगर निकाय विश्लेषण : तुम्हारे आंकड़े झूठे हैं, दावा किताबी है

सोनिया गाँधी की रायबरेली नगर पालिका से कांग्रेस पूर्णिमा श्रीवास्तव ने 4006 वोटों से जीत दर्ज की है। पूर्णिमा श्रीवास्तव को 22535 वोट मिले थे। जबकि समाजवादी पार्टी की नसरीन बानो को 18529 वोट मिले हैं। बीजेपी की सोनिया रस्तोगी को 14713 वोट मिले। एलजेपी की किन्नर पूनम को 7781 वोट मिले हैं। 34 वॉर्ड में से 31 पर निर्दलियों ने जीत दर्ज की है। जबकि 2 सीट बीजेपी के पास है। एक आम आदमी पार्टी के पास है।

राहुल गाँधी के अमेठी क्षेत्र में पड़ने वाली दो नगर पालिकाओं में जायस सीट बीजेपी के पास है, जबकि गौरीगंज नगरपालिका समाजवादी पार्टी के पास है। जायस नगरपालिका में बीजेपी के महेश सोनकर ने 3461 वोट मिली है। गौरीगंज नगर पालिका सीट को सपा की राजपति पासी ने 1404 वोटों के अंतर से जीत दर्ज की है।

शिवपाल यादव की विधानसभा सीट जसवंत नगर में निर्दलीय उम्मीदवार सुनील जॉली ने चुनाव जीत लिया है। सुनील को शिवपाल यादव ने सपोर्ट किया था। उन्हें 4367 वोट मिले थे, जबकि सपा के सत्यनारायण वाले 4244 वोट मिले थे। सुनील जॉली ने 123 वोटों से जीत दर्ज की है। सुनील जॉली की इस जीत ने सपा आलाकमान को बता दिया है कि उनकी पकड़ जमीनी स्तर पर अब भी मजबूत है। अपने विधानसभा क्षेत्र जसवंत नगर में अपने बूते उलट-फेर करने में सक्षम हैं। यहाँ अखिलेश की नहीं चली। फिरोजाबाद में समाजवादी पार्टी को जोरदार झटका लगा जहा से रामगोपाल के बेटे अक्षय यादव आते है।

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