देहरादून। उत्तराखंड में 2018 में होने वाले निकाय चुनाव की तैयारियां तेज हो गई हैं। हालांकि निकाय विस्तार के बाद अभी परिसीमन नहीं हुआ है जिसकी वजह से राजनीतिक दलों में कुछ कुछ संशय की स्थिति भी बनी हुई है। भारतीय जनता पार्टी ने निकाय चुनाव में महिलाओं को 33 फीसदी सीटों पर टिकट देने की बात कही है। बात कह तो दी गई लेकिन पार्टी के अंदर खुद इस बात का एहसास है कि बूथ स्तर पर पार्टी के महिला संगठन सक्रिय नहीं है।
बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह भी उत्तराखंड दौरे में बूथ स्तर पर संगठन को मजबूत करने की जिम्मेदारी देकर गए थे। लेकिन उनके निर्देश में बीजेपी के महिला मोर्चे को बूथ स्तर पर मजबूत करने को लेकर कोई बात नहीं कही गई। दरअसल राजनीतिक दल संगठन में महिलाओं की हिस्सेदारी पर खास जोर नहीं देते। जमीनी स्तर पर सक्रिय महिला कार्यकर्ता तैयार करने की बात नहीं होती। इसलिए जब टिकट देने की बारी आती है तो योग्य महिला उम्मीदवार नहीं मिलती। महिलाएं डमी की भूमिका निभाती हैं इसीलिए प्रधान पति जैसे टर्म भी विकसित हो गए। ये हाल तब है जबकि उत्तराखंड की महिलाएं अपनी जीवटता के लिए जानी जाती हैं। चिपको आंदोलन, राज्य आंदोलन से लेकर तमाम आंदोलनों में उन्होंने अहम भूमिका निभाई है। लेकिन उनकी समझ को अब तक राजनीतिक धार नहीं दी जा सकी है। पहाड़ की महिलाओं को राजनीतिक चेतना अभी तक पूरी तरह विकसित नहीं हुई है।
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उत्तराखंड कांग्रेस की प्रवक्ता गरिमा दसौनी कहती हैं कि हम योग्य उम्मीदवार को टिकट देंगे। लेकिन जब कहीं किसी सीट पर कोई योग्य महिला उम्मीदवार ही न हो, महिलाएं खुद घर से निकलने को तैयार ही न हों, तो ऐसे में हम क्या करें। निकाय चुनाव में महिलाओं को टिकट देने के सवाल पर गरिमा का कहना है कि हमने अभी तक टिकट या आरक्षण को लेकर कोई रणनीति नहीं बनाई है। लेकिन कांग्रेस पार्टी महिलाओं को टिकट देने में पीछे नहीं रहती। हम महिलाओं को टिकट बंटवारे में या संगठन में पूरी भागीदारी देते हैं। अपना भारत से बातचीत में गरिमा बताती हैं कि पिछले उत्तराखंड विधानसभा चुनावों में उनकी पार्टी ने राज्य की 70 सीटों में 9 महिलाओं को टिकट दिया था।
बीजेपी महिला मोर्चे की अध्यक्ष नीलम सहगल का कहना है कि हमारे पास ज़मीनी स्तर पर मज़बूत महिला कार्यकर्ताएं हैं। जो सीट जीतने का सामथ्र्य रखती हैं। लेकिन उन्हें टिकट नहीं मिल पाता। नीलम बताती हैं कि पिछली बार के नगर निगम चुनाव में वो देहरादून में भारतीय जनता पार्टी की जिलाध्यक्ष थीं। उस समय उन्होंने 29 महिलाओं को टिकट दिया था। उनमें से 22 महिलाएं जीत कर आई थीं। उनका कहना है कि महिलाओं को अगर मौका मिले तो वे बेहतर प्रदर्शन करती हैं और जनता का विश्वास भी महिलाओं पर है। पार्टी का सिंबल मिलने से जीतना आसान हो जाता है। वह निकाय चुनाव में सामान्य वर्ग की सीटों पर भी महिलाओं को टिकट देने की वकालत करती हैं। उनका विश्वास है कि उनकी पार्टी की महिला कार्यकर्ता सीटें निकाल ले जाएंगी। नीलम देहरादून मेयर सीट को भी इस बार महिलाओं के लिए आरक्षित कराना चाहती हैं। लेकिन वे जानती हैं पार्टी इसके लिए मुश्किल ही तैयार होगी।
उत्तराखंड आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाने वाले राज्य के एक मात्र महिला संगठन उत्तराखंड महिला मोर्चा की अध्यक्ष कमला पंत का कहना है कि सड़क पर यदि सौ महिलाएं जुलूस निकाल रही हैं और एक पुरुष आ कर कह दे कि बाएं मुड़ जाओ तो वे सभी बाएं मुड़ जाएंगी। महिलाओं को राजनीतिक तौर पर परिपक्व किए जाने की जरूरत है। बीजेपी या कांग्रेस कोई राजनीतिक दल ये नहीं करना चाहेगा। ये काम सोशल मूवमेंट के ज़रिये संभव है। कमला ये भी मानती हैं कि सिर्फ चुनावी राजनीति ही नहीं, महत्वपूर्ण मुद्दों पर राजनीतिक निर्णयों में महिलाओं की भागीदारी जरूरी है।
लेकिन राजनीति क्या है, क्यों है, महिलाओं में ये समझ अभी विकसित किए जाने की जरूरत है। इस समय में जब बेटी बचाओ- बेटी पढ़ाओ के नारे गूंज रहे हैं।
उज्ज्वला योजना या तीन तलाक पर अहम फैसलों के ज़रिये हमारी सरकार महिलाओं को साधने की कोशिश कर रही है। ये वक्त राजनीतिक चेतना रखने वाली महिलाओं के भी सोचने का है। निकाय चुनावों में, पंचायतों में महिलाओं की हिस्सेदारी बढऩे से स्थानीय स्वशासन में उनका योगदान बढ़ेगा। सार्वजनिक जीवन में ये महिला सशक्तीकरण होगा। ऐसी महिलाओं को टिकट मिले जो अपने बूते अपनी सत्ता चलाएं। पतियों के सहारे सियासत करने से ये कहीं बेहतर है।