Women Reservation Bill: महिला आरक्षण विधेयक से जुड़ी सभी अहम बातें, आसान भाषा में समझें
Women Reservation Bill: संसद भवन की नई इमारत में पहली बार सत्र की कार्यवाही हुई और पहले ही दिन मोदी सरकार ने नारी शक्ति वंदन अधिनियम (महिला आरक्षण विधेयक) को पेश किया।
Women Reservation Bill: अगले साल यानी 2024 में होने वाले आम चुनाव से पहले मोदी सरकार ने बड़ा दांव चला है। आधी आबादी को संसद और विधानसभाओं में पर्याप्त हिस्सेदारी की वर्षों से चली आ रही मांग को महिला आरक्षण विधेयक के रूप में मूर्त दिया है। मंगलवार का दिन देश के संसदीय इतिहास के लिए ऐतिहासिक रहा। संसद भवन की नई इमारत में पहली बार सत्र की कार्यवाही हुई और पहले ही दिन मोदी सरकार ने नारी शक्ति वंदन अधिनियम (महिला आरक्षण विधेयक) को पेश किया।
यह विधेयक पिछले 27 सालों से संसदीय राजनीति के कारण ठंडे बस्ते में पड़ा था। कांग्रेस और बीजेपी दोनों राष्ट्रीय पार्टियां इसे लागू तो करना चाहती थीं, मगर इसके लिए उनके पास जरूरी समर्थन की कमी थी। 1996 में देवेगौड़ा सरकार द्वारा यह बिल पहली बार लाया गया था। इसके बाद 2010 में मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने इसे राज्यसभा से पारित कराया, मगर लोकसभा में इसे पेश नहीं किया गया।
अब इस बिल को प्रचंड जनादेश वाली मोदी सरकार के द्वारा लाया गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बिल को सर्वसम्मति से पास कराने का अनुरोध किया है। आज यानी बुधवार को लोकसभा में इस पर चर्चा हो रही है। यहां से पारित होने के बाद फिर इसे राज्यसभा में पेश किया जाएगा। लोकसभा में सरकार के पास पर्याप्त बहुमत है। वहीं, राज्यसभा में भी मुख्य विपक्षी कांग्रेस समेत अन्य दलों के समर्थन के ऐलान से इस बिल की राह काफी आसान नजर आने लगी है।
महिला आरक्षण विधेयक से जुड़ी सभी अहम बातें
केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल द्वारा मंगलवार को पेश किया गया महिला आरक्षण विधेयक 128वां संविधान संशोधन विधेयक है। इस विधेयक में संसद और विधानसभाओं में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण देने का प्रावधान किया गया है। इस बिल के अमल आने से लोकसभा और विधानसभाओं की एक तिहाई सीटें महिलाओं के लिए रिजर्व हो जाएंगी। इनमें दिल्ली विधानसभा की सीटें भी शामिल हैं। हालांकि, विधेयक में पुदुचेरी जैसे केंद्र शासित प्रदेशों की विधानसभाओं में महिलाओं के लिए सीटें आरक्षित नहीं की गई हैं।
वर्तमान में लोकसभा में 543 सीटें हैं। 33 प्रतिशत के हिसाब से इनमें से 181 सीटें अब महिलाओं के लिए रिजर्व होंगी। इसी प्रकार विधानसभा में भी कुल सीटों का 33 प्रतिशत महिलाओं के लिए आरक्षित होगा। उदाहरण के तौर पर उत्तर प्रदेश विधानसभा में कुल सीटों की संख्या 403 है। ऐसे में यहां 133 सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित रहेंगी। राज्यसभा और विधान परिषद में महिलाओं को आरक्षण नहीं मिलेगा।
एससी/एसटी महिलाओं के लिए आरक्षण
एससी/एसटी महिलाओं को अलग से आरक्षण नहीं मिलेगा। उन्हें आरक्षण के अंदर ही आरक्षण मिलेगा। मतलब ये है कि लोकसभा और विधानसभा में जितनी सीटें एससी/एसटी वर्ग के लिए आरक्षित हैं, उनमें से 33 प्रतिशत सीटें इस वर्ग से आने वाली महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी। लोकसभा में फिलहाल 84 सीटें एससी और 47 सीटें एसटी के लिए आरक्षित हैं। महिला आरक्षण विधेयक के कानून के बाद एससी की 28 सीटें और एसटी की 16 सीटें महिलाओं के लिए रिजर्व हो जाएंगी।
कब लागू होगा कानून ?
महिला आरक्षण विधेयक कब से लागू होगा, ये सवाल विपक्ष भी सरकार से पूछ रहा है। इसके लागू होने में लंबा समय लग सकता है क्योंकि परिसीमन के बाद ही सीटों का निर्धारण हो सकेगा। वहीं, परिसमीन जनगणना के बाद ही होगा। पिछला देशव्यापी परिसीमन 2002 में हुआ था और इसे 2008 में लागू किया गया था। अभी तक 2021 की जनगणना नहीं हुई है। इसलिए जब तक जनगणना नहीं हो जाती, तब तक परिसीमन नहीं होगा।
2024 के आम चुनाव के बाद जनगणना होगी। संविधान के तहत, 2026 तक परिसीमन पर रोक लगी है। अब जब 2021 की जनगणना होगी, उसके बाद ही लोकसभा के सीटों का परिसीमन होगा। जानकारों की मानें तो 2029 या 2034 के लोकसभा चुनाव में महिला आरक्षण का फायदा मिल सकता है। बता दें कि महिला आरक्षण 15 साल के लिए ही वैध होगा, मगर संसद इसे आगे बढ़ा सकती है। उदाहरण के तौर पर एससी/एसटी वर्ग की सीटें भी शुरूआत में महज 10 साल के लिए आरक्षित की गई थीं। लेकिन इसे एकबार में 10-10 साल के लिए बढ़ाया जाता रहा है।
बता दें कि एक आंकड़े के मुताबिक, 17वीं लोकसभा में महिला सांसदों की संख्या 15 फीसदी है। वहीं, देश के 19 बड़े राज्यों के विधानसभाओं में महिलाओं की प्रतिनिधित्व 10 फीसदी से भी कम है। ऐसे में महिला आरक्षण विधेयक महिलाओं की संसदीय राजनीति में भागीदारी कितनी बढ़ाती है, ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा।