कौन बनता है शंकराचार्य, कैसे होता है इनका चुनाव? क्यों अपने साथ हमेशा रखते हैं कपड़े से ढका हुआ दंड?

Shankaracharya Selection: आदि शंकराचार्य का सनातन परंपरा के प्रचार-प्रसार में महान योगदान है। उन्होंने ही सनातन धर्म की प्रतिष्ठा के लिए भारत के चार क्षेत्रों में चार मठ स्थापित किए।

Written By :  Ashish Kumar Pandey
Update:2024-07-17 14:54 IST

Shankaracharya Selection  (photo: social media ) 

Shankaracharya Selection: केदारनाथ मंदिर से 228 किलो सोना गायब होने का दावा, दिल्ली में बन रहे केदारनाथ मंदिर का विरोध और कुछ अन्य बयान को लेकर ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद इन दिनों सुर्खियों में हैं। शंकराचार्य राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के बाद अपने बयानों से एक बार फिर से खबरों में आ गए हैं। यह पहली बार नहीं है कि शंकराचार्य चर्चा में हैं। वे अपने बयानों को लेकर भी कई बार चर्चा में रहे हैं।

ऐसे में लोगों के मन में यह सवाल उठता है कि शंकराचार्य कौन होते हैं और इनका क्या काम होता है? साथ ही लोग यह भी जानना चाहते हैं शंकराचार्य अपने साथ दंड और ध्वजा क्यों रखते हैं।

तो आइए यहां जानते हैं इन सवालों के जवाब...

कौन होते हैं शंकराचार्य?

शंकराचार्य के बारे में बताने से पहले आदि शंकराचार्य के बारे जानना जरूरी है। दरअसल, आदि शंकराचार्य एक हिंदू धर्मगुरु थे, ज्ञान और धर्म की जानकारी की वजह से उनकी काफी प्रसिद्धि थी। सनातन परंपरा के प्रचार-प्रसार में आदि शंकराचार्य का महान योगदान है। उन्हें अद्वैत वेदांत का प्रणेता, संस्कृत का विद्वान, उपनिषद व्याख्याता और सनातन धर्म सुधारक माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि वे काफी तेजस्वी थे और उन्होंने 20 साल का ज्ञान केवल 2 साल में अर्जित कर लिए थे। उन्होंने सनातन धर्म को लेकर भी काफी काम किया था।

फिर उन्होंने सनातन धर्म की प्रतिष्ठा के लिए भारत के चार क्षेत्रों में चार मठ स्थापित किए। फिर उन चार मठों के जो प्रमुख हुए, उन्हें ही शंकराचार्य कहा गया।

ये चार मठ उत्तर के बद्रिकाश्रम का ज्योर्तिमठ, दक्षिण का शृंगेरी मठ, पूर्व में जगन्नाथपुरी का गोवर्धन मठ और पश्चिम में द्वारका का शारदा मठ हैं। अब इन मठों के जो प्रमुख हैं, वो ही देश के चार शंकराचार्य हैं। इनमें गोवर्धन मठ के शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती जी हैं, शारदा मठ के शंकराचार्य सदानंद सरस्वती जी, ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद और श्रृंगेरी मठ के शंकराचार्य जगद्गुरु भारती हैं।


कैसे चुने जाते हैं शंकराचार्य?

शंकराचार्य बनने के लिए कुछ खास योग्यताओं को होना जरूरी होता है। जैसे सबसे पहली योग्यता तो यह है कि शंकराचार्य बनने के लिए संन्यासी होना जरूरी है और संन्यासी बनने के लिए गृहस्थ जीवन का त्याग, मुंडन, अपना पिंडदान और रुद्राक्ष धारण करना बेहद जरूरी माना जाता है। वहीं, अगर इनके चयन की बात करें तो किसी भी शंकराचार्य की नियुक्ति गुरु-शिष्य परंपरा के अनुसार होती है। ये इसलिए होता है, क्योंकि आदि शंकराचार्य ने भी अपने चार शिष्यों को चार मठों का शंकराचार्य बनाया था। ऐसे में हर शंकराचार्य अपने मठ के शिष्य को शंकराचार्य घोषित करते हैं।


इनकी सहमति भी होती है जरूरी

इसके साथ ही शंकराचार्य पदवी के शंकराचार्यों के प्रमुखों, आचार्य महामंडलेश्वरों, प्रतिष्ठित संतों की सभा की सहमति और काशी विद्वत परिषद की सहमति जरूरी होती है। इसके बाद ही शंकराचार्य बनते हैं।


अब जानिए क्या होता है इनका काम?

शंकराचार्य की भूमिका सनातन धर्म में काफी महत्वपूर्ण होती है। शंकराचार्य सबसे बड़े धर्म गुरु माने जाते हैं। ऐसे में धर्म से जुड़े किसी विषय में शंका या विवाद होने की स्थिति में शंकराचार्य की सलाह अंतिम मानी जाती है और ये अपने अपने मठों के जुड़े सभी फैसले लेते हैं। शंकराचार्य का कहना है कि शंकराचार्य से अपेक्षा की जाती है कि जहां धर्म की बात हो वहां बिना किसी लोभ और दबाव में आए वह सच कह सकें।


अपने साथ क्यों रखते हैं दंड?

आपने देखा होगा कि शंकराचार्यों के पास एक दंड होता है। ये दंड इस बात का संदेश देता है कि वे एक दंडी संन्यासी हैं। ये दंड उन्हें अपने गुरु से शिक्षा ग्रहण करने के बाद मिलता है, जिसे विष्णु भगवान का प्रतीक माना जाता है। कहा जाता है कि इसमें शक्तियों को समाहित किया जाता है और संन्यासी हर रोज इसका तर्पण और अभिषेक करते हैं। ये दंड कई तरह के होते हैं और इनमें अलग-अलग गांठ के हिसाब से इन्हें बांटा जाता है। कुछ दंड में 6, कुछ में 8, 10, 12, 14 गांठ वाले दंड होते हैं। हर दंड का अलग नाम होता है, जिसमें सुदर्शन दंड, गोपाल दंड, नारायण दंड, वासुदेव दंड आदि शामिल है। इसकी पवित्रता के लिए इसे हमेशा ढककर रखा जाता है।

इस तरह से देखा जाए तो शंकराचार्य के लिए दंड का विशेष महत्व होता है।

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